ये है लक्ष्मणराव की दुनिया, यहां चाय की चुस्कियों के साथ है किताबों का ज्ञान

गाँव कनेक्शनगाँव कनेक्शन   11 April 2018 10:35 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
ये है लक्ष्मणराव की दुनिया, यहां चाय की चुस्कियों के साथ है किताबों का ज्ञानआईटीओ इलाके में हिंदी भवन के सामने चाय की दुकान लगाते हैं लक्ष्मणराव 

लखनऊ। दिल्ली का व्यस्ततम इलाका है- आईटीओ। आस-पास कई ऑफिस होने की वजह से यहां अक्सर दोपहर-शाम लोगों की चहल-पहल रहती है। ऑफिस की बातें, आपस में थोड़ी गुफ्तगू के लिए यहां लोगों का पसंदीदा अड्डा है- लक्ष्मणराव की चाय की दुकान।

यहां चाय की गरम चुस्कियों के साथ किताबों का ज्ञान भी है। खास बात ये है कि इन किताबों के लेखक कोई पुलित्जर या बुकर पुरस्कार विजेता नहीं बल्कि खुद लक्ष्मणराव हैं।

ये भी पढ़ें- ये किताबें आईं पाठकों को सबसे ज़्यादा पसंद, बेस्ट सेलर की सूची जारी

करीब 65 साल के लक्ष्मणराव जितनी स्वादिष्ट चाय बनाते हैं उतनी ही खूबसूरती से किताबों में अपने अनुभव लिखते हैं। लोग उनकी दुकान पर चाय पीते हैं और किताबें पढ़कर उनकी प्रतिभा की तारीफ करते हैं। लक्ष्मणराव का एक फेसबुक पेज भी है और इनकी किताबें अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर भी सेल होती हैं। तमाम नेशनल इंटरनेशनल मीडिया लक्ष्मणराव के बारे में बता चुकी है।

लक्ष्मण राव

हालांकि लक्ष्मणराव के यहां तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं था। गांव कनेक्शन से फोन पर बातचीत पर वे बताते हैं, ‘मैं मूल रूप से महाराष्ट्र के अमरातवती जिले का रहने वाला हूं। बचपन से ही मुझे लिखने का बहुत शौक था। साहित्यकार गुलशन नंदा के उपन्यास पढ़कर हिंदी से भी लगाव हो गया।’

प्रकाशकों ने किताब छापने से मना किया था

टेक्सटाइल मजदूर के रूप में एक कपड़ा मिल में काम करने वाले लक्ष्मणराव मिल के बंद होने के चलते जेब में मात्र 40 रुपए लेकर 1975 में वे दिल्ली आ गए। यहां विष्णु दिगम्बर मार्ग पर चाय बेचनी शुरू की। अपने सीधे और सरल स्वभाव की वजह से उन्होंने इलाके के लोगों के बीच अपनी पहचान बना ली थी। इस दौरान उन्होंने अपना लेखन कार्य भी जारी रखा और अपना पहला उपन्यास लेकर एक प्रकाशक के पास गए लेकिन तब उन्हें काफी निराशा हुई जब प्रकाशक ने यह कहकर मना कर दिया कि 'एक चायवाला क्या लिखेगा?'

ये भी पढ़ें- पुराना ख़त : विष्णु प्रभाकर का पत्र उनकी पत्नी सुशीला के नाम

साइकिल से खुद किताब बेचने जाते हैं

लक्ष्मणराव को धक्का लगा लेकिन उन्होंने लेखक बनने के जुनून को टूटने नहीं दिया और अपनी किताब छापने के लिए उन्होंने खुद पैसे इकट्ठा किए। अपने पैसे से 1979 में उन्होंने भारतीय साहित्य कला प्रकाशन नाम से पब्लिकेशन हाउस खोला और अपनी पहली किताब ‘नई दुनिया की नई कहानी’ छापी। वह बताते हैं, ‘इसके बाद मैंने साइकल से स्कूलों में जाकर उन लोगों के बीच अपनी किताब को बेचा जिन्हें हिंदी साहित्य में बहुत दिलचस्पी थी। मैं अपनी किताबें खुद ही छापने के साथ उन्हें साइकिल से ही बेचने भी जाता हूं।’

