बंगाल से आये कारीगर बनाते हैं देवी प्रतिमा

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बंगाल से आये कारीगर बनाते हैं देवी प्रतिमा

गोंडा। नवरात्र के माह में हर जगह देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। शहर से लेकर गाँव हर जगह माता का पंडाल सजाया जाता है और देवी की मूर्ति स्थापित की जाती है।                          

ये मूर्ति बनाने वाले ज्यादातर कारीगर बंगाल से आकर गोंडा जि़ले में बस गए हैं। मूर्ति बनाकर रोजी रोटी चलाने वाले भगत (32 वर्ष) बताते है, ''हम लोग बंगाल के रहने वाले हैं और लगभग 15 साल से मूर्ति बनाने का काम कर रहे हैं। नवरात्र-दीवाली आने से तीन महीने पहले से हम यहां आ जाते हैं और मूर्ति बनाने का काम शुरू कर देते हैं।"

जि़ले में 1254 स्थानों पर देवी प्रतिमाओं की स्थापना की जानी है। जि़ले में एक दर्जन से अधिक स्थानों पर रामलीला होती है। ये मूर्तियां यहीं रखी जाती हैं। बंगाल से ही आए दूसरे मूर्तिकार रामपाल सहाय (35 वर्ष) बताते हैं, ''हम मूर्ति बनाकर अच्छी खासी कमाई कर लेते हैं। इस बार हमें 40 मूर्ति बनाने का आर्डर है। हम मूर्ति बनाने का कच्चा सामान बंगाल से ही लाते हैं। एक मूर्ति में ढाई से तीन हजार की कमाई होती है।"

मूर्ति बनाने में इन कारीगरों से आठ से 10 दिन लगता है। मिट्टी और पुवाल से इन मूर्तियों को बनाकर पहले सुखाया जाता है, फिर रंगों से पेंट किया जाता है। मूर्ति बनाने के काम पहले से मंदी आई है। मूर्तिकार भगत बताते हैं, ''पहले से अब मुनाफा कम हुआ है क्योंकि पंडालों की संख्या कम हुई है जिसका एक कारण दंगे बवाल भी हैं। पहले तो हम इतना काम लेते थे कि कई महीने तक खर्च चल जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं है।" भले ही कमाई पहले से कम हुई हो लेकिन पुरखों का पेशा होने के कारण भगत इस काम को नहीं छोडऩा चाहते।

शहर के मालवीय नगर स्थित रामलीला मैदान के साथ ही जनपद के सभी क्षेत्रों में रामलीला का मंचन किया जाता है। लेकिन इन सभी रामलीलाओं में करनैलगंज की रामलीला सबसे अधिक मशहूर है। यहां पहले दिन से शुरू होने वाली रामलीला में अहिरावण वध, नारांतक वध का मंचन किया जाता है। इस दौरान रामलीला में दर्शकों की भारी भीड़ जुटी रहती है। 

जिले में होने वाले दुर्गा पूजा का सबसे बड़ा पंडाल रानी बाजार और पुलिस लाइन में लगता है। स्थानीय निवासी अजय कुमार दुबे (40 वर्ष) बताते हैं, ''यहां पर हर साल गुफा बनायी जाती है और अंदर माता की प्रतिमा रखी जाती है। इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। इन पंडालों मे कारीगरों द्वारा बनाई गईं मूर्तियों को सजाया जाता है।"

 

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