भूसा-कंडा नहीं, अब रखी जा रही हैं किताबें

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भूसा-कंडा नहीं, अब रखी जा रही हैं किताबें

तबेला बन चुके पंचायत भवनों में जन सहयोग से एक दर्जन गाँवों में खोली गईं लाइब्रेरी

मितौली (लखीमपुर खीरी)। कल तक गाँव के जिस पंचायत भवन में लोग भूसा और कंडा भरते थे, वहां अब किताबें ज्ञान की अलख जगा रही हैं। इस बेहाल हो चुके भवन में लाइब्रेरी खोली गई है।

देशभर में गन्ना बेल्ट के नाम से मशहूर लखीमपुर खीरी में जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम दिशा में मितौली गाँव में खोली गई लाइब्रेरी इन दिनों चर्चा में है। गाँव के बच्चों और युवाओं को गाँव में ही किताबें उपलब्ध कराने की ये सकारात्मक पहल की है। खीरी के युवा आईएएस सीडीओ नितीश कुमार ने इस पुस्तकालय को  'ग्राम पुस्तकालय' नाम दिया गया है।

सीडीओ नितीश कुमार कहते हैं, ''मैंने गाँवों के पंचायत भवनों को देखा जो खाली पड़े थे किसी में भूसा भरा था कहीं जानवर बांधे जाने लगे थे। इन्हें उपयोग में कैसे लाया जाए पर गंभीरता से विचार करने पर पुस्तकालय खोलने का विचार आया।" अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए नितीश कुमार कहते हैं, ''गाँव के बच्चों को अच्छी पुस्तकें नहीं मिल पाती, प्रतियोगिता का समय है, गाँवों के छात्र-छात्राओं को भी अब इन पुस्तकालयों से अपने काम की किताबें मिल जाएंगी।"

पुस्तकालय के बजट के सवाल पर सीडीओ कहते हैं, ''क्योंकि लाइब्रेरी जनसहयोग से खुली है इसलिए हर स्तर पर लोगों का सहयोग लिया गया। हालांकि शुरुआती दौर के लिए फर्नीचर और किताबों के लिए 30 हजार रुपए प्रशासन ने लगाया हैं। अधिकांश किताबें गाँव वालों ने ही दी है तो कुछ पुरानी किताबों को बाहर के लोगों ने दान की हैं, जबकि प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबें लखनऊ से मंगवाई गईं हैं। हमने छोटे बच्चों के लिए चंपक और दूसरी कहानियों की किताबें लाइब्रेरी में रखवाई हैं।"

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगे मितौली के शरद मिश्र इन पुस्तकालयों को गाँवों के लिए संजीवनी कहते हैं। इसी गाँव के राजेंद्र कटियार कहते हैं, ''गाँव के बच्चे अब कहानी की किताबें पढ़ते हैं। अब बच्चों के भविष्य की राह में किताबों की कमी शायद नहीं आएगी।"

मितौली के ही व्यापारी अमित गुप्ता कहते है, ''ये पहल हर गाँव में हो तो बच्चों का भविष्य बन जाएगा। सबसे अच्छी बात ये है कि ये पुस्तकालय हम सब लोगों के सहयोग से चलाया जा रहा हैं। इसके रखरखाव की भी जिम्मेदारी हमारी ही है।"

इन पुस्तकालयों के रखरखाव की जिम्मेदारी भी गाँव के किसी ऐसे युवा को सौंपी गई है जो पढऩे लिखने वाला हो। इन्हें ग्राम पंचायत से एक हजार का मानदेय देना भी तय किया गया है। गाँव के पंचायत सेक्रेटरी और लेखपाल को भी इनकी देखभाल की जिम्मेदारी दी गई है। मितौली में गाँव वालों से मिले सहयोग और पहली लाइब्रेरी की सफलता के बाद कस्ता और निघांसन समेत एक दर्जन गाँवों में यह ग्राम पुस्तकालय खोले जा चुके हैं।

मितौली विकास खंड में तैनात रहे एसडीएम राकेश पटेल मानते हैं कि गाँवों के लोग महंगी किताबें खरीद नहीं सकते। वो कहते हैं, हम लोग भी गाँव से ही हैं और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर चुके हैं। वो आगे बताते हैं, ''जिले के इन पुस्तकालयों को मॉडल के तौर पर लिया जा रहा है। अगर ये प्रयोग सफल रहा तो पूरे प्रदेश में ये मॉडल शुरू किया जा सकता है। इस पहल को कमिश्नर लखनऊ में सराहा गया है।"

 

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