भ्रष्टाचार हमारे समाज की जड़ों तक पहुंच चुका है

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भ्रष्टाचार हमारे समाज की जड़ों तक पहुंच चुका हैगाँव कनेक्शन

आजकल संसद में इस बात पर बहस चल रही है कि इटली की कम्पनी अगस्ता ने हेलिकॉप्टर बेचने के लिए संप्रग सरकार के राजनेताओं को रिश्वत दी थी या नहीं और दी थी तो किसको कितनी। इटली की अदालत ने अपने निर्णय में कुछ संकेत दिए हैं लेकिन नाम स्पष्ट नहीं हैं। वैसे रिश्वत और भ्रष्टाचार कोई नया नहीं है इस देश में। जवाहर लाल नेहरू के समय में डालमिया की कम्पनी का जीवनबीमा क्षेत्र में भ्रष्टाचार, नेहरू के विश्वासपात्र कृष्णा मेनन द्वारा जीप स्कैंडल के नाम से मशहूर प्रकरण, मूंधड़ा कांड और वहां से चलकर हर सरकार और हर प्रधानमंत्री के समय में भ्रष्टाचार उजागर होता रहा है। 

बोफोर्स कांड तो ताजा है उसके बाद भी अनेक प्रकरण हुए हैं। कभी सांसदों की खरीद तो कभी कोयला तो कभी टू जी और अब अगस्ता। हमारे नेताओं के दिमाग में तो भ्रष्टाचार है ही, आम आदमी भी भ्रष्ट है, आखिर नेता तो आमजनों से ही निकलते हैं। हालत यह है कि भगवान को भी नहीं छोड़ते। आम आदमी पुत्र प्राप्ति, मुकदमा जीतने, बीमारी से उबरने के लिए भगवान को रिश्वत का वादा करता है। फिर चाहे मन्दिर में प्रसाद चढ़ाने, कथा सुनने या मज़ार पर चादर चढ़ाने की रिश्वत हो। काम कराने के लिए भ्रष्टाचारियों ने रेट निर्धारित किए हैं।

लोहिया आवास के लिए 20 हजार रुपए की रिश्वत निर्धारित है और भूमिहीनों को पट्टा के लिए भी प्रति एकड़ एक लाख की रिश्वत है। अध्यापक या प्रधानाध्यापक के रूप में नियुक्ति की पांच लाख से 10 लाख रुपए तक रिश्वत है, ऐसा सुनने में आया है। आपको मुआवजा या एरियर मिलना है तो 10 प्रतिशत पहले नकद बाबू को देना होता है। इन बातों को प्रमाणित करना सरल नहीं है। यदि आप एक स्कूल खोलते हैं तो उसकी मान्यता लेने, अनुदान सूची में नाम डलवाने, परीक्षा केन्द्र बनवाने से लेकर प्रत्येक कदम पर रिश्वत देनी पड़ती है। सरकारी स्कूलों के अध्यापकों का नियुक्ति पत्र, तबादला, प्रमोशन और एरियर प्राप्ति में रिश्वत के बिना काम नहीं चलता। हर काम के भाव निश्चित हैं लेकिन आप उसे प्रमाणित नहीं कर सकते। 

तमाम अधिकारी और कर्मचारी भ्रष्ट तरीकों से धन इकट्ठा करते हैं, बड़ी मात्रा में यह कालाधन कई बार विदेशी बैंकों में जमा किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने यूपीए सरकार को आदेश भी दिया था कि ऐसे लोगों की सूची पेश करें जिनका पैसा अवैधानिक तरीके से विदेशों में जमा है। उन्होंने तो सूची जमा नहीं किया परन्तु मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए एसआईटी का गठन किया और 600 से अधिक ऐसे खाताधारकों के नाम  अदालत में पेश किए। मोदी सरकार ने विदेशी काले धन के साथ ही स्वदेशी कालेधन पर भी प्रहार करने का निर्णय लिया है।

स्वदेशी हो अथवा विदेशी, उसे सामने तो आना ही चाहिए। वास्तव में कालाधन देश में भरा पड़ा है जिसे कई बार समानान्तर अर्थव्यवस्था कहा जाता है। विदेशी कालाधन वहां की बैंकों में जमा कर दिया गया है लेकिन स्वदेशी कालाधन अलग-अलग रूपों में अलग-अलग जगहों पर दुबक कर बैठा है। पुराने जमाने में सोना चांदी के रूप में जमीन के अन्दर बिठा दिया जाता था। आजकल सर्वाधिक कालाधन जमीन जायदाद के रूप में रहता है। कई बार बेनामी सम्पत्ति के रूप में। यही कारण है कि पिछले 40 साल में गाँवों की जमीन के दाम 400 गुना बढ़ गए हैं जब कि सोने के दाम केवल 150 गुना ही बढ़े हैं।

जहां कालेधन का प्रवेश नहीं है वहां महंगाई भी नहीं है जैसे मजदूरी इसी अवधि में करीब 70 गुना और गेहूं करीब 30 गुना बढ़ा है। स्पष्ट है जहां काले धन की पैठ थी वहां महंगाई अधिक बढ़ी। हमने अखबारों में यादव सिंह, हर्षद मेहता और तेलगी के नाम सुने हैं। आंध्र प्रदेश के एक प्रशासनिक अधिकारी के पास भी अकूत सम्पदा निकली है। एक केन्द्रीय मंत्री थे हिमाचल के रहने वाले सुखराम जिन्होंने अपने रजाई गद्दों और तकियों में करेन्सी नोट भर रखे थे, किस काम आया वह काला धन। कालाधन रोकने के लिए पहले भ्रष्टाचार रोकना होगा। इसका उपाय है शासन प्रशासन द्वारा आदर्श स्थापित करना, जिससे नीचे के लोग प्रेरित हों। नरेन्द्र मोदी ने कहा तो था ‘‘ना खाएंगे और ना खाने देंगे” पता नहीं कितना कामयाब होंगे। 

 

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