पुराना ख़त : रामधारी सिंह दिनकर ने आचार्य कपिल को लिखा था ये पत्र

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पुराना ख़त : रामधारी सिंह दिनकर ने आचार्य कपिल को लिखा था ये पत्ररामधारी सिंह दिनकर 

लंगट सिंह कॉलेज मुजफ्फरपुर

26.1.1951

आचार्य कपिल जी,

हम लोगों के परम प्रिय विद्वान श्री कामेश्वर शर्मा (राष्ट्रवाणी) का एक लेख कहीं निकला है जिसकी कतरन आप की सूचना के लिए भेज रहा हूँ। जरा गौर से देख जाइये।

कामेश्वर फूलें, फलें और बढ़ें, यह मेरी कामना पहले भी थी और अब भी है। उन्हें मैं यह भी छूट देता हूँ कि वे दिनकर काव्य के विरोधी के रूप में अपना विकास करें और उन्हें बुरा न लगे तो मेरे साथ एक थाली में बैठकर भोजन भी करें। मुझे हार्दिक प्रसन्नता होगी। किन्तु उन्हें और प्रत्येक लेखक को चाहिये कि वस्तुस्थिति को देखकर बोले और लिखे जिससे किसी की पद मर्यादा को अनुचित जर्ब नहीं पहुँचे। पटना में एक साहित्यिक षड्यंत्र चल रहा है जिसका केन्द्र यह कल्पित बात है कि दिनकर बिहार के सभी साहित्यिकों का बाधक है और कुछ लोगों के खिलाफ तो उसकी फौज खड़ी रहती है। जब उमा मुझ पर आक्रमण करें, बेनीपुरी मुझ पर चोट करें, प्रदीप मेरे विरुद्ध लेख छापें और कामेश्वर मेरे विरुद्ध लिखें तब लोग न जाने किसे मेरी फौज का आदमी समझते हैं? मुझे लगता है, कामेश्वर जी इस भ्रम में हैं कि दिनकर का विरोध करने से निष्पक्ष आलोचक के रूप में वे पूजे जायेंगे। सो इसे तो मैं घोर भ्रम समझता हूँ और जिस निर्णय पर मैं 15 वर्षों के बाद पहुँचा हूँ उस पर वे भी कभी न कभी आयेंगे ही। प्रयत्नपूर्वक उनसे मिलकर उन्हें आप समझा देंगे कि प्रभात जी महाराज के साथ एक साँस में वे मेरा नाम न लें। कुरुक्षेत्र के विरुद्ध वे चाहें तो एक लेखमाला आरम्भ कर दें जिसके लिए स्थान मैं राष्ट्रवाणी में ही दिलवा दूँगा। मगर, ईश्वर के नाम पर वे भाषा में शिष्टता लायें और कोई ऐसा काम न करें जिससे उन्हें बाद को चलकर लज्जित होना पड़े।

उन्हें मैंने आत्मीय समझा है, इसीलिए ये बातें लिख रहा हूँ। प्रेमी भी परस्पर एक दूसरे की आलोचना कर सकते हैं, किन्तु, ऐसी भाषा में नहीं जिससे जग हँसाई हो। मैंने जीवन-भर में किसी आलोचक के लिए कोई पत्र नहीं लिखा था। यह पहला पत्र है। साहित्य में विचार स्वातंत्र्य रहना चाहिए, मगर, गाली-गलौज या मुँह-चिढ़ाना विचार स्वातंत्र्य नहीं है। खैर, कामेश्वर अभी-अभी अंडा तोड़ कर निकला है इसलिए बहकना तो स्वाभाविक है। और जब सभी लोग अपने विकास के लिए दिनकर को लतियाना आवश्यक मानते हैं तो वही क्यों बाज आए? आखिर, पटना के साहित्यिकों में निर्भीक कहलाने का गौरव तो उसे मिलेगा ही।

शेष कुशल है।

आलोचक महाराज इन दिनों घर पर हैं। वे सम्भवत: 3 या 4 को मुँगेर आयेंगे और 5 फरवरी को पटना।

आपका दिनकर

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