बिहार: सुपौल में डगमारा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से कोसी के इलाके को लोगों को क्या मिलेगा?

कोसी इलाके में एक नया बांध बनाए जाने को हरी झंडी मिल गई है। डगमारा हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए कहा जा रहा है कि इससे बिजली बनेगी और रोजगार के अवसर पैदा होंगे। पर्यावरण-नदी के जानकार सवाल पूछ रहे कि हजारों विस्थापितों को क्या मिलेगा? और क्या कोसी जैसी नदी में 'रन ऑन रिवर प्रोजेक्ट' सफल होंगे?

Rahul JhaRahul Jha   29 Jun 2021 10:59 AM GMT

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बिहार: सुपौल में डगमारा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से कोसी के इलाके को लोगों को क्या मिलेगा?

बिहार के सुपौल जिले में कोसी नदी पर बनाया जाना है डगमारा हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट।

सुपौल (बिहार)। भारत और नेपाल की सीमा पर बसा बिहार का सुपौल जिला अक्सर कोसी नदी के कारण आने वाली बाढ़ के कारण सुर्खियों में रहता है। 'कोसी' को बिहार का शोक भी कहा जाता है। इसी सुपौल जिले के डगमारा में कोसी नदी पर 130 मेगावाट बहुउद्देशीय डगमारा जल विद्युत परियोजना के लिए राज्य सरकार ने मंजूरी दे दी है। बिहार सरकार के मुताबिक डगमारा में बनने वाली पनबिजली परियोजना देश की पहली एकीकृत सौर ऊर्जा और जल विद्युत परियोजना होगी।

130 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता का यह प्रोजेक्ट कोसी बैराज से डाउन स्ट्रीम में करीब 60 किलोमीटर नीचे और कोसी महासेतु से थोड़ा ऊपर बनेगा। यह बहुउद्देशीय हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट है जिसकी लागत 2 हजार 400 करोड़ रुपए अनुमानित है। 14 जून 2021 को भारत सरकार के नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन और बिहार राज्य जल विद्युत निगम के साथ दिपक्षीय समझौता (MOU) हो गया है। इससे पहले 18 अप्रैल, 2021 को नीतीश कुमार कैबिनेट ने योजना के मौजूदा स्वरूप को स्वीकृति दी थी।

कोसी नदी के बाएं एवं दाएं दोनों ओर एक-एक पावर हाउस बनाया जायेगा। बिहार सरकार के मुताबिक इस परियोजना के पूरा होने के बाद सुपौल सहित सात जिलों को लाभ होगा। इनमें दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सहरसा, मधेपुरा और अररिया शामिल हैं।

एमओयू पर हस्ताक्षर होने के बाद डगमरा परियोजना को लेकर इलाके में काफी हलचल है। कोसी इलाके के लोगों परियोजना में बिजली के साथ रोगजार के अवसर भी देख रहे हैं। तो पर्यावरण और नदी के जानकार प्रोजेक्ट के इलाके की भागौलिक स्थिति, पर्यावरण और विस्थापन को लेकर सवाल पूछ रहे हैं।

डगमरा गांव के निवासी बृज बिहारी सिंह (66 वर्ष) फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, "यह परियोजना इस क्षेत्र के लिए उम्मीद की एक किरण थी। जो अब पूरी होती दिखाई दे रही है।"

इसी गांव के निवासी और खाद-बीज की दुकान चलाने वाले नारायण रजक (62 वर्ष) इस बिजली प्रोजेक्ट में भविष्य की संभावनाएं देख रहे हैं। वे कहते हैं, "कोरोना के इस भीषण काल में बेरोजगारी अपने चरम पर है। ये परियोजना युवाओं में रोजगार के लिए एक नई किरण भी आई है।"

