बुंदेलखंड के ये तालाब बुझाएंगे प्यास

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
बुंदेलखंड के ये तालाब बुझाएंगे प्यासgaonconnection

नई दिल्ली (भाषा)। सूखे और पेयजल संकट से जूझ रहे बुंदेलखंड में 9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच बेमिसाल डिजाइन वाले तालाबों को दुरुस्त कराया जाएगा।

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने कहा कि यह सही है कि 9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच चंदेल राजाओं ने इस क्षेत्र में तालाबों की बेमिसाल डिजाइन के जरिये सालों भर जल से लबालब रहने वाले तालाबों और कुओं की श्रृंखला तैयार की थी। इन तालाबों की खस्ता हालत की हमें जानकारी है और हमने केंद्रीय योजना में इसे खासा महत्व दिया है।

उन्होंने कहा, ‘‘इन चंदेलकालीन तालाबों को बहाल करने के लिए किसी तरह से संसाधनों की कोई कमी नहीं होने दी जायेगी।'' तालाबों की इंजीनियरिंग और डिजाइन पर नज़र डालें तो बुंदेलखंड के मउरानीपुर, महोबा, चरखारी आदि क्षेत्रों में तालाबों की लंबी श्