बिहार बाढ़: पटना के कैंप में ना दवाई मिल रही है ना कम्युनिटी किचन में रोटी, चावल खा-खाकर लोग परेशान
बिहार में गंगा, कोसी, गंड़क और बागमती समेत कई नदियां एक बार फिर कहर मचा रही है। प्रदेश के 16 जिलों के करीब 70 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित है। लाखों लोग कैंपों में रह रहे हैं। पटना कैंप में रह रहे लोगों का आरोप है कि उन्हें खाने में सिर्फ चावल मिल रहे हैं।
Rahul Jha 23 Aug 2021 8:33 AM GMT

बिहार में मुंगेर जिले की टिकरामपुर पंचायत के घरों में पानी भरने के बाद सुरिक्षत स्थानों को जाते लोग। फोटो- अरेंजमेंट
पटना (बिहार)। हर साल की तरह बिहार में एक बार फिर बाढ़ से चौतरफा बर्बादी दिख रही है। आंकड़े बता रहे हैं कि 16 जिलों की 70 लाख से ज्यादा की आबादी बाढ़ से प्रभावित है। वहीं 24 लोग अब तक जान गंवा चुके हैं। सरकार की नींद तब खुली जब राजधानी पटना पर भी संकट मंडराने लगा। पटना में भी एक बड़ा इलाका गंगा की चपेट में है।
राजधानी पटना के पटना विश्वविद्यालय के पास सरकार के द्वारा सामुदायिक किचेन के साथ-साथ राहत कैंप भी चलाया जा रहा हैं। इस कैंप में लगभग 300-350 लोग हैं। जिसमें पुरुष, महिलाओं के साथ-साथ बच्चे भी शामिल हैं। कैम्प में पटना जिला के लोग के साथ-साथ पटना से सटे मोकामा दियारा के रहवासी भी हैं। प्रभावित लोगों में ज्यादातर दानापुर और बख्तियारपुर ब्लॉक के रहने वाले हैं। जो प्रकृति के त्रासदी के साथ सरकार की उदासीनता के भी शिकार हैं।
"कैंप में 10 दिन से सिर्फ चावल मिल रहा है। बच्चों की तबीयत खराब हो रही है। सरकार के तरफ से दवाई भी नहीं मिल रही है।" अन्नपूर्णा देवी (45वर्ष) कहती है।
ऐसा कहते हुए उनकी आंखों में प्रशासन के लिए गुस्सा भी था और बेबसी भी। वो दानापुर से 17 अगस्त को पटना कैम्प में रहने के लिए आई थीं। बाढ़ में अपना घर और बहुत कुछ गंवाने वाले लोग जब राहत कैंप पहुंच रहे हैं उन्हें वहां भी मुश्किलें ही मिल रही है।
"सिर्फ चावल दिए जाने से छोटे-छोटे बच्चे बीमार हो रहे हैं। बीमार बच्चों के कारण हम लोगों की मुश्किल बढ़ रही है। ना सोने का व्यवस्था है ना ठीक से रहने का हैं।" बेबसी की ये कहानी 27 वर्षोय आशा सुना रहीं थीं, जो तीन छोटे-छोटे बच्चों को लेकर मोकामा से पटना आई थीं।
इस बारे में बात करने पर बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग में विशेष कार्य अधिकारी अविनाश कुमार गांव कनेक्शन को बताते हैं, "बच्चों के लिए रोटी और बीमार व्यक्तियों के लिए दवाई की व्यवस्था कराने की कोशिश हमलोग कर रहे हैं। आपदा के वक्त लोगों को समस्याएं तो झेलना ही पड़ता है लेकिन हम लोगों के पास जो संसाधन हैं उसमें बेहतर करने का कोशिश कर रहे हैं।"
यहां दो टाइम खाने को मिल जाए, आप सैनेटरी पैड की बात करते हैं
कैंप में खाने पीने से लेकर सोने की जगह तक की दिक्कते हैं ऐसे में महिलाओं की पीरियड्स से संबंधी मुश्किलें और बढ़ जाती हैं। प्रशासन का दावा है कि कैंप में सैनेटरी पैड वितरित किए जा रहे हैं, लेकिन पटना कैंप की एक युवती ने न छापने की शर्त पर कहा, "यहां दो टाइम खाने को मिल जाए, आप सैनेटरी पैड की बात करते हैं।"
ये मुद्दा गंभीर है जिस पर आम दिनों में बातें नहीं होती, बाढ़ में तो उन्हें बिल्कुल अनदेखा कर दिया जाता है, जबकि इस दौरान संक्रमण की आशंका ज्यादा रहती है।
पटना के ही राहत कैंप के बाहर एक किताब पढ़ रहे रोहित बाढ़ के बारे में कहते हैं, "बाढ़ अतिथि तो नहीं हैं कि यह अचानक आती है। इसके आने की तिथियां लगभग तय हैं। इसके बावजूद भी सरकार ऐसा व्यवहार करती हैं कि यह अचानक आई विपत्ति है। इसके पहले जो तैयारियां करनी चाहिए, वे बिल्कुल नहीं हो पाती हैं। दो टाइम खाना मिलता है वह भी वक्त पर नहीं, ना महिलाओं के लिए बाथरूम की व्यवस्था हैं ना सोने का"