कोसी स्थित हनुमान नगर बराज के निर्माण के बाद वर्ष 1965 में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष कंवरसेन के द्वारा डगमारा में दूसरे बैराज की आवश्यकता पर बल दिया गया था, ताकि कोसी के कटाव की विभीषिका को निचले स्तर पर भी नियंत्रित किया जा सके। लेकिन 56 साल बाद इसे मंजूरी मिली है।

प्रोजेक्ट के मुताबिक डगमरा परियोजना (Dagmara hydroelectric project) में बिजली के साथ सौर ऊर्जा और मछली उत्पादन को भी शामिल किया गया है। रिजर्व वायर में सिंचाई और फिशिंग का भी काम हो सकेगा। प्रवासी पक्षियों के लिए पक्षी अभयारण्य भी विकसित किया जाने की चर्चा है, जिससे पर्यटक आएंगे।

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सुपौल जिले का डगमारा गांव जहां प्रस्तावित है डगमारा हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट। फोटो- राहुल कुमार

कोसी जैसी सिल्ट वाली नदी में 'रन ऑफ द रिवर' प्रोजेक्ट पर सवाल

डगमारा प्रोजेक्ट को लेकर कई सवाल भी हैं, आखिर इतने लंबे समय तक अटकी क्यों रही? जो लोग बांध के दायरे में आएंगे, उनका विस्थापन कैसे होगा, विस्थापन के बाद उनके घर और खेत के बदले क्या मिलेगा?

कोसी नवनिर्माण मंच और जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े महेंद्र यादव डगमारा प्रोजेक्ट के दूसरे पक्ष पर बिंदुवार सवाल उठाते हैं।

"डीपीआर को लेकर जो प्रचारित किया जा रहा है। सुपौल के लिए ये परियोजना वरदान साबित होगी। लेकिन उन पर कहीं चर्चा नहीं है जो इस प्रोजेक्ट को लेकर पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) ने 2012 में उठाए थे। " ईएसी expert appraisal committee से संबंधित विस्तृत रिपोर्ट यहां पढ़ें-

वो आगे कहते हैं, " 7500 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन डूबेगी। जाहिर सी बात है कई गांव और हजारों परिवार विस्थापित होंगे। उनके विस्थापन का क्या होगा? रन ऑफ द रिवर प्रोजेक्ट पहाड़ी इलाकों के होते हैं, कोसी के मैदानी इलाकों के लिए वो कितने सफल होंगे, जहां इतनी सिल्ट आती है। ये भूकंप जोन में है। इसके अलावा कई पर्यावरण से जुड़े सवाल है, इतना बड़ा जलाशय बनेगा। उसकी सुरक्षा जैसे तमाम सवालों के जवाब कोसी और उसके आसपास के लोगों को मिलना चाहिए।"

महेंद्र यादव आगे कहते हैं, "इस प्रोजेक्ट को लेकर कई सवाल जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। कोसी बैराज से निकली पूर्वी नहर मुख्य नहर पर कटैया हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बना था वो तो ठीक से काम नहीं कर रहा। पर्यावरण की एक्सपर्ट कमेटी (2012) में सवाल पूछा था कि सिल्ट आएगी उसका क्या होगा?2008 में कोसी बांध टूटने से तबाही सबने देखी थी है। इसलिए पर्यावरण से जुड़े मुद्दे को लेकर लोगों को बताए जाने और कमेटी ने जो सवाल उठाए थे, उनके जवाब मिलने चाहिए।"

अक्टूबर 2012 में पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति के सवाल

डगमारा प्रोजेक्ट से क्या बाढ़ से निजात मिलेगी?

बिहार सरकार के जल संसाधन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य का 68,800 वर्ग किमी हर साल बाढ़ में डूब जाता है। कोसी का पानी सीमांचल और मिथिलांचल इलाके में तबाही मचाता है। लेकिन क्या उत्तरी बिहार में मानसून के हर सीजन में तबाही मचाने वाली कोसी की बाढ़ पर भी कोई असर पढ़ेगा?

