बीस साल तक पत्थर तोड़े, अब खदान की मालकिन

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बीस साल तक पत्थर तोड़े, अब खदान की मालकिनgaonconnection

बांदा/चित्रकूट। बीस साल तक खदान में पत्थर तोड़ने वाली जगदेइया आज खदान की मालकिन हैं। इससे पहले जगदेइया अपने गाँव की 200 महिलाओं की ही तरह पहाड़ों पर पत्थर तोड़ने का काम करती थीं। ताकि वह दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर सकें।

जगदेइया की तकदीर बदली समूह से जुड़कर। उनकी ही तरह बांदा के नरैनी ब्लॉक के नहरी गाँव की कई महिलाएं खदान की मालकिन बन चुकी हैं। सभी ने समूह से जुड़ कर नई राह तलाशी।

“हमारी ग्राम पंचायत में 4000 की आबादी में 2000 के पास खेती नहीं है। इसलिए दूसरों की मजदूरी करनी पड़ती है। हमने 30 हजार में खदान खरीदी है। मजदूरों से खुदाई कराते हैं, फिर गिट्टी तोड़ने के बाद ठेकेदार को बेच देते हैं।” बैठक के दौरान रजिस्टर के पन्ने पलटते हुए ‘लक्ष्मी महिला स्वयं सहायता समूह’ की अध्यक्ष जगदेइया ने कहा।

इन महिलाओं ने मिलकर ट्रैक्टर भी खरीद लिया और ड्राइवर भी रख लिया है। ट्रैक्टर का खर्च निकालने के बाद बचे हुए पैसे से किस्त भी अदा की जा रही है। “ट्रैक्टर में बैठ कर हम लोग मेला भी घूम आते हैं। अभी गूढ़ा मेला गए थे।” थोड़ा मुस्कुराकर अपना पल्लू संभालते हुए जगदेइया ने कहा, “अगर पूरे बुंदेलखंड में ऐसे ही समूह हो जाएं तो भुखमरी और गरीबी दूर हो सकती है।” बांदा जिले में कुल 1200 समूह हैं, जिनसे 12000 हजार महिलाएं जुड़ी हुई हैं।

इन महिलाओं को समूह बनाकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करने वाले बांदा में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के उपायुक्त महेन्द्र कुमार पांडेय कहते हैं,”समूह से जुड़ने के लिए गरीब महिलाएं ज्यादा इच्छुक रहती हैं। इन्हें ज्यादा से ज्यादा जोड़ा जा रहा है। ये महिलाएं मनरेगा में भी काम करती हैं।”

गाँव की महिलाओं के बढ़ते आत्मविश्वास उत्साहित बांदा के मुख्य विकास अधिकारी राम कुमार सिंह कहते हैं, “राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ने के बाद जो महिलाएं बाहर आने में संकोच करती थीं, वह बाहर आ रही हैं, वही अब पर्दे से बाहर आ रही हैं। इसका परिणाम यह रहा है कि उनकी आर्थिक स्थिति सुधर रही है।” आगे कहते हैं, “समूह से जुड़ी महिलाओं को ए्ग्री जंक्शन से जोड़ा जाएगा।”  

नरेनी ब्लॉक् के नहरी गाँव में महिलाओं की एकजुटता ही है कि अब उनकी बात पुरुष सुनने भी लगे हैं। “हम खदान में लेबर से काम कराते हैं। लेबर पत्थर निकालते हैं, उसके बाद हम छोटी-छोटी गिट्टी बनाते हैं। लोग घर से ही खरीद लेते हैं। माल टूटने के बाद क्रेशर पर भी बेच देते हैं।” समूह की बैठक में शामिल होने आई राजाबेटी बोलती है।  

 

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