भूखे लोगो की मदद के लिए बनाया 'रोटी बैंक'
गाँव कनेक्शन 18 Oct 2015 5:30 AM GMT

हज़ारीबाग (झारखंड)। झारखंड के हज़ारीबाग़ में एक अनूठा बैंक खुला है। यहां से उधार लेने पर लौटाने की बाध्यता नहीं। जमा करने पर ब्याज भी नहीं मिलता। नाम है, 'रोटी बैंक'।
बैंक चला रहे हैं तापस चक्रवर्ती और मोहमम्द ख़ालिद, उद्देश्य है भूखे लोगों को रोटी खिलाना। इनका टर्नओवर रोज़ के हिसाब से करीब 3000 रोटियों का है।
हज़ारीबाग़ ही नहीं पूरे झारखंड में इस अनूठे बैंक की चर्चा है। दूसरे शहरों के लोग भी इस तरह के बैंक को खोलने पर विचार कर रहे हैं।
मोहम्मद ख़ालिद के अनुसार सितंबर के पहले पखवाड़े में इस बैंक को शुरु किया गया, जिसमें 14 लोग शामिल हैं।
यहां जमा रोटियों के तीन हिस्से किए जाते हैं। इनमें से एक हिस्सा बिरहोर आदिवासियों की बस्ती डेमोटांड भेजा जाता है। इस बस्ती में करीब 100 लोग रहते हैं।
रोटियों का दूसरा हिस्सा चौक-चौराहों पर घूमने वाले विक्षिप्तों मे बांटा जाता है। अंतिम हिस्सा ग़रीब मरीज़ों के तीमारदारों के लिए है। पिछले एक महीने में इस बैंक में रोटी दान करने वालों की संख्या लगातार बढ़ी है। झारखंड में सामूहिकता का यह सशक्त उदाहरण बना है।
हुरहुरु के ईस्ट प्वाइंट स्कूल और हज़ारीबाग़ स्थित सेंट जेवियर्स स्कूल के बच्चे रोटियों के मुख्य कंट्रीब्यूटर हैं। ईस्ट प्वाइंट स्कूल की आशा कुमारी ने बताया कि वे टिफ़िन में भूख से अधिक रोटियां लाती हैं। असेंबली के वक्त सभी बच्चों की रोटियां एक बड़ी टोकरी में जमा की जाती हैं। वहां से इन्हें रोटी बैंक भेज दिया जाता है।
स्कूल की शिक्षिका रेशमा रॉबर्ट ने बताया कि यह आर्ट आफ गिविंग है। बच्चों में इससे दान देने की प्रवृति बनने लगी है।
रोटी बैंक की टैग लाइन है। कोई भूखा नहीं रहे। ख़ालिद ने बताया कि शहर के चार स्कूलों के बच्चे इसमें मदद कर रहे हैं।सप्ताह में एक स्कूल के बच्चों को एक बार ही रोटियां लानी पड़ती हैं। सब्जी का प्रबंध भी एक व्यवसायी कर देते हैं।
वह कहते हैं, "बच्चों के अलावा भी कई ऐसे लोग हैं, जो रोटियां दान करना चाहते हैं. लेकिन हमने उन्हें मना किया है क्योंकि हमारा काम चल जा रहा है। हम बनी रोटियां लेते हैं। ज्यादा लेने पर इनके ख़राब होने का खतरा रहेगा।"
रिपोर्ट - अम्बाती रोहित
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