खुले में शौच के खिलाफ दो लड़कियों की जंग

दो लड़कियों के प्रयासों ने स्वच्छता को लेकर लोगों की सोच बदल दी। अठ्ठारह साल की रीता और तेरह साल की साधना ने न केवल अपने माता-पिता से घर में शौचालय बनवाने की ज़िद की बल्कि पूरे गाँव में ऐसा करने के लिए मुहिम छेड़ दी।

Manish MishraManish Mishra   1 Aug 2018 6:29 AM GMT

बंदनी (श्रावस्ती)। भारत की अन्य करोड़ों महिलाओं की ही तरह बंदनी गाँव में भी रात के अंधेरे में बर्तन खटकने लगते और यहां की महिलाओं को हर रोज सुबह होने से पहले खुले में शौच के लिए जाना होता था। लेकिन गाँव की ही दो लड़कियों के प्रयासों ने स्वच्छता को लेकर लोगों की सोच बदल दी। अठ्ठारह साल की रीता और तेरह साल की साधना ने न केवल अपने माता-पिता से घर में शौचालय बनवाने की ज़िद की बल्कि पूरे गाँव में ऐसा करने के लिए मुहिम छेड़ दी।

बदलाव की बयार बंदनी गाँव में तब बहनी शुरू हुई जब स्वच्छता मिशन की टीम ने यहां पहुंच कर पूरे गाँव को समझाया। इसके बाद रीता और साधना अपने गाँव गंदगी के अंधेरे को दूर करने के लिए हर मेहनत को तैयार थीं।

"जब गाँव में एसबीएम की टीम आई तो उन्होंने समझाया कि खुले में शौच जाने से क्या-क्या दिक्कतें आती हैं। टीम ने हमें स्वच्छाग्रही चुना और ट्रेनिंग भी दी गई। उसके बाद हम वापस आए तो गाँव में अपने साथियों के साथ निगरानी समिति बनाई और खुले में शौच जाना रोकने के लिए अभियान छेड़ दिया" इंटर में पढ़ाई कर रही रीता ने बताया।


रीता का साथ दिया उसकी दोस्त साधना ने। इन दोनों ने अन्य बच्चों के साथ मिल कर बड़ों को समझाना शुरु किया। इस सार्थक पहल में प्रधान दिलबहार खां का भी पूरा साथ मिला। गाँव में छूटे लोगों के शौचालय बनवाए जाने लगे।

उत्तर प्रदेश के सभी गाँवों को खुले में शौच मुक्त करने के लिए प्रदेश सरकार ने 2 अक्टूबर, 2018 तक का लक्ष्य रखा है। यूपी के कुल 1,07,452 गाँवों में इसे लेकर जोरशोर से अभियान चलाया जा रहा है।

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बंदनी गाँव के लोगों की सोच ऐसे ही नहीं बदली, बल्कि उसके लिए रीता और साधना की मंडली को काफी मेहनत करनी पड़ी। लाल-पीली जैकेट और सफेद टोपी पहन सीटी बजाते ये बच्चे हर सुबह अंधेरे में उठते और गाँव के हर रास्ते पर बैठ जाते और लोटा लेकर खुले में शौच के लिए जाने वाले को रोक कर उन्हें ऐसा करने से रोकते और इससे होने वाले नुकसान के बारे में बताते। आखिर धीरे-धीरे ही सही, बड़े लोगों की सोच में बदलाव आने लगा था। "अब तो हम उस रिश्तेदार के यहां रात में नहीं रुकते जिनके यहां शौचालय नहीं है। न ही अपने यहां आए किसी रिश्तेदार को बाहर खुले में शौच के लिए लोटा लेके जाने देते हैं", साधना के पिता लल्लू ने बताया।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 200 किमी दूर उत्तर दिशा में नेपाल बार्डर पर तराई में बसा बंदनी गाँव हर बारिश के मौसम में टापू बन जाता है और और गाँव के लोगों को सड़क पर ही शौच के लिए बैठना पड़ता था।

"गंदगी हम ही करते हैं, इससे नुकसान हमे ही होता है, इसलिए इसका निपटारा भी हमें करना होगा। हर गाँव के निवासी को खुले में शौच को रोकने के लिए आगे आना होगा," श्रावस्ती जिले के जमुनहा ब्लॉक के कोआर्डिनेटर चंद्रमणि शुक्ला ने कहा।


आज बंदनी के लोग खुद ही खुले में शौच न जाना और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखते हैं। "गाँव में लगभग हर घर में शौचलाय बन गए हैं, और सभी लोग शौचालय में ही शौच के लिए जाते हैं। बच्चों के समझाने पर बड़े लोगों में बहुत असर आया है। अब तो गांव के बाहर की सड़कें साफ हो गई हैं," बंदनी गाँव के प्रधान दिलबहार खां ने बताया, "पूरे 2200 आबादी की ग्राम पंचायत में शौचालय बनने में करीब छह माह लगे, लेकिन तब तक इन लोगों के यहां शौचालय नहीं बने थे, लोग खुरपी और फावड़ा लेकर शौच के लिए गए।"

"जिले में लोगों को खुले में शौच के खिलाफ जागरुक करने के लिए लगातार अभियान चलाया जा रहा है, इसके लिए हमने लोगों को प्रोत्साहित किया, साथ ही अच्छा काम करने वालों को सम्मानित भी किया गया। सर्वे के हिसाब से 75 प्रतिशत लोग शौचालयों का उपयोग कर रहे हैं। इस प्रतिशत को बढ़ाने के लिए लोगों को और जागरुक किया जाएगा, "दीपक मीणा, जिलाधिकारी, श्रावस्ती ने कहा।

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गाँव में अपने घर के बाहर बैठीं साधना की दादी लखपता (60 वर्ष) अपनी पूरी ज़िंदगी खेत में ही शौचालय गईं। लेकिन जब उनकी पोती साधना (13 वर्ष) ने समझाया तो वह भी अब शौचालय का प्रयोग करती हैं। "पहले तो हमने शौचालय का नाम भी नहीं सुना था, पूरी ज़िंदगी खेत में ही गए। लेकिन अब शौचालय से बहुत आराम है, खासकर बारिश में।"

बंदनी गाँव के लोगों में स्वच्छता की इस मुहिम का असर यह हुआ कि उन लोगों ने अपने गाँव को साफ करने के लिए सफाईकर्मी पर निर्भर नहीं रहते। "पहले स्थिति बहुत खराब थी, अब हमारे गाँव के लोग अपने घरों के बाहर रास्ते और नाली खुद से साफ करते हैं। शौचालय भी खुद ही साफ करते हैं।"

रीता ने आगे बताया, "पहले बहुत दिक्कत होती थी, अंधेरे में खेत में बाहर शौच के लिए जाने से पहले घर में बता के जाना पड़ता था, अगर दिन में मजबूरी आ गई तो अंधेरे का इंतजार करो। लेकिन अब इन झंझटों से छुटकारा मिल गया है।"

दो सहेलियों रीता और साधना के द्वारा शुरू किया गया प्रयास हर गाँव की कहानी हो सकती है। ऐसे ही स्वच्छता के दूत आगे आएं तो गाँव-गाँव स्वच्छता की अलख जगाई जा सकती है।

"बिटिया गाँव को तरक्की पर लाई है, ऐसे ही हम चाहेंगे कि आगे भी हमारा गाँव उन्नत करे", प्रद्युम्मन (रीता के पिता) ने कहा।

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