बिना जल प्रवाह गंगा की सफाई मुश्किल

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बिना जल प्रवाह गंगा की सफाई मुश्किलगाँव कनेक्शन

नई दिल्ली। किसी भी नदी की अविरल धारा बनाए रखने के लिए नदियों में देशांतरीय संयोजना एवं पर्याप्त प्रवाह जरूरी है पर गंगा नदी में सर्दी-गर्मी के महीने में कई स्थानों पर पानी का प्रवाह रुक जाता है, गंदे जल, औद्योगिक अपशिष्ट का प्रवाह जारी रहता है, इसे ध्यान में रखते हुए नमामि गंगे योजना के तहत गंगा की धारा ‘निर्मलता, पर्याप्त प्रवाह एवं स्वच्छता’ को बहाल करने को सरकार प्रमुखता दे रही है।आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक प्रो. विनोद तारे ने कहा गंगा को अपने प्राकृतिक रूप में बहना चाहिए और गंगा में जल का प्रवाह होगा तभी उसकी सफाई की बात की जा सकती है।

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा जीर्णोद्वार पर प्राक्कलन समिति (2016-17) के समक्ष मंत्रालय के सचिव ने भी स्वीकार किया, ‘‘साफ करने के लिए नदी में पानी तो होना चाहिए। पर्याप्त प्रवाह और स्वच्छता दोनों को ही एक-दूसरे की सहायता करनी होगी, परंतु यदि जल प्रवाह आता है और इस नदी को गंदा करना जारी रखता है तो जल जीवन नहीं बचेगा इसलिए सरकार ने व्यापक दृष्टिकोण अपनाया है।’’ जल संसाधन मंत्रालय ने देवप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, गढ़मुक्तेश्वर, कानपुर, इलाहाबाद और बनारस जैसे शहरों के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार की है।

जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने संसद में कहा, ‘‘जुलाई 2018 तक गंगा की सफाई का काम पूरा किया जाएगा।’’ संसद की एक समिति ने भी अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है जल के दोहन, बढ़ते प्रदूषण से शुष्क हुई गंगा को निष्ठापूर्वक साफ करने की पहल हो और समय एवं लागत में वृद्धि के बिना जुलाई 2018 तक गंगा का जीर्णोद्वार किया जा सके।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट में बताया गया कि नदी के ऊपरी हिस्से में आक्सीकरण की क्षमता सबसे अधिक होती है, गंगा नदी में वहां भी प्रदूषण बढ़ने के संकेत मिले हैं, इस क्षेत्र में भी जल विद्युत के लिए जल निकासी गंगा के हितों के लिए खतरा बनती जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया नदी जैसे ही मैदानों में पहुंचती है, सिंचाई-पेयजल के लिए निकासी चरम पर पहुंच जाती है। ऋषिकेश से इलाहाबाद तक नदी क्षेत्र में सर्दी-गर्मी के महीने में कई स्थानों पर पानी का प्रवाह रुक जाता है। 

जल प्रदूषण के बारे में लोक लेखा समिति (2014-15) के 8वें प्रतिवेदन में इस बात पर चिंता व्यक्त की गई है कि गंगा कार्य योजना (साल 1985) और राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण द्वारा ‘स्वच्छ गंगा मिशन (2009) के आरंभ होने के बाद भी गंगा विश्व की पांच प्रदूषित नदियों में है। 

गंगा कार्य योजना के बारे में 13वीं लोकसभा की लोक लेखा समिति की रिपोर्ट में कहा गया जलशोधन संयंत्र स्थापित, औद्योगिक गंदगी के शोधन के लिए संयंत्र लगाने, शौचालय परिसर, इलेक्ट्रानिक शवदाह गृह बनाने, स्नान घाटों में सुधार करने, रिवर फ्रंट में सुधार करने जैसी सिफारिशों पर अभी काफी कुछ किया जाना शेष है। गंगा को साफ करने के पहले के प्रयासों के अपेक्षित परिणाम नहीं निकलने को देखते हुए वर्तमान सरकार ने नमामि गंगे नामक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन शुरू किया है।

दिन-प्रतिदिन प्रदूषित होती जा रही गंगा

कई सहायक नदियों के शामिल होने के बावजूद और छोटे शहरों में 13.5 प्रतिशत से लेकर बड़े शहरों में 27.8 से 50.4 प्रतिशत तक के विभिन्न जल निकासी शोधन संयंत्रों के बावजूद कस्बों एवं शहरों से भारी मात्रा में गंदे जल के स्राव से गंगा दिन प्रतिदिन प्रदूषित होती जा रही है। मध्य भारत के गंगा के मैदानी इलाकों की इस जीवन रेखा में लगभग 50 प्रतिशत पानी बिना शोधित किए ही इस नदी में डाल दिया जाता है। इसमें 1.6 बिलियन लीटर से अधिक गंदा पानी, 260 मिलियन लीटर औद्योगिक अपशिष्ट, कृषि में उपयोग होने वाले 6 मिलियन उर्वरकों और 9000 टन कीटनाशकों का कचरा तथा बहुत भारी मात्रा में ठोस अपशिष्ट प्रतिदिन गंगा में डाले जाते हैं।

विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र के साल 2012 के अध्ययन के मुताबिक, गंगा नदी की राज्यवार समस्याओं के कारणों में पनबिजली परियोजनाएं, पर्यावरणीय प्रवाह में कमी, उत्तरप्रदेश में शहरों का विस्तार, प्रदूषणकारी उद्योग, कानपुर एवं वाराणसी के बीच प्रदूषण के स्तर में वृद्धि, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में समावेशन क्षमता में कमी और प्रदूषण का बढ़ना शामिल है।

ढाई हजार किमी लम्बी है गंगा नदी

गंगा नदी की लम्बाई लगभग 2500 किलोमीटर है जिसमें उत्तराखंड में यह 450 किलोमीटर, उत्तरप्रदेश में 1000 किलोमीटर, बिहार में 405 किलोमीटर, झारखंड में 40 किलोमीटर और पश्चिम बंगाल में 520 किलोमीटर की दूरी तय करके यह सुंदरवन डेल्टा होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। गंगा के किनारे पर ऋषिकेश, हरिद्वार, रुड़की, बिजनौर, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, भागलपुर, कोलकाता जैसे प्रमुख शहर बसे हुए हैं। गंगा नदी बेसिन के तहत देश का 8,61,404 वर्ग किलोमीटर भूक्षेत्र आता है और लगभग 43 प्रतिशत आबादी इसके दायरे में आती है। 

 

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