भीड़ से शक्ति प्रदर्शन होता है, उपासना नहीं

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भीड़ से शक्ति प्रदर्शन होता है, उपासना नहींगाँव कनेक्शन

केरल के एक मन्दिर में सौ से अधिक लोग मर गए और तीन सौ से अधिक मौत से लड़ रहे हैं क्योंकि इन्होंने भगवान को प्रसन्न करने के लिए पटाखे दगाए या मौजूद रहे और आग लग गई। केदारनाथ, प्रयागराज, देवी देवताओं के मन्दिर और बड़े पंडाल जो भक्ति भाव को प्रकट करते हैं अनेक बार भक्तों की मौत का कारण बनते हैं। श्रीश्री रविशंकर जैसे लोग जब अथाह भीड़ इकट्ठी करते हैं तो सरकार, प्रशासन और पुलिस राहत की सांस लेती होगी यदि कोई दुर्घटना न हो।

भीड़ से पर्यावरण, जलप्रदूषण और सुरक्षा को लेकर गम्भीर सवाल उठते हैं और हमारी दिन प्रतिदिन की व्यवस्था और सामाजिक सुरक्षा पर बोझ बढ़ता है जो टाला जा सकता है। कुम्भ स्नान की परम्परा हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग रही है और आगे भी रहेगी। इसके माध्यम से निरक्षर श्रद्धालुओं को देश और समाज को देखने, समझने का अवसर मिलता है। इन्टरनेट का उपयोग करने वालों को इसकी आवश्यकता नहीं। पुराने समय में इतनी भीड़ नहीं होती थी क्योंकि देश की आबादी बहुत कम थी और आने-जाने के लिए रेलें और बसें नही थीं। अब समय बदल गया है, लोगों के पास आने जाने के निजी साधन हैं, विशेष रेलें और बसें चलाई जाती हैं और श्रद्धालुओं का एक ही लक्ष्य रहता है जल्दी से जल्दी डुबकी लगाएं और अपने पापों की गठरी संगम में खोल दें । ऐसी ही सोच रहती है पवित्र नदियों में स्नान के समय और ऐसी आस्थाओं पर नियंत्रण कठिन हैं। 

जो समाज के मार्ग दर्शक हैं वे शाही स्नान को लेकर प्रतिष्ठा का प्रश्न बना देते हैं और भगदड़ में बड़ी संख्या में श्रद्धालु हताहत होते हैं। शाही स्नान में पहले कौन नहाएगा इस पर विवाद होता है। भगदड़ मचती और दुर्घटना होती है। ऐसी दुर्घटनाएं दम्भ और शक्ति प्रदर्शन के कारण अधिक होती हैं। दुर्घटनाओं के लिए प्रायः व्यवस्था की कमियों को दोष दिया जाता है, शायद स्वाभाविक भी है लेकिन यह पूरा सच नहीं है। व्यवस्था तो श्रद्धालुओं की अनुमानित संख्या के आधार पर की गई होगी और जब एक करोड़ की जगह तीन-चार करोड़ श्रद्धालु आ जाएंगे तो व्यवस्था चरमराएगी। कल्पना कीजिए यदि दुनिया भर के मुसलमानों को हज करने की खुली छूट हो जाय तो भीड़ का आलम क्या होगा। सऊदी अरब जैसा छोटा देश व्यवस्था कर पाता है क्योंकि वहां व्यवस्था पर आस्था हावी नहीं होती।

राजनैतिक दलों को भीड़ में वोट दिखाई देते हैं, इसलिए भीड़ को घटाने अथवा नियंत्रित करने के उपाय वे नहीं सोचेंगे। इसका उपाय सोचना होगा समाज और मार्गदर्शक मंडल को। देवस्थान से घर लौट कर यदि हम अपनी ऊर्जा का उपयोग दरिद्रनारायण की सेवा में करें तो पापों की गठरी बनेगी ही नहीं और बार-बार गठरी लेकर देवस्थान पर, पवित्र नदी में या संगम में नहाने की आवश्यकता नहीं होगी। यदि भीड़ नियंत्रण के लिए सरकार परमिट की व्यवस्था करेगी तो हमें बुरा लगेगा इसलिए बेहतर होगा हमारा समाज स्वयं ही त्याग और संयम का परिचय देते हुए जीवन में एक बार के संगम स्नान को पर्याप्त मान लें।

यदि हमें गंगा जी में आस्था है तो जो लाभ मकर संक्रान्ति, मौनी अमावस्या और बसन्त पंचमी को स्नान करने से मिलता है वह 365 में से किसी भी  दिन स्नान करने से मिलेगा। तीर्थस्थानों पर जाना इसलिए पड़ता है कि हम पाप की गठरी संजोते और विसर्जित करते रहते हैं। एक न एक दिन व्यवस्था असम्भव हो जाएगी। उचित होगा हम ध्यानस्थ होकर घर में ही पूजा करना सीखें और नरसेवा को ही नारायण सेवा मान लें।

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