सेनेटरी नैपकिन के लिए इन तीन पैडवुमन ने खोले छह बैंक 

Neetu SinghNeetu Singh   11 Feb 2018 11:01 AM GMT

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सेनेटरी नैपकिन के लिए इन तीन पैडवुमन ने खोले छह  बैंक ये तीनों महिलाएं बिहार की हैं पैडवुमन। 

बिहार की ये तीन महिलाएं अभिनेता अक्षय कुमार की तरह देश में पैडमैन की तरह चर्चा में भले ही न आयीं हों लेकिन बिहार के कई जिलों की महिलाओं और लड़कियों के बीच इनकी चर्चा किसी पैडवुमन से कम नहीं है। इनके प्रयास से वो महिलाएं और लड़कियां जिन्होंने कभी सेनेटरी पैड का नाम नहीं सुना था आज वो इसका इस्तेमाल करने लगी हैं। इन पैड वुमन की पहल से बिहार के अलग-अलग जिलों में छह सेनेटरी नैपकीन बैंक चल रहे हैं।

पटना के ये तीन नाम पल्लवी सिन्हा, अमृता सिंह, डॉ अर्चना कुमारी ने मिलकर पांच साल पहले बिहार के कई जिले के गांव और बस्तियों में जाकर माहवारी विषय पर बात करने की शुरुआत की थी। बातचीत के दौरान इन्होंने पाया सिर्फ गांव ही नहीं बल्कि शहरों में भी पीरियड को लेकर कई मिथक थे। लड़कियां माहवारी के दौरान राख, पुराने गंदे कपड़े, बोरे के टुकड़े, सूखे पत्ते जैसी कई चीजें इस्तेमाल करती थी जिससे इन्हें सफेद पानी और इन्फेक्शन जैसी कई बीमारियां हो जाती थी।

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ये बिहार के कई जिलों में गांव-गांव जाकर महिलाओं और किशोरियों के बीच माहवारी पर कर रहीं चर्चा।

इनके घरों में माहवारी जैसे विषय पर बात करना अच्छा नहीं माना जाता था जिसकी वजह से इन्हें पीरियड के बारे में जानकारी नहीं होती थी और इन्हें उस दौरान जो समझ आता था वही करती थी। डॉ अर्चना कुमारी गांव कनेक्शन को फोन पर बताती हैं, "पीरियड के बारे में इन्हें पर्याप्त जानकारी न होने की वजह से 70 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों को सफेद पानी और इन्फेक्शन की शिकायत थी। अपने क्लीनिक के बाद जो भी समय मिलता हम इनसे मिलते और इन्हें बताते कि माहवारी पर चर्चा करना जरूरी है। इन दिनों सिर्फ सेनेटरी पैड का इस्तेमाल ही जरूरी नहीं है, साफ़-सफाई से लेकर खान पान पर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है।"

इन तीनों दोस्तों ने नव अस्तित्व फाउंडेशन नाम की एक संस्था की नीव रखी। जिसका काम शिक्षा के साथ-साथ महिलाओं और लड़कियों के बीच जाकर माहवारी विषय पर चर्चा करना है। इनकी कोशिश है कि इस साल बिहार में एक लाख ग्रामीण महिलाओं तक कम दरों में सेनेटरी पैड पहुंच सकें। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए 29 जुलाई 2017 को पटना के कंकड़बाग़ में बिहार के पहले सेनेटरी पैड बैंक की शुरुआत की गयी थी। अब तक छह सेनेटरी पैड बैंक की बिहार के अलग-अलग जगहों पर चल रही हैं।

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डॉ अर्चना कुमारी गांव के अलावा स्कूल में भी जाकर करती हैं माहवारी पर बात।

इस बैंक को पंचायत स्तर के लोग ही संचालित करते हैं। इस सेनेटरी बैंक से हर किसी की पासबुक बनाई जाती है जो पांच साल के लिए मान्य होती है। पल्लवी सिन्हा काम के दौरान अनुभवों को साझा करती हैं, "पिछले कुछ महीने पहले वैशाली जिले के लिटीयाही गांव में 250 महिलाओं और लड़कियों के बीच मीटिंग की थी जिसमें सिर्फ दो बच्चियों ने कहा वो सेनेटरी पैड के बारे में जानती हैं। ये सिर्फ इस गांव की स्थिति नहीं है, हम जहां भी मीटिंग करते हैं हर जगह की स्थिति लगभग एक जैसी होती है।"

वो आगे कहती हैं, "अपने काम के दौरान हमने पंचायत स्तर पर लोगों की मदद ली, जो हमारे साथ वालेंटियर काम करते हैं। जबसे पंचायत के लोगों की सहभागिता बढ़ी है और इन बैंको की शुरुआत हुई है तबसे अब ये लोग कम पैसों में सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने लगी हैं जिससे इनके स्वास्थ्य में पहले से सुधार हुआ है।"

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माहवारी पर सिर्फ चर्चा ही नहीं होती बल्कि उनके स्वास्थ्य का इलाज भी किया जाता है।

28 फरवरी 2018 को पटना जंक्शन पर और 8 मार्च को पटना एयरपोर्ट पर सेनेटरी बैंक लगने जा रहे हैं। अमृता सिंह का कहना है, "हमने ये लक्ष्य रखा है कि अगस्त 2018 तक एक लाख महिलाओं को इस बैंक के द्वारा सेनेटरी पैड उपलब्ध कराएं। अभी 20 रुपए में एक पैकेट इन्हें मिलता है जिसकी पासबुक में इंट्री होती है। ये महिलाएं हर महीने सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करें और दोबारा से लेने आएं ये भी सुनिश्चित करते हैं।"

बिहार में नवादा जिले से 30 किलोमीटर दूर गोविन्दपुर गांव में रहने वाले अमितेश सिंह गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "मैं अपने गांव और आसपास कई गांव की महिलाओं से माहवारी पर बात करता हूँ। उन्हें बताता हूं कि अगर उन्होंने इस बता पर बात करने में संकोच किया तो उन्हें कई बीमारियां हो सकती हैं। धीरे-धीरे अब ये बात करने लगी हैं समझने लगी हैं।" अमितेश की तरह सैकड़ों युवा और महिलाएं इन पैड वुमनिया के साथ जुड़कर माहवारी विषय पर चर्चा करने लगे हैं।

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टारगेट-अगस्त 2018 तक ये एक लाख महिलाओं को पहुंचाएंगी सेनेटरी नैपकीन।

                

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