भूजल भंडार बढ़ाने की सतत चिन्ता जरूरी है
डॉ. शिव बालक मिश्र 29 July 2016 5:30 AM GMT
हम विदेशी मुद्रा भंडार और खाद्य भंडार की चिन्ता तो करते हैं, उन्हें बढ़ाने की कोशिश भी करते हैं लेकिन इनसे कहीं अधिक जरूरी है जल भंडार जो प्रकृति ने हमारे जीवन के लिए जमीन के अन्दर संचित करके रखने की व्यवस्था की है।
पिछले 50 साल में भूजल संरक्षण के लिए रिपोर्टें तो खूब बनीं लेकिन राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी के प्रयास भी इसके आगे नहीं बढ़ सकें। अब मूसलाधार वर्षा हो रही है और जलभराव के कारण अनेक इलाके परेशान हैं। क्या इस पानी को जमीन के अन्दर प्रवेश कराने के लिए कुछ नहीं किया जा सकता।
हमारे किसानों का जीवन इन्द्र देवता के सहारे है जो सन्तुलित वर्षा नहीं करते। कुछ भागों में खूब वर्षा होती है और इस वर्षा जल का बड़ा भाग वापस समुद्र में चला जाता है जबकि दूसरे भागों में कम पानी बरसता है और सूखा तथा अकाल पड़ते हैं। वक़्त-ज़रूरत के लिए वर्षा जल के एक भाग को प्रकृति धरती के नीचे भंडारित कर देती है जैसे किसान अपनी फसल का कुछ भाग सुरक्षित रख लेता है ज़रूरत के लिए।
अब धरती के अन्दर जल भंडारण के लिए अनुकूल परिस्थितियां नहीं रहीं। जरूरत है प्रकृति के काम में मनुष्य द्वारा सहयोग किया जाए।
पुराने लोगों को याद होगा प्रकृति द्वारा संचित इसी भूजल ने 1967-68 में अकाल से बिहार को बचाया था। विदर्भ को नहीं बचा पा रहा है क्योंकि वहां संचित भूजल की कमी है। जल के लिए अगला विश्वयुद्ध छिड़े इसके पहले हमें कुछ प्रभावी कदम उठाने होंगे।
भंडारित भूजल को बचाने का एक ही तरीका है कि भूतल पर उपलब्ध पानी का अधिकाधिक उपयोग किया जाए। इस उद्देश्य से सत्तर के दशक में केवल राव ने भारत की नदियों को आपस में जोड़ने का प्रस्ताव दिया था जिस पर मोरारजी भाई की जनता पार्टी की सरकार ने 1977 में कार्यवाही आरम्भ की थी।
जब कांग्रेस पार्टी को सत्ता फिर से मिली तो उसने 1982 में इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। एक बार फिर 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने योजना को पुनर्जीवित करना चाहा और प्रयास किया लेकिन 2004 में उनकी सरकार जाने और कांग्रेस की सरकार आने के साथ ही योजना भी चली गई। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि एक जीवन रक्षक योजना राजनीति का शिकार बनकर रह गई।
यदि पर्यावरण और इकोलॉजी के नाम पर योजना का विरोध करने वाले लोग आने वाली सन्तानों को भूखे प्यासे नहीं मरने देना चाहते तो जल उपलब्धता की विसंगति से निपटने और भूजल बचाने के लिए नदियों का जाल बिछाना एक अच्छा विकल्प है। बेहतर होगा कि टीवी चैनल विशेषज्ञों की खुली बहस कराएं इस विषय पर।
अफसोस की बात है कि हमारे टीवी चैनल इस प्रकार के जीवन मरण के प्रश्नों पर कभी चर्चा नहीं करते शायद इसलिए कि दर्शक स्वयं रुचि नहीं रखते। टीवी वाले बहस करेंगे बलात्कार के विस्तार पर, बार बालाओं पर, महिला अपहरण पर और इसी प्रकार के चटखारे लगाने वाले विषयों पर। यह विषय महत्वपूर्ण हैं परन्तु समस्त जीव मंडल के अस्तित्व से जुड़े विषयों पर थोड़ा अधिक चर्चा होनी चाहिए।
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