भगवान सबके अलग हैं भगवान कण एक ही हैं

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
भगवान सबके अलग हैं भगवान कण एक ही हैंगाँव कनेक्शन, संवाद

दुनिया के लोग अपने अपने ढंग से अपने अपने भगवान पेश करते और भगवान के नाम पर खूब लड़ते हैं। विज्ञान ने प्रमाणित किया है कि दुनिया में मौजूद ''गॉड पार्टिकिल एक ही हैं। गाँव का आदमी समझदार है, उसके लिए कण में भगवान बसे हैं। और विज्ञान ने प्रमाणित किया है कि ये कण अमर है।  वैसे यहां के लोगों ने बड़े से बड़े विराट रूप में और सूक्ष्म से सूक्ष्म कणों में भी भगवान को जाना है। 

वर्षों की मेहनत के बाद 2012 में हिग्स नाम के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने गाड पार्टिकिल यानी भगवान कण की खोज कर ली है। भारतीय वैज्ञाानिक सत्येन्द्र्र नाथ बोस पहले ही यह कण खोज चुके हैं जिन्हें बोसॉन कहा गया। यह कोई एक कण

नहीं है बल्कि वे सभी छोटे से छोटे कण जो ब्रह्माण्ड का निर्माण करते हैं, जो अविभाज्य हैं, अविनाशी हैं, भारहीन हैं और अमर हैं। हम चाहे सबसे सूक्ष्म कण की बात करें वह एक ही होगा और चाहे बड़े से बड़े पिण्ड यानी ब्रह्माण्ड या विराट स्वरूप की बात करें वह भी एक ही है।  

भारत के दार्शनिक कणाद सम्भवत: दुनिया के पहले व्यक्ति रहे होंगे, जिन्होंने दर्शन शास्त्र की शाखा वैशेषिका में कहा था कि दुनिया के सभी पदार्थों को छोटे से छोटे कणों में विभाजित किया जा सकता है। इन कणों में उस पदार्थ के सभी गुण होते हैं और इन्हें विभाजित नहीं किया जा सकता। इसके बहुत बाद एक अंग्रेज वैज्ञानिक डाल्टन ने छोटे से छोटे ऐसे कणों की खोज की जिन्हें उनके अनुसार और छोटे कणों में बांटा नहीं जा सकता। ऐसे कणों को डाल्टन ने ऐटम यानी परमाणु कहा था। अब कणाद और डाल्टन के कण विभाजित हो सकते हैं, इसलिए उन्हें भगवान कण नहीं कह सकते। 

भारतीय वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस ने बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में ऐसे कणों की खेाज की जो सबसे छोटे और भारहीन थे। उन्हीं के नाम पर ऐसे छोटे से छोटे भारहीन कणों को बोसॉन नाम दिया गया था। इंग्लैंड के वैज्ञानिक पीटर हिग्स ने कई दशक बाद ऐसे ही भारहीन कणों की खोज की है जिन्हें अब हिग्स-बोसान कहा जाता है। इन्हें भगवान कण कहा गया क्योंकि ये भारहीन, अविभाज्य और अमर हैं, परन्तु क्या यही है विज्ञान का अन्तिम सत्य, कोई नहीं कह सकता।

भारहीन कणों के विषय में यह समझ लेना चाहिए कि मैटर यानी पदार्थ कभी भी भारहीन नहीं होता, तो फिर ये भारहीन कण किसके कण हैं? माना जाता है कि ऊर्जा भारहीन है तब शायद ये ऊर्जा के कण हैं। वास्तव में आज से कई हजार साल पहले भारत के विचारकों ने समस्त ब्रह्माण्ड को प्रकृति यानी मैटर और प्राण यानी ऊर्जा के रूप में देखा था।

मैटर और ऊर्जा यानी प्रकृति और प्राण के सम्बन्ध को कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है जैसे लकड़ी और ताप। लकड़ी से ताप पैदा हो सकती है लेकिन ताप से लकड़ी नहीं बन सकती है यह कल्पना केवल भारत के ऋषियों ने की थी। उपनिषदों में पुरुष से प्रकृति अर्थात एनर्जी से मैटर की उत्पत्ति पश्चिमी जगत के लिए अनोखी थी। आइन्स्टाइन ने पहली बार ऊर्जा से पदार्थ की उत्पत्ति को समझा और उनके सम्बन्ध को बताया था। ऊर्जा और पदार्थ के परस्पर सम्बन्धों की जितनी व्याख्या भारत में हुई है उतनी दूसरे समाजों में नहीं हुई है। 

इतना तो समझ में आता है कि दुनिया के वैज्ञानिक कणाद को नहीं जानते क्योंकि वह पुरानी बात है परन्तु भारहीन कणों की खोज का श्रेय सत्येन्द्र नाथ बोस को न देकर अंग्रेज वैज्ञानिक पीटर हिग्स को देना अन्याय है। ऐसा भारतीय वैज्ञानिकों के साथ पहले भी होता रहा हैं। बिना तार का उपयोग किए सन्देश भेजना जिसे पहले तार कहते थे उसकी खोज भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस ने की थी परन्तु श्रेय मारकोनी को दिया गया। आशा है कम से कम हमारे देश के वैज्ञानिक सत्येन्द्र नाथ बोस को उनके श्रेय से वंचित नहीं करेंगे। भगवान कणों की खोज का एक पक्ष यह भी है कि इंसान अपने भगवान को पेश करते समय दूसरे के भगवान के प्रति बैर भाव न रखे क्योंकि उनकी भगवान की कल्पना जो भी हो दुनिया में भगवान कणों में कोई अन्तर नहीं है, एकरूपता हैं। भगवान के नाम पर लडऩे का तो बिल्कुल औचित्य नहीं है।

[email protected]

 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.