बिहार: सौर ऊर्जा और जल विद्युत डगमारा परियोजना बंद, कहीं खुशी, कहीं मायूसी

बिहार के सुपौल जिल में प्रस्तावित डगमारा जल विद्युत और सौर ऊर्जा एकीकृत परियोजना पर परियोजना को बंद करने का निर्णय लिया गया है। इस परियोजना को सरकार और एक वर्ग कोसी इलाके के लिए वरदान बता रहा था तो नदी और पर्यावरण के जानकार डेथ वारंट। जानिए क्या थी परियोजना और अब क्या है लोगों की प्रतिक्रिया।

Rahul JhaRahul Jha   11 Jan 2022 1:21 PM GMT

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बिहार: सौर ऊर्जा और जल विद्युत डगमारा परियोजना बंद, कहीं खुशी, कहीं मायूसी

कोसी की डमगारा परियोजना जिसे अब बंद करने का फैसला लिया गया है। 

सुपौल (बिहार)। कोसी इलाके की डगमारा परियोजना को पिछले साल ही करीब 56 साल बाद हरी झंडी मिली थी और इस साल 7 जनवरी को योजना को बंद करने का फैसला किया गया। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण ने परियोजना की लागत और बिजली उत्पादन की लागत ज्यादा होने समेत कई बिंदुओं के चलते बंद करने का फैसला किया। इस प्रोजेक्ट के जरिए कहा जा रहा था कोसी के एक बड़े इलाके सलाना बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति मिलेगी और बिजली भी बनेगी। अब परियोजना पर तालेबंदी की खबर से कहीं खुशी तो कहीं मायूसी है।

डगमारा परियोजना की सबसे पहले बात 1965 में हुई जब केंद्रीय जल आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष कंवरसेन ने कोसी इलाके के लिए डगमारा में दूसरे बैराज की आवश्यकता पर बल दिया गया था। लेकिन परियोजना को औपचारिक हरी झंडी मिलने में 56 साल लग गए। 130 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता का यह प्रोजेक्ट कोसी बैराज से डाउन स्ट्रीम में करीब 60 किलोमीटर नीचे और कोसी महासेतु से थोड़ा ऊपर बनना था। यह बहुउद्देशीय हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट था, जिसकी लागत 2 हजार 400 करोड़ रुपए अनुमानित थी। 14 जून 2021 को भारत सरकार के नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन और बिहार राज्य जल विद्युत निगम के साथ दिपक्षीय समझौता (MOU) हो गया है। इससे पहले 18 अप्रैल, 2021 को नीतीश कुमार कैबिनेट ने योजना के मौजूदा स्वरूप को स्वीकृति दी थी। गांव कनेक्शन ने इस संबंध में 29 जून 2021 को विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी।

डगमारा परियोजना के तहत कोसी नदी के बाएं एवं दाएं दोनों ओर एक-एक पावर हाउस बनना था। बिहार सरकार के मुताबिक इस परियोजना के पूरा होने के बाद सुपौल सहित सात जिलों को लाभ होगा। इनमें दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, मधेपुरा और अररिया शामिल थे। लेकिन नदी और बाढ़, खासकर कोसी को समझने वालों के मुताबिक ये परियोजना बाढ़ से बचाने नहीं बल्कि इलाके को डुबाने वाली थी। इसलिए वो लगातार इसका विरोध कर रहे थे। अब जबकि इस परियोजना को आगे न बढ़ाने का निर्णय लिया गया है, विरोझ करने वाले खुश है और डगमारा के सहारे अपने इलाके में विकास का सपना देखने वाले लोग मायूस हैं।

"डगमारा परियोजना स्थल से नजदीक में हमारा 4 से 5 कट्ठा (20 कट्टा एक एकड़) जमीन है। उसका रेट भी अचानक बढ़ गया था। पहली बार दिल्ली और पंजाब रुपया कमाने वाले लोगों को अपने गांव में रोजगार की आशा की किरण नजर आई थी। हमारे दो भाई भी दिल्ली में रहकर गुजारा कर रहे हैं। अचानक सुबह में व्हाट्सएप पर मैसेज देखा कि डगमारा प्रोजेक्ट बंद हो गया। ऐसा लग रहा है कि सब सपना खत्म हो गया।" डगमारा गांव के मनोज मिश्रा गांव कनेक्शन को बताते हैं।

डगमारा प्रोजेक्ट का ले-आउट प्लान- फोटो- साभार प्री फिजिबिलटी रिपोर्ट

"पर्यावरण मंत्रालय की कमेटी के सवालों से लगता था परियोजना कोसी क्षेत्र के लिए डेथ वारंट है"

कोसी नवनिर्माण मंच और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े महेंद्र यादव उन लोगों में से एक हैं, जिन्होंने परियोजना के प्रतिकूल प्रभावों को लेकर लगातार आवाज़ उठाते रहे हैं। महेंद्र यादव गांव कनेक्शन से कहते हैं, "2012 में इस प्रोजेक्ट को लेकर पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) ने कई गंभीर सवाल उठाए थे। इस सवाल के आधार पर यही लगता था कि यह परियोजना कोसी क्षेत्र का डेथ वारंट है।"