रामदास है सबसे करीब

लक्ष्मणराव अब तक 24 किताबें लिख चुके हैं जिसमें 12 प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी किताबों में नई दुनिया की नई कहानी, दंश, रामदास, रेणु, प्रधानमंत्री, दृष्टिकोण, अभिव्यक्ति, नर्मदा प्रमुख हैं। उनकी किताबों में समाज के ही किरदारों के ताने-बाने होते हैं लेकिन रामदास उनमें सबसे करीब है।

लक्ष्मणराव बताते हैं, ‘रामदास मेरे बचपन का दोस्त था। नदी में डूबने से उसकी मौत हो गई थी।’ दोस्त की मौत से लक्ष्मणराव इतने आहत हुए कि उसके ऊपर एक पूरा उपन्यास ही लिख दिया था।

ये भी पढ़ें- किताब समीक्षा : समय की विसंगतियों से टकराव ‘कंक्रीट के जंगल’

लक्ष्मणराव कभी गुलशन नंदा ही बनना चाहते थे। उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। वह आगे कहते हैं, ‘मैं सुबह सात बजे से 12 बजे तक लिखने-पढ़ने का काम करता हूं और फिर दो बजे से रात नौ बजे तक चाय की दुकान लगाता हूं।’ कहते हैं सीखने की कोई उम्र नहीं होती ये बात भी लक्ष्मणराव से बखूबी सीखी जा सकती है। उन्होंने 42 साल की उम्र में बीए की डिग्री हासिल की और पिछले साल हिंदी साहित्य में मास्टर्स। अब वह हिंदी साहित्य में पीएचडी करना चाहते हैं।

27 मई, 1984 को तीन मूर्ति भवन में लक्ष्मण राव को पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने का अवसर मिला और कुछ साल पहले राष्ट्रपति भवन में प्रतिभा पाटिल को अपनी लिखी पुस्तक ‘रेणु’ भेंट करने का मौका मिला।

किताब प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी के जीवन पर आधारित नाटक है जिसे लक्ष्मणराव उन्हें गिफ्ट करना चाहते थे लेकिन दुर्भाग्यवश इंदिरा गांधी की उस समय मृत्यु हो चुकी थी।

ये भी पढ़ें- 1952 में लिखा था फणीश्वरनाथ रेणु ने ये रिपोर्ताज, आज भी कोसी की बाढ़ की स्थिति को दिखाता है

एक बार मेरी किताब को जरूर पढ़ें

इस मुकाम तक पहुंचने के लिए लक्ष्मणराव अपने गुरु के साथ-साथ ऐसे कई साहित्यकारों, जिनसे उन्होंने साहित्य के विषय में सीखा और अपने परिवार और पाठकों का शुक्रिया अदा करते हैं। सरकारी मदद के सवाल पर वह कहते हैं कि उन्हें कभी सरकार की तरफ से मदद नहीं मिली और वह उम्मीद भी नहीं करते। वे कहते हैं कि मेरी बस यही इच्छा है कोई भी व्यक्ति जो मुझे एक साहित्यकार के रूप में सम्मान दे वे एक बार मेरी किताबों को ज़रूर पढ़े। बिना किताब पढ़े मुझे साहित्यकार के रूप में सम्मान देना मेरी नज़रों में कथित सम्मान जैसा है।

घर में मौजूद है समाचार पत्र की लाइब्रेरी

इस समय वह मानविकी हिंदी साहित्य नाम से 720 पन्ने का ग्रन्थ तैयार कर चुके हैं। लक्ष्मणराव दिल्ली में निर्माण विहार के पास 12000 रुपए किराए के मकान में रहते हैं। वह बताते हैं कि एक किताब के लिए 30 से 35,000 रुपए में 500 प्रतियां छप जाती हैं। वह अपनी किताबों का सामान्यतया: दाम 300 रुपए तय करते हैं जिस पर 15-20 प्रतिशत डिस्काउंट देते हैं। इस साल कई किताबें आ रही हैं।

ये भी पढ़ें- सीता मां के सम्मान के लिए राम का अपमान करने को फैशन न बनाएं: अमीष त्रिपाठी

लक्ष्मणराव जितना लिखते हैं उतना ही पढ़ते भी हैं। उनके पास पुराने अखबारों की लाइब्रेरी है। वो कहते हैं, पहले मैं रात-दिन पढ़ता था। आठ-नौ समाचार पत्र के संपादकीय पढ़ता था। मेरे पास अभी भी वो सारे अखबार रखे हुए हैं। मैं कभी भी पढ़ी हुई चीज बेचता या फेंकता नहीं हूं। उन्हें समय-समय पर पढ़ता रहता हूं।

            

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.