बातचीत के दौरान प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे 24 वर्षीय रोहित कैंप की अव्यवस्था पर नाराजगी जताते हैं लेकिन यहां रहना उनकी मजबूरी है।
गांव कनेक्शन ने कैंप की समस्याओं और सुविधाओं को लेकर वहां काम कर रहे कर्मचारियों से बात की। कर्मचारियों ने अपना नाम न लिखने की शर्त पर कहा, "सरकार के बड़े अधिकारियों के आदेश पर ही हम लोग काम कर रहे हैं।"
21 अगस्त को समस्तीपुर में कई बाढ़ का जायजा और राहत शिविरों के निरिक्षण के बाद मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने मीडिया से कहा, लोगों के रहने, लोगों के खाने के साथ ही पीड़ित परिवारों को जो सहायता दी जाती है उसका इंतजाम हम लोग हर जगह कर रहे हैं। पशुओं की देखभाल का भी काम हो रहा है।
बिहार बाढ़ का बदलता स्वरूप: कोसी से ज़्यादा अन्य नदियों का क़हर
यूं तो बिहार का शोक कोसी को कहा जाता है लेकिन इस बार कोसी से ज्यादा गंगा और अन्य नदियां उफान पर हैं। कोसी के केन्द्र में स्थित उत्तरी बिहार से भयावाह स्थिति इस बार पूर्वी बिहार की हैं। बिहार में गंगा और बूढ़ी गंडक नदी उफान पर हैं।
पटना, भागलपुर, बेगूसराय,और मुंगेर में गंगा का कहर है तो वहीं अररिया के लोग बकरा नदी में आई बाढ़ से अपने घरों को छोड़कर बांध पर शरण लिए हुए हैं। पटना शहर में लगभग सभी जगहों पर गंगा का पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा हैं। दीघा घाट में गंगा 89 तो गांधी घाट में 12 सेमी ऊपर बह रही है। वहीं ग्रामीण इलाकों की बात करें तो गंगा नदी के अलावा सोन नदी और पुनपुन नदी में पानी के बढ़े जलस्तर के वजह से ग्रामीण इलाकों की स्थिति और भी भयावह हैं।
बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग की 23 अगस्त की जानकारी के अनुसार बागमती नदी, मुजफ्फरपुर में 71 सेंटीमीटर और बूढी़ गंडक खगड़िया में 118 सेमी और कमला झंझारपुर में 25 सेमी ऊपर बह रही है। कमला नदी जयनगर में भी लाल निशान से पांच सेमी ऊपर चढ़ गई है।
#WaterLevelUpdate: 23 August 2021
— Water Resources Department, Government of Bihar (@WRD_Bihar) August 23, 2021
➡️ Ganga is flowing below danger level at Gandhi Ghat. Current water level is 48.48 m.
➡️ Burhi Gandak is flowing above danger level in Samastipur (Rising trend) and Khagaria. #BiharFloodManagement #HelloWRD @officecmbihar pic.twitter.com/xjcODe1Wse
हाजीपुर के प्रसिद्ध केले की फसल भी बर्बाद हो गई
राजधानी पटना से 30 किलोमीटर दूर एक शहर हैं, हाजीपुर, जो केले को लेकर बहुत प्रसिद्ध है लेकिन इस बार गंगा और गंडक नदी में आई बाढ़ ने वैशाली जिले के हाजीपुर में केले की फसल को पूरी तरीके से बर्बाद कर दिया है।
हाजीपुर के 52 वर्षीय केला किसान दिलीप शाह बाढ़ की वजह से घर छोड़कर अपने बेटे के पास हैं, जो पटना में एक छोटे से कमरे में रहकर बैंकिंग की तैयारी करता है।
वो फोन पर बताते हैं कि, "किसानों को कुछ सूझ नहीं रहा है कि क्या करें? यहां के हजारों किसानों का एकमात्र साधन केला की फसल ही है। इसी तरह बारिश होती रही तो जो बचा हैं उसे भी नहीं बचाया नहीं जा सकता है।"
वैशाली जिले के हाजीपुर में लोदीपुर और मालीपुर इलाकों पूरी तरीके से जलमग्न हैं। केले की फसल किसानों के आंखों के सामने पानी में बह गई है। जो थोड़ा बहुत बच गया है, किसान उसे बाजार में बेच कर दो पैसा कमाने की कोशिश में हैं।
खेत मजदूर यूनियन के किसान नेता महेश राय हाजीपुर से गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, "राज्य सरकार द्वारा आर्थिक सहायता के लिए कुछ घोषणाएं की गई हैं, लेकिन जमीन पर स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है।"