इस सवाल के जवाब में कोसी नदी और बाढ़ पर लंबे समय से काम कर रहे डॉक्टर दिनेश कुमार मिश्रा कहते हैं, "बाढ़ से बचाव और इस परियोजना का कोई तालमेल नहीं है। और अगर कोई नेता इस बात का भरोसा दिलाता है कि यह बांध बाढ़ से राहत देगा तो उनसे मेरा सिर्फ एक ही सवाल है। क्या इससे पहले कोसी नदी पर बने बांध से बाढ़ रूक पाई है और कितना रूक पाई है?"

सुपौल के जनप्रतनिधि और बीजेपी के जिलाध्यक्ष राम कुमार राय कहते हैं "इस परियोजना में आठ किलोमीटर लंबा और 15 किलोमीटर चौड़ा रिजर्व वायर का निर्माण होना है। इसके बनने से बांध को मजबूती मिलेगी।"

तिब्बत से निकलकर नेपाल में अपने साथ कई नदियों को समेटते हुए भारत आने वाली कोसी पर साल 1954 में वीरपुर में बैराज बनाया गया था। इसके दोनों तरफ तटबंध बनाए बनाने की शुरुआत हुई थी, जिसका शिलान्यास सुपौल के बैरिया गांव में वर्ष 1955 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। तटबंध के बीच में आए सैकड़ों गांवों के लिए ये किसी आपदा से कम नहीं। तटबंध बनने से बाहर के गांव तो एक हद तक सुरक्षित हुए लेकिन अंदर के लोगों की मुसीबतें और बढ़ गईं। वे बाढ़ का दंश सबसे ज्यादा झेलते रहे। अब 6 दशक बाद एक बार फिर लोगों में उम्मीदें जगी हैं।

भपटियाही निवासी संजय कुमार महतो (43 वर्ष) किराना दुकान चलाते हैं। उन्हें उम्मीद है बिजली प्रोजेक्ट से बिजली और रोजगार दोनों मिलेंगे।

कोसी से जुड़ी परियोजनाओं पर नजर रखने वाले सुपौल के सामाजिक कार्यकर्ता चन्द्रशेखर जी कहते हैं, "कोसी क्षेत्र का आधार कोसी नदी है। इसलिए इसकी व्यवस्था को देखते हुए इस नदी के साथ संबंध पूर्वक जीना ही यहां के लोगों के लिए सुविधाजनक होगा। और पुरानी गलतियों से देखते हुए (सबक) लेकर डगमरा जैसी परियोजना को साकार करना कोसी वासियों के लिए सुविधाजनक होगा।"

रोजगार और बिजली के मुद्दे पर डॉक्टर दिनेश कुमार मिश्रा कहते हैं, "अगर इस परियोजना से लोगों को रोजगार मिल रहा है और स्थानीय लोगों को बिजली उपलब्ध हो रही है तो यह परियोजना लोगों के लिए लाभदायक होगी।"

कोसी नदी पर बना कोसी बैराज। फाइल फोटो

चुनावी मुद्दे से लेकर सियासी उठापटक तक

बिहार के ऊर्जा मंत्री और जेडीयू विधायक बिजेंद्र यादव सुपौल से आते हैं। कोसी, बाढ़ और डगमरा प्रोजेक्ट को लेकर सियासत भी खूब होती है। बाढ़ आती है तो पटना से लेकर दिल्ली तक चर्चा होती है। स्थानीय नेता अपने समीकरण बताते हैं।

बीजेपी के जिलाध्यक्ष राम कुमार राय कहते हैं, "नरेंद्र मोदी और बिहार के उर्जा मंत्री बिजेंद्र यादव के अथक प्रयास से इस समझौता पर हस्ताक्षर हुआ है। यह कोसी और बिहार वासियों के लिए बाढ़ से बचाव के अलावा की रोजगार का अवसर लाएगा। इस परियोजना से बांध को मजबूती मिलेगी।"