वो आगे कहते हैं, "इसी मानसून (2021) सीजन में डगमारा पंचायत के ही सिकरहटा (चुटीआहि) में सुरक्षा बांध टूट गया था। वैसे भी रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट पहाड़ी इलाकों के होते हैं, कोसी के मैदानी इलाकों में वो सफल नहीं हो पाता जहां इतनी सिल्ट आती है। वहां की परिस्थिति को देखकर स्पस्ट लगता था कि यह ठेकेदारों के फायदे के लिए परियोजना लायी जा रही है।"

कोसी नदी प्रोजेक्ट पर काम कर चुके रिटायर्ड इंजीनियर अमोद कुमार झा बताते हैं, "इससे पहले कोसी नदी पर बने भीमनगर बराज का निर्माण 15 मेगावाट बिजली उत्पादन लक्ष्य के साथ हुआ था। लेकिन उस परियोजना के जरिये कभी तीन मेगावाट से अधिक बिजली का उत्पादन नहीं हुआ। अक्सर देखा गया है कि मैदानी नदियों पर बनने वाली पनबिजली परियोजनाएं पचास फीसदी भी बिजली उत्पादित नहीं कर पातीं। साथ ही यह कहना कि इस परियोजना से बाढ़ घटेगी बकवास के सिवाय कुछ नही हैं। क्योंकि इससे पहले कोसी नदी पर बने बांध से बाढ़ रूक पाई है और कितना रूक पाई है?"

डगमारा परियोजना रन ऑफ द रिवर थी, जिममें तेज बहाव वाले पानी से बिजली बनाने का काम होता है। लेकिन नेपाल के रास्ते बिहार आने वाली कोसी अपने साथ इतनी सिल्ट लेकर आती है कि हजारों हेक्टेयर ही ही नहीं कई किलोमीटर के इलाके में कई फीट ऊंची सिल्ट पाट देती है।

अक्टूबर 2012 में पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति के सवाल

2012 को दिल्ली में हुई एक्सपर्ट कमिटी की बैठक में प्रोजेक्ट को लेकर पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) ने निम्न आपत्तियां दर्ज करायी थीं।

-बार-बार धारा बदलने वाली कोसी नदी पर यह परियोजना कितना सफल होगा?

-130 मेगावाट के हिसाब से डूब का क्षेत्र काफी बड़ा है, इस परियोजना के आर्थिक व्यावहारिकता पर फिर से विचार होना चाहिए।

- हजारों हेक्टेयर से ज्यादा जमीन डूबेगी। जाहिर सी बात है कई गांव और हजारों परिवार विस्थापित होंगे। उनके विस्थापन का क्या होगा?

- नदी में रहने वाली मछलियों और डॉलफिन पर इस परियोजना का क्या असर होगा?

कोसी बैराज

भारत और राज्य दोनों के ऊर्जा मंत्री सुपौल जिले से हैं परंतु सुपौल जिला का एकमात्र विद्युत उत्पादन इकाई ने चालू होने से पहले ही दम तोड़ दिया।

नीतीश कुमार कैबिनेट ने योजना के मौजूदा स्वरूप को स्वीकृति दी थी। उसके बाद डगमारा गांव एक व्यवसायिक जगह के रूप में जाने जाना लगा। आसपास के इलाकों में रोजगार की संभावनाएं दिखने लगी।

डगमरा गांव के निवासी बृज बिहारी सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, "इस परियोजना के बाद गांव के उपजाऊ और गैर उपजाऊ दोनों जमीन की कीमतों में अचानक उछाल आ गया था। साथ ही कोसी जैसे क्षेत्र जहां अधिकांश लोग पंजाब और दिल्ली के भरोसे रहते हैं। उनके लिए आशा की एक किरण आई थी। वह भी खत्म हो गया। सब खत्म हो गया।"

डगमारा के मनोज मिश्रा बताते हैं कि, "भारत सरकार के ऊर्जा मंत्री और राज्य के ऊर्जा मंत्री दोनों सुपौल जिले से हैं परंतु सुपौल जिला का एकमात्र विद्युत उत्पादन इकाई चालू होने से पहले ही दम तोड़ चुका है। यह सुपौल का दुर्भाग्य ही है।"

डगमारा के ही वार्ड जनप्रतिनिधि भोला मंडल बताते हैं कि, "हमलोग ने बाढ़ के संग जिंदगी जीने की आदत डाल ली है। मतलब बाढ़ कोसीवासियों की जीवनशैली का एक हिस्सा है। बाढ़ से तबाही होगी इसलिए। विनाश से हम डर कर विकास ठप कर देंगे। पता नहीं लोग इसे अच्छी खबर क्यों बता रहे हैं?"

क्या चुनावी स्टंट था डगमारा परियोजना?