पानी ही पानी ने लाखों लोगों को किया बेघर
बिहार बाढ पर वर्षों से काम कर रहे नदी और बाढ़ विशेषज्ञ दिनेश मिश्रा बताते हैं कि, " हर वर्ष एक निश्चित समय पर पूरा बिहार बाढ़ मय रहता हैं। सरकार हवाई दौरे और राहत शिविरों के सिवाय कोई भी ठोस कदम नहीं उठाती हैं। और ना ही विपक्ष इस मुद्दे को चुनाव में कभी भी गंभीरता से उठाता है। इस कारण से बिहार के लोग इस आपदा के साथ जीना सीख गए हैं।"
वैशाली, भागलपुर, मुंगेर, भोजपुर या फिर कटिहार, पूर्णिया, सभी जगह बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है और इलाके जलमग्न हो चुके हैं।
आधी रात आई बाढ़ सब कुछ बहा ले गई
भागलपुर के खरीक प्रखंड के चोरहर पंचायत की 23 वर्षीय आशा बताती है कि, "14 अगस्त के दिन आधी रात गंगा जी घर में आ गई थीं। हमलोग तुरंत छत पर आ गए। निकलने का मौका भी नहीं मिला और निकल कर जाते भी कहां? घर का सामान कहां छोड़ते। सांपों की वजह से हमलोग रात में सो भी नहीं पाते हैं।"
चोरहरा पंचायत के ही बुजुर्ग नानू लाल यादव (67वर्ष) का कहना है कि, " सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिल रही है। न तो विधायक, न सांसद और न मुखिया की ओर से ग्रामीणों की मदद की कोशिश की गई हैं। गंगा के बढ़ रहे जलस्तर से आशंका है कि गांव पूरी तरह जलमग्न हो सकता है।"
अकेले भागलपुर जिले के 502 गांव बाढ़ की चपेट में हैं। लगभग आठ लाख आबादी बाढ़ से प्रभावित है वहीं 123 पंचायत और 15 प्रखंडों में बाढ़ का पानी फैल चुका है।
बेगूसराय के मटिहानी अनुमंडलीय लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी धीरेंद्र मिश्रा के मुताबिक प्रभावित लोगों के लिए हर तरह के इंतजाम किए जा रहे है। जिसमें मवेशियों के लिए भी आवश्यकता अनुसार चारा उपलब्ध कराने, सतत बिजली आपूर्ति करने और राहत केंद्र में रह रहे लोगों को राहत किट शामिल है।
गांव कनेक्शन को वो बताते हैं, "गंगा का जिस रफ्तार से जलस्तर बढ़ा था उसी रफ्तार से घटना भी शुरू हो गया है। इसलिए डीएम सर के निर्देश पर नगर निगम एवं ग्रामीण क्षेत्र के प्रभावित इलाकों में ब्लीचिग पाउडर का छिड़काव शुरू कर किया गया है। हम बेहतर करने का कोशिश कर रहे हैं।"
ग्राउंड रिपोर्ट: घाघरा की बाढ़ से कई गांवों में कटान, जलस्तर घटने-बढ़ने से दहशत में ग्रामीण
राजधानी पटना के हालात गंभीर
पटना शहर में लगभग सभी जगहों पर गंगा का पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा हैं। वहीं ग्रामीण इलाकों की बात करें तो गंगा नदी के अलावा सोन नदी और पुनपुन नदी में पानी के बढ़े जलस्तर के वजह से ग्रामीण इलाकों की स्थिति और भी भयावह हैं।
ग्रामीण पटना में बख्तियारपुर और मोकामा को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 31 पर बाढ़ का पानी चढ़ने से लोगों को अपना घर-बार छोड़कर सरकार के राहत शिविरों में शरण लेना पड़ रहा है। पटना जिला प्रशासन के मुताबिक, पटना के ग्रामीण क्षेत्रों के नौ ब्लॉकों के 43 पंचायतों के रहने वाले कुल 2.74 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। प्रभावित लोगों में से आधे से ज्यादा दानापुर, मनेर और बख्तियारपुर ब्लॉक के रहने वाले हैं।
राहत एवं बचाव कार्य में सरकार के द्वारा 259 नावों को लगाया गया है। साथ ही सुरक्षित निकाले गए लोगों को राहत शिविरों में रखा जा रहा है और उनके भोजन की व्यवस्था सामुदायिक रसोई से की गई है। नदी का पानी शहर में घुसने से रोकने के लिए फरक्का बांध के गेट खोले गए हैं, लेकिन ऊपर से लगातार आ रहे पानी के कारण बाढ़ की स्थिति बन गई है।
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