बीजेपी के युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष प्रकाश झा भी इस परियोजना को कोसी वासियों के वरदान बताते हैं और कहते हैं कि "कांग्रेस के समय इस परियोजना का ख्वाब देखा गया था। जिसे मोदी और नीतीश सरकार पूरा कर रही है।"

बीजेपी और जेडीयू (जद) के नेता जहां इसे अपनी बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं वहीं विपक्षी दल कमजोर नब्ज पर हाथ रखते हैं। कांग्रेस जिलाध्यक्ष विमल यादव गांव कनेक्शन से कहते हैं, "इस परियोजना का जिक्र एनडीए सरकार में कई बार हो चुका हैं, देखते हैं इस बार धरातल पर उतारती हैं कि नहीं।"

वे आगे कहते हैं, "इससे पहले कोसी में जब बांध बना था तब वहां जिसकी जमीन प्रभावित हुई वहां उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया है। सरकार को इस बात पर भी ध्यान रखना चाहिए।"

डगमारा प्रोजेक्ट का ले-आउट प्लान- फोटो- साभार प्री फिजिबिलटी रिपोर्ट

कहां पर लगाया जाएगा डागमारा प्रोजेक्ट?

सुपौल के भपटियाही गांव में इस प्रोजेक्ट को लगाया जाएगा। जो कोसी के बाएं तटबंध पर स्थित हैं। परियोजना का कैचमेंट एरिया 61 हजार 972 वर्गमीटर है। इस परियोजना में कंक्रीट बैराज, अर्थ डैम और पावर हाउस का निर्माण किया जाना है जिसकी लंबाई क्रमश: 945 मीटर, 5750 मीटर और 283.20 मीटर होगी।

इस परियोजना का स्थल पहले पूर्वी तटबंध के सिमरी गांव से डगमारा के बीच था। किन्हीं से वजह से राज्य सरकार ने इसका स्थल परिवर्तित कर सिमरी से 6 किमी दक्षिण कल्याणपुर से दुधैला के बीच कर दिया। स्थल परिवर्तन को लेकर सिमरी, कोढ़ली, डगमारा, लौकहा सहित अन्य गांवों के लोगों में भारी आक्रोश जताया था। स्थानीय लोगों का कहना था कि राजनीतिक साजिश के चलते सरकार ने परियोजना का स्थल परिवर्तित कर दिया।

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लंबे समय तक अटकी रही डगमारा परियोजना

1965 में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष कंवरसेन ने कोसी इलाके के लिए डगमारा में दूसरे बैराज की आवश्यकता पर बल दिया गया था। इस परियोजना को 2006-07 के में ही शुरुआत में ही अनुमति मिल गई थी। मगर पड़ोसी देश नेपाल से परमिशन नहीं मिलने के कारण मामला अटक गया था। फिर वर्ष 2007, जब परियोजना निर्माण में एशियन डवलपमेंट बैंक (ADB) ने रुचि दिखाई जिसके बाद विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन बनाने का कार्य केन्द्रीय जल संसाधन विभाग की एजेंसी वैपकास को सौंपा गया। 25 अप्रैल 2012, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण के स्तर पर इस परियोजना की तकनीकी स्वीकृति के लिए अंतर मंत्रालयी समिति में विस्तार से चर्चा हुई थी। तब यह सहमति बनी थी कि आगे के काम के लिए बढ़ा जाए।

एनएचपीसी (NHPC) लिमिटेड क्या है?

भारत सरकार के एनएचपीसी लिमिटेड और बिहार स्टेट हाइड्रो इलैक्ट्रिक पावर कार्पोरेशन में इस योजना को लागू कराने के लिए समझौता हुआ। जल विद्युत के क्षेत्र में एनएचपीसी भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के तहत श्रेणी-ए की एक मिनीरत्न कंपनी है।

लेखक- गांव कनेक्शन के साथ कम्युनिटी जर्नलिस्ट के रुप में जुड़े हैं।

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