भारत में मिलते हैं होली के कई रंग

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भारत में मिलते हैं होली के कई रंगगाँवकनेक्शन

रंगों और उल्लास का त्यौहार होली भारत के सभी राज्यों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। देशभर में होली के त्यौहार मनाने के तौर तरीके भले ही अलग हों पर लोगों का उत्साह हर जगह एक जैसा देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश की लट‍्ठमार होली हो या गुजरात की डांग दरबार की होली,, हर किसी को बड़े ही अनोखे अंदाज में मनाया जाता है।

उत्तर प्रदेश : लट्ठमार होली

नंदगाँव के पुरुषों के हाथों में पिचकारियाँ होती हैं और बरसाने की महिलाओं के हाथ में लाठियाँ और फिर शुरू हो जाती है बरसाने की रंगारंग लट्ठमार होली। होली का यह स्वरूप बाकी राज्यों में मनाई जाने वाली होली से बिल्कुल अलग है। यह होली वास्तविक होली की तिथि सेे पहले खेली जाती है। लट्ठमार होली में लोगों को दो टोलियों (नंदगाँव, कृष्ण जन्मभूमि व बरसाना,राधा जन्म भूमि) में  बांटा जाता है। एक टोली में नंदगाँव के पुुरुष होते हैं और दूसरी टोली में बरसाने की महिलाएं होती हैं। दिन शुरू होते ही नंदगाँव की टोलियाँ बरसाने पहुंचने लगती हैं। इसी दौरान लोग भांग-ठंडाई का आनंद लेते हैं। 

इस होली का रीति-रिवाज बाकी होली के रूपों से बिल्कुल अलग है। इसमें पुरुषोंं को बरसाने से आई महिलाओं की टोली की लाठियों से बचना होता है साथ ही उन्हें महिलाओं द्वारा रंगे जाने से भी बचना पड़ता है। इस बीच होरियों (होली के गीत गाने वाले लोग) का गायन भी साथ-साथ चलता है। महिलाओं द्वारा लाठी व रंग का प्रयोग एक धार्मिक परंपरा के रूप में माना जाता है।

महिलाएं पुरुषों को लट्ठ मारती हैं ,लेकिन पुरुषों को किसी भी तरह का प्रतिरोध करने की इजाजत नहीं होती है। उन्हें सिर्फ गुलाल छिड़क कर इन महिलाओं को चकमा देना होता है। अगर वे पकड़े जाते हैं तो उनकी जमकर पिटाई होती है या महिलाओं के कपड़े पहनाकर शृंगार इत्यादि करके उन्हें नचाया जाता है। माना जाता है कि पौराणिक काल में श्रीकृष्ण को बरसाना की गोपियों ने ऐसे ही नचाया था। दो सप्ताह तक चलने वाली इस होली का माहौल मस्ती भरा होता है। लट्ठमार होली में गाया जाने वाला गीत।

कान्हा बरसाने में आई जइयो बुलाए गई राधा प्यारी।

फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर।

उड़त गुलाल लाल भए बदरा। 

होली खेरे नंद के ललना।... होरी है।

गुजरात : डांग दरबार की होली 

खाऊला, पियूला, मौजूला यानि खाओ, पीओ और मौज मनाओ का संदेश लिए गुजरात के डांग आदिवासी होली का त्यौहार मनाते हैं। इस होली में आदिवासी अपनी सारी  तकलीफों को एक तरफ  रख कर ढोल-मंजीरा हाथों में लिए मस्ती में झूमते गाते इस त्यौहार का आनंद लेते हैं।

अपने वाद्य यंत्र (ढोल-नगाड़े, पावी, बांसुरी, मांदल, चंग ) को बजाते हुए आदिवासी गाँव-गाँव फिरते हुए लोकगीत गाते हैं व होली के त्यौहार का स्वागत करते हैं। नाचते हुए आदिवासी आपस में रंग- गुलाल उड़ाते हैं और गाँव के एक छोर से दूसरे छोर तक लोगों को खींचकर नाचने पर मजबूर कर देते हैं। कुछ आदिवासी लकड़ी के घोड़े या टाटू बनाकर उसे पहनकर नाचते हैं तो कई बार महिलाओं की वेशभूषा पहनकर भी खूब मस्ती करते हैं। इस सब के अलावा जिस खास आयोजन का इंतजार समस्त आदिवासियों को होता है, उसे ‘डांग दरबार’ कहा जाता है।  

आदिवासी बाहुल्य जिले डांग में हर वर्ष होली के ठीक तीन दिन पहले से ही ‘डांग दरबार’ का आयोजन बड़े जोर-शोर से किया जाता है। इस कार्यक्रम का आयोजन तीन दिनों तक होता है जिसमें बच्चें,महिलाएं व बुजुर्ग आदिवासी बहुत जोश के साथ भाग लेते हैं। आदिवासी महिलाएं व पुरुष एक ताल से नाचते हुए पिरामिड जैसा आकार बनाते हैं। इस दौरान आयोजित होने वाले मेले में आमतौर पर रोजमर्रा की सामग्रियों के अलावा स्थानीय कलाकारों की कलाकृतियां, जड़ी बूटियां और कई अन्य वस्तुओं की बिक्री भी की जाती है। इसके अलावा शरीर पर देसी तरीकों से गुदना (टैटू) करवाने के लिए भी इस आयोजन को बेहद खास माना जाता है। इस कार्यक्रम में 5,000 से ज़्यादा आदिवासी हिस्सा लेते हैं।

 

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