बुजुर्गों के पास जो है वो गूगल के पास नहीं

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बुजुर्गों के पास जो है वो गूगल के पास नहींgaonconnection

इस बार अच्छे मानसून की भविष्यवाणी की गई है, कई प्रांतों में मानसून अपनी पकड़ भी बनाने लगा है। मानसून को लेकर हमेशा व्याकुलता बनी रहती है, और क्यों ना हो? आखिर हमारे देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाने वाली कृषि यानि खेती-किसानी इस पर बहुत हद तक आधारित जो रहती है। 

मौसम विज्ञान सेटेलाइट से प्राप्त तस्वीरों और अनुमान के तौर पर भविष्यवाणियां करता है और इसकी भविष्यवाणी को बेहद गंभीरता से भी लिया जाता है पर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा ग्रामीण अंचलों में बगैर सेटेलाइट, अत्याधुनिक यंत्रों की उपलब्धता के बावजूद बुजुर्ग जानकार मौसम को लेकर भविष्यवाणियां करते रहते हैं। आज भी हिन्दुस्तान के ऐसे कितने सारे इलाके होंगे जहां परंपरागत ज्ञान और बुजुर्गों के अपने अनुभव के आधार पर मौसम को लेकर भविष्यवाणियां की जाती हैं और मौसम विज्ञान की भविष्यवाणियों की तरह इन अनुमानों को भी लोग गंभीरता से लेते हैं। 

बुजुर्गों की ऐसी कई भविष्यवाणियों और उनके तथ्यों को विज्ञान ने भी गंभीरता लिया है और आधुनिक विज्ञान इसे बायोलॉजिकल इंडिकेटर्स के रूप में मानता है यानि ऐसी जैविक घटनाएं जिन्हें बतौर सूचक माना जा सकता है। इन स्थानीय भविष्यवाणियों को पेड़-पौधों की पैदावार, जीव जंतुओं की हरकतों और कई तरह के अनुमानों के बाद बताया जाता है। अक्सर देखा गया है कि ये भविष्यवाणियां काफी हद तक सही ही निकलती है। हम तकनीकीतौर पर कितने भी विकसित हो जाएं लेकिन स्थानीय ज्ञान और अनुभव को नकारते हुए आगे नहीं बढ़ सकते और इसका सबसे बढ़िया उदाहरण मौसम के पूर्वानुमान को लेकर स्थानीय ज्ञान से समझा जा सकता है। 

महुए के पेड़ को देखकर आदिवासी बुजुर्ग मौसम के पूर्वानुमान की बात बड़े रोचक तरीके से बताते हैं। जिस वर्ष गर्मियों में महुए के पेड़ पर खूब सारी पत्तियों को देखा जाता है, यानि हरे-भरे महुए के पेड़ को देखा जाता है तो अनुमान लगाया जाता है कि उस वर्ष मानसून बहुत अच्छा रहेगा। गर्मियों में बांस की पत्तियों में हरापन देखा जाना यानि बांस में हरियाली दिखना मानसून के हिसाब से बुरी खबर लाता है यानि उस वर्ष सूखा पड़ने जैसे हालात होने की संभावनाएं होती है और बांस में हरियाली उस क्षेत्र में बची-खुची फसलों पर चूहों के आक्रमण को भी दर्शाती है।

बेर के पेड़ पर फलों की तादाद लदालद हों तो पातालकोट घाटी के आदिवासी बताते हैं कि उस वर्ष मानसून सामान्य रहने की संभावना रहती है। दूर्वा या दूब घास गर्मियों में खूब हरी भरी दिखाई दे तो माना जाता है कि आने वाला मानसून सामान्य से बेहतर या और ज्यादा बेहतर होता है। ग्रामीण इलाकों में गर्मियों में दूब घास को हरा-भरा देख लोग वैसे ही खुशी मनाते हैं। कई इलाकों में लोग मानते हैं कि गर्मियों में पीपल के पेड़ पर हरियाली यानि खूब सारी पत्तियां दिखाई दे तो संतुलित या सामान्य मानसून की बात की जाती है। ग्रामीण अंचलों में पीपल में हरियाली देख महिलाएं बेहतर मानसून की अपेक्षा रखते हुए इसकी पूजा पाठ भी करती हैं। 

खिजड़ा बबूल की प्रजाति का एक घना फैला हुआ पेड़ होता है, कच्छ गुजरात के आदिवासी बुजुर्ग जानकारों के अनुसार यदि इसमें ज्यादा हरा-भरापन दिखायी दे, पत्तियों और शाखाओं की इतनी वृद्धि हो जाए तो ये जमीन को छूने लगे तो मान लिया जाना चाहिए कि सूखे के हालात बनने-बनने वाले हैं, यानि मानसूनी वर्षा का असर लगभग नगण्य जैसा होगा है और हालात बदतर हो जाएंगे। कवीट एक कठोर फल देने वाला पेड़ है, इसके फल बेल के फल की तरह बड़े और बेहद खट्टे होते हैं। मध्य प्रदेश के अनेक आदिवासी क्षेत्रों में मान्यता है कि पेड़ पर कवीट के फल लद जाएं यानि खूब पैदावार हो तो आने वाला मानसून बेहतर और तूफानी होता है। मानसून की शुरुआत आंधी तूफान के साथ होती है और लगातार कई दिनों तक बरसात का सिलसिला बना हुआ रहता है। 

कवीट की तरह नीम पर जबर्दस्त हरियाली दिखायी देना और खूब सारी निंबोलियों (नीम के फल) का दिखाई देना कमजोर से भी कम मानसून का सूचक होता है। जून महीने की शुरुआत में कौवों का देर रात को लगातार कांव-कांव करते रहना मानसून के लिए अपशकुन सा माना जाता है। बुजुर्ग कहते हैं कि इस महीने में रात में कौवों का लगातार शोर करते रहना गम्भीर सूखे होने की भविष्यवाणी होती है। 

टिटोड़ी नामक पक्षी किसी टीले पर या ऊंचे स्थान पर अपने अंडे देती है तो आने वाला मानसून बहुत अच्छा होने की बात की जाती है। जीव-जंतुओं की हरकतें और पेड़-पौधों के इस तरह के व्यवहार को आधुनिक विज्ञान भी बड़ी गंभीरता से शोध का विषय बनाए हुए है। ऐसा ना जाने कितनी बार होता है कि कोई बुजुर्ग अपने जमाने की बात करे या अपनी किसी समझ को साझा करे तो हम वहीं ठहर जाएं? बुजुर्गों के अनुभवों को नकार कर हम कहीं कोई बड़ी गलती तो नहीं कर रहे? हमारे बुजुर्ग जानकारियों से लबरेज हैं, वो भंडार हैं ज्ञान और अनुभव के। मेरा अनुरोध है कि आप सब अपने घर और परिवार के बुजुर्गों से बात करें, उनको समय दें, उनकी सीख को समझकर अमल लाने के प्रयास करें क्योंकि उनके पास जो पूंजी या ज्ञान है वो गूगल या किसी सैटेलाइट के पास नहीं।

(लेखक हर्बल जानकार हैं। यह उनके निजी विचार हैं।)

 

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