बिहार के ऊर्जा मंत्री और जेडीयू विधायक बिजेंद्र यादव जिन्हें कोसी इलाका का विश्वकर्मा कहा जाता है। डगमरा प्रोजेक्ट भी उन्हीं का ड्रीम प्रोजेक्ट था। परियोजना बंद होने के बाद वह बताते हैं कि, "सरकार डगमारा प्रोजेक्ट को पूरी करने की कोशिश कर रही थी। लेकिन उत्पादन लागत अधिक होने के वजह से डागमारा पनबिजली परियोजना को बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बच जाता है। इसलिए सरकार ने डागमारा पर आगे काम नहीं करने का निर्णय लिया है।"

2020 विधानसभा चुनाव में बिजेंद्र प्रसाद यादव के खिलाफ खड़े होने वाले कांग्रेस प्रत्याशी मिन्नत रहमानी गांव कनेक्शन को बताते हैं कि, " विश्वकर्मा का ड्रीम प्रोजेक्ट एक चुनावी स्टंट था। चुनाव से पहले 5-6 साल सुपौल वासियों को 2400 सौ करोड़ के प्रोजेक्ट का सपना दिखाया। फिर अचानक चुनाव के बाद सब खत्म। डगमारा पन बिजली एक मात्र ऐसी परियोजना थी जिससे हज़ारों परिवारों को रोज़गार मिल सकता था। पहाड़ काट कर भी देश में कई जगह बिजली योजना चलाई जा रही है। सुपौल जैसे जगह पर तो उसके तुलना में सिर्फ़ पचास प्रतिशत ही लागत है। महज राजनीतिक फ़ायदे के लिए इस तरह गुमराह करना उचित नहीं।"

क्यों बंद हुई देश की पहली एकीकृत सौर ऊर्जा और जल विद्युत परियोजना

परियोजना की मंजूरी के बाद से ही क्षेत्र के कई गैर राजनीतिक संगठन इस परियोजना को बंद कराने के लिए आंदोलन कर रहे थे। इसमें कोसी नव निर्माण मंच अग्रणी भूमिका में था। हालांकि यह मंच जिस आधार पर इस परियोजना को बंद कराने के लिए कह रहा था। उस आधार पर परियोजना बंद नहीं किया गया है।

प्राधिकरण के सचिव विजय कुमार मिश्र ने एनएचपीसी के सीएमडी को एक पत्र लिख कर परियोजना को बंद करने की जानकारी दी। इस पत्र में लिखा था कि डागमारा से बिजली के उत्पादन पर प्रति मेगावाट 43.39 करोड़ रुपये खर्च होंगे, जो दूसरी पनबिजली परियोजनाओं से 10 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट अधिक है। साथ ही डागमारा की बिजली वितरण लागत प्रति यूनिट 18.67 रुपये आयेगी, जो साधारण दर से काफी अधिक है। प्रस्तावित डीपीआर में कोसी मेची लिंक प्रोजेक्ट के लिए अपस्ट्रीम में पानी के किसी मोड़ के कारण परियोजना की स्थापित क्षमता 130 मेगावॉट से और कम हो सकती है।

बार-बार अटकाया गया डगमारा परियोजना

डगमारा परियोजना 1965 में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष कंवरसेन ने कोसी इलाके के लिए डगमारा में दूसरे बैराज की आवश्यकता पर बल दिया गया था। इस परियोजना को 2006-07 के में ही शुरुआत में ही अनुमति मिल गई थी। मगर पड़ोसी देश नेपाल से परमिशन नहीं मिलने के कारण मामला अटक गया था। फिर वर्ष 2007, जब परियोजना निर्माण में एशियन डवलपमेंट बैंक (ADB) ने रुचि दिखाई जिसके बाद विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन बनाने का कार्य केन्द्रीय जल संसाधन विभाग की एजेंसी वैपकास को सौंपा गया। 25 अप्रैल 2012, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के स्तर पर इस परियोजना की तकनीकी स्वीकृति के लिए अंतर मंत्रालयी समिति में विस्तार से चर्चा हुई थी। तब यह सहमति बनी थी कि आगे के काम के लिए बढ़ा जाए। फिर 14 जून 2021 को भारत सरकार के नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन और बिहार राज्य जल विद्युत निगम के साथ दिपक्षीय समझौता के तहत नीतीश कुमार कैबिनेट ने योजना के मौजूदा स्वरूप को स्वीकृति दी थी। जो फिर एक बार बंद हो गया है।

राज्य सरकार ने संशोधित डीपीआर बनायी थी

सुपौल जिला के ग्राम्यशील एनजीओ के संस्थापक चंद्रशेखर झा बताते हैं कि, " बिहार सरकार का आंकलन था कि डागमारा के साकार होने से राज्य को हर साल 375 करोड़ की बचत होगी। इसके साथ ही कोसी के एक बड़े भू-भाग को बाढ़ से मुक्ति भी मिलेगी। परियोजना पर 2400 करोड़ खर्च होने का अनुमान था। प्राधिकरण के पत्र ने इस परियोजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया। फिर राज्य सरकार ने संशोधित डीपीआर बनायी थी। जिसके बाद केंद्रीय मंत्री आरके सिंह और बिहार के ऊर्जा सचिव संजीव हंस के साथ हुई इस बैठक में डागमारा की केंद्र से सहमति मिली थी।"

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