तरक्की की कहानी : ठेलिया खींचने वाले के हाथ में ‘छोटा हाथी’ आया तो जिंदगी बदल गई
Shubham Koul 18 Sep 2017 2:42 PM GMT

लखनऊ। शाम को रंजीत के घर पहुंचने का उनके बच्चे बेसब्री से इंतजार करते हैं। हो भी क्यूं न, पिताजी उनकी हसरत जो पूरी करते हैं। लखनऊ जिले के निजामपुर गाँव में रहने वाले रंजीत की दिनचर्या सुबह आठ बजे शुरू होती होती है, और शाम छह से सात बजे तक वो शहर से अपने घर वापस लौट आते हैं। इस बीच उनकी ज़िंदगी सड़कों पर सरपट भागती रहती है। यही दिनचर्या रंजीत पिछले 25 वर्षों से है।
सुबह के आठ बजे अपनी नई टाटा ऐस को सड़कों पर सरपट दौड़ाने के लिए झाड़ते-पोछते हुए रंजीत ने बताया, "पहले मैं विक्रम टेंपो डाला चलाता था, उससे इतनी कमाई नहीं हो पाती थी क्योंकि ज्यादा वजन नहीं ले जा पाते थे, उसके बाद टेंपो बेचकर इसे छह महीने पहले ही खरीदा। जब से इसे खरीदा तबसे ऐश है। चाहे दूर का सामान हो या पास का, आराम से पहुंचा देता हूं।
सुबह के वक्त पूरा परिवार साथ में चाय नाश्ता करके अपने-अपने काम में लग जाता है। एक चारपाई पर अपने पिता और बच्चों के साथ बैठे हुए रंजीत ने बताया, "हमारा कमाऊ पूत यही गाड़ी है, जिस से दिल लगाकर भाड़ा ढोते हैं। चाहे पानी बरस रहा हो या फिर आंधी आए हम रुकते नहीं।"
रंजीत बच्चों को इससे रोज स्कूल छोड़ने जाते हैँ, गाड़ी को कपड़े से साफ करते हुए रंजीत ने बताया, "हमारे चार बच्चे हैं, सभी की फीस भरना और उनकी देखभाल में काफी पैसा लगता है। लेकिन उनकी पढ़ाई में कोई कोताही नहीं बरतेंगे। उन्हें कान्वेंट स्कूल में पढ़ा रहे हैं।" इसके बाद बच्चों को अपनी गाड़ी में बैठाकर स्कूल छोड़ने वो निकल पड़ते हैं। अपने 'सपनों की कार' में बैठकर बच्चों की भी खुशी का ठिकाना नहीं रहता।
अपनी गाड़ी को स्टार्ट करने से पहले रंजीत उसकी पूजा करते हैं। वो मानते हैं कि रोजी-रोटी बड़े नसीब से मिलती है। गाड़ी के हाथ जोड़ने के बाद सीट पर बैठते हुए रंजीत बोले, "सहालग में काम बढ़ जाता है, ऊपर से एक दो सवारी भी बैठा लेते हैं। कमाई थोड़ी ज्यादा हो जाती है, जब से नई गाड़ी ली है, पूरा प्रदेश छान मारा है।" आगे बताते हैं, "ससुराल जाने में भी दिक्कत नहीं होती। पूरा परिवार आराम से गाड़ी में बैठ जाता है और रिश्तेदारी भी हो जाती है। जैसा नाम है 'छोटा हाथी' वैसे काम भी करता है।"
दस साल पहले तक साइकिल ठेलिया से चलाने वाले रंजीत आज अपनी ज़िंदगी से काफी खुश हैं। उनकी गाँव में भी काफी पूछ हो गई है। किसी को कोई दिक्कत हो गई, या रात में किसी को अस्पताल पहुचाना है तो रंजीत से ही मदद लेता है'' । हमने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया, लेकिन मैं अब काफी खुश हूं,'' रंजीत बताते हैं।
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