बलात्कार के मामले दर्ज करने में भी आनाकानी

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बलात्कार के मामले दर्ज करने में भी आनाकानी

लखनऊ। देशभर में बढ़ रहे महिला अपराधों को देखकर सरकार भले ही नए-नए कानून और सुरक्षा की नीतियां बना रही हो लेकिन अभी भी कई जगह बलात्कार जैसी घटनाओं की एफ आईआर लिखवाने के लिए पीड़िता और उनके परिवार वालों को दर-दर भटकना पड़ता है।

गोंडा जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर छोटे से गाँव में रहने वाली एक लड़की के साथ गाँव के अमन यादव नाम के लड़के ने बलात्कार किया। लेकिन जब महिला, थाने अपने परिवार के साथ शिकायत दर्ज़ करवाने पहुंची तो एफ़आईआर नहीं दर्ज़ हुई।

पीड़िता बताती हैं, "मैं गरीब परिवार से हूं, दूसरों के घर और खेतों पर काम करती थी। मैं खेत पर काम कर रही थी जब मेरे साथ ये घटना हुई थी, वो दूसरे गाँव का ही आदमी था। लेकिन जब हम पुलिस के पास पहुंचे तो उन्होंने कहा ये हमारे थाने का केस नहीं है तुम लोग दूसरे थाने जाओ। जब हम दूसरे थाने गए तो पुलिस वाले ने कहा आप छेड़छाड़ का मामला लिखवा दीजिए वरना गाँव में बड़ी बदनामी होगी।"

''इस तरह हम लोग कई दिन तक चक्कर काटते रहे लेकिन एफआईआर नहीं दर्ज़ हुई। इसका कारण यही था कि वो लोग दबंग थे और उनके खिलाफ कोई बोलना नहीं चाहता था। मुझे जान से मारने की धमकी भी मिली और धीर-धीरे मामला रफा-दफा  हो गया और वो आदमी भी अब गाँव में नहीं रहता।"

इसी तरह न जाने कितनी बलात्कार की घटनाएं सामने नहीं आ पाती। नेशनल क्राइम रिकार्ड के आंकड़ों के अनुसार 2014 में भारत में रेप के 36,735 मामले सामने आए वहीं उत्तर प्रदेश में 3,467 मामले दर्ज हुए। 

''कई बार हमें ऐसे केस पता चलते हैं, जिनमें पीड़िताओं को केस दर्ज करवाने में बहुत मश्क्कत करनी पड़ती है। इसका एक कारण ये भी है कि थाने अपने रिकॉर्ड नहीं खराब करना चाहते। कई बार तो हम लोगों को एक केस दर्ज़ कराने में महीनों भाग दौड़ करनी पड़ती है। यही कारण है कि कंवेंशन रेट अपराध करने की दर लगातार कम हो रही है जब अपराध के मामले दर्ज़ ही नही होंगे तो सुनवाई कब होगी।" महिला अपराध पर काम करने वाली गैर सरकारी संंस्था, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (एपवा) की ताहिरा हसन बताती हैं।

जहां एक ओर लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ हिंसा कम नहीं हो रही, वहीं दूसरी ओर पीड़ित महिलाएं थानों में जाने में हिचकती हैं, इसका कारण यह है कि उत्तर प्रदेश के थानों में पर्याप्त महिला पुलिसकर्मी नहीं तैनात हैं। केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में कुल 1.74 लाख पुलिसकर्मियों में मात्र 2,586 महिला पुलिसकर्मी, जो कि 1.5 फीसदी हैं जबकि सभी राज्यों में कुल पुलिस फ़ोर्स का मात्र 5.33 फीसदी ही महिला पुलिसकर्मी हैं।

देवरिया जिले की 23 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार की घटना दर्ज नहीं हो पा रही थी। पीड़िता ने गैर सरकारी संस्था की मदद ली उसके बाद केस दर्ज हुआ। एपवा की प्रदेश स्तरीय सेक्रेटरी गीता पाण्डेय बताती हैं, ''पीड़िता का परिवार थाने में दो-तीन बार गया लेकिन उसकी बात नहीं सुनी गई। जब संस्था के सदस्य वहां पहुंचे तब 2 नवंबर को रिपोर्ट दर्ज की गई लेकिन अभी तक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है।"

वो आगे बताती हैं, ''देवरिया ही नहीं पूरे प्रदेश में यही हाल है, सभी जिलों में यही शिकायतें हैं कि उनकी एफआईआर दर्ज़ करने में पुलिस आनाकानी करती है या पीड़िता से तमाम उल्टे सीधे सवाल पूछती है जिसके डर से ज्यादातर मामले तो ऐसे ही दब जाते हैं।"

महिला अपराधों को कम करने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी ऐसे मामलों को दर्ज करवाने में कई मुश्किलें आती हैं।

''हम समय-समय पर डीजीपी से ये आग्रह करते रहते हैं कि वो इस तरह के मामलों को संज्ञान में लाए। अगर ऐसा कोई प्रार्थना पत्र आता है हमारे पास तो हम तुरंत उस पर जांच करवाते हैं अगर मामला सही होता है तो पुलिस कार्रवाई शुरू कर देती है। पुलिस अगर सही केस दर्ज करने में आनाकानी करती है तो उसकी जबाबदेही बनती है।" महिला आयोग के कार्यालय अधीक्षक एके गुप्ता ने बताया।

मिर्जापुर में एक विवाहित महिला का बलात्कार उसके मालिक के बेटे ने किया था, केस दर्ज करवाने में 10 दिन लग गए। पीड़िता के पति मनोहर लाल बताते हैं, ''मेरी पत्नी दूसरों के घरों में झाड़ू, पोंछा, खाने बनाने का काम करती है। गाँव में ही एक घर में काम करने के दौरान उसके साथ रेप किया गया। दबंग परिवार होने के कारण उन लोगों ने धमकी दी कि अगर उसने ये बात किसी को बताई तो वो हमारे बच्चों को भी मार देगें।" ''फिर भी हम हिम्मत करके थाने गए लेकिन उन्होंने मामला दर्ज करने के बजाय हमें ही समझाना शुरू कर दिया कि जो हुआ हो गया अब जान खतरे में न डालो लेकिन हम लगातार थाने जाते रहे और लखनऊ में फोन करके एनजीओ वालों को साथ लिया तब जाकर केस दर्ज हुआ। अभी सुनवाई नहीं हुई है, आरोपी बंद है।" मनोहर आगे बताते हैं।

''रेप जैसी बड़ी घटनाओं के मामले में तो तुरंत एफआईआर दर्ज होने के आदेश हैं और ऐसा होता भी है लेकिन कई बार परिवार भी बदनामी के डर से पीछे हट जाता है। इसलिए जब तक मामले की पूरी पड़ताल नहीं होती एफआईआर लिखवाना उचित नहीं है।" महिला थाना लखनऊ की थानाध्यक्ष गीता द्विवेदी बताती हैं। 

 

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