भावनाओं पर नियंत्रण खोना खतरनाक

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भावनाओं पर नियंत्रण खोना खतरनाकgaoconnection, sehatconnection

लखनऊ। यह मानसिक बीमारी एक तरह का मूड डिस्ऑडर (मनोस्थिति विकार) है। मूड डिस्ऑडर में मरीज के मूड में बहुत नकारात्मक बदलाव आ जाते हैं। कभी वह अचानक से बहुत खुश हो जाते हैं और कभी बहुत उदास हो जाते हैं। यह बदलाव सिर्फ कुछ समय तक रहने की बजाए एक लम्बे समय तक मरीज के भावनाओं में परिवर्तन लाते हैं। सामान्य लोगों का अपने मूड और स्वभाव पर नियंत्रण होता है, लेकिन जिन लोगों को मूड डिस्ऑडर होता है उनका अपने भावनाओं पर कोई नियंत्रण नही होता। 

मनीषा (32 वर्ष) कॉलेज में प्रोफेसर हैं, एक दिन उनकी अपने प्रधानाचार्य से थोड़ी कहा-सुनी हो गई। इस बात का उनपर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि धीरे-धीरे उनका चीजों में मन लगना बंद हो गया, दिन रात वह उसी बारे में सोचती थी। उसने कॉलेज जाना भी बंद कर दिया और बहुत उदास रहने लगी उसको रात में नींद भी आना बंद हो गई। 

एक हफ्ते तक उनकी यही दिनचर्या रही तो उनके घरवालों ने देखा कि वह कुछ ज्यादा ही बोल रही हैं। उन्होंने कहना शुरू कर दिया कि वह देवी हैं। वह ऐसी बातें  बोलने लगी, जिसका कोई मतलब नहीं निकलता है। बिना किसी वजह के खरीदारी करने लगी और रोकने पर मार-पीट करने लगती थी। उनके घरवालों ने जब उन्हें मनोचिकित्सक को दिखाया तब उन्होंने बताया कि इनको बाई-पोलर डिस्ऑडर हो गया है। छह महीने चले इलाज के बाद वह ठीक है और कॉलेज वापस जा रही हैं। बाई-पोलर डिस्ऑडर में डिप्रेशन (अवसाद) के साथ मेनिया (उन्माद) के भी लक्षण पाए जाते हैं।

अवसाद

उदास रहना, हर समय थका हुआ दिखाई देना, किसी भी चीज में मन न लगना, कम बोलना और कम मिलना-जुलना, अपने आपको किसी काबिल न समझना और बहुत पछतावा। अवसाद से पीड़ित लोगों में सेक्स के प्रति रूचि घट जाती है।

उन्माद

बहुत खुश या चिड़चिड़ापन रहना, बहुत ऊर्जा महसूस करना और आराम की जरुरत महसूस न होना, हर चीज में दखल देना और कोई भी चीज लगातार न कर पाना, बहुत ज्यादा बेमतलब की बातें करना और अपने आप को रोक न पाना, अपने आप को बहुत बड़ा समझना और यह सोचना कि वह बहुत महत्वपूर्ण इंसान हैं या दानी या देवता का रूप हैं। इसके साथ यह देखा गया है कि इससे पीड़ित लोगों में सेक्स की इच्छा बढ़ जाती हैं। बाईपोलर में नींद, भूख और बाकी शारीरिक चीजों में बहुत दिक्कतें आने लगती हैं। बाईपोलर होने की संभावना चार प्रतिशत होती है और यह पांच साल से 50 साल की उम्र के लोगों को भी भी हो सकती है। यह विकार तलाकशुदा और बिना शादीशुदा लोगों में ज्यादा होने की संभावना होती है।  

रिपोर्टर - डॉ. साज़िया सिद्द्की 

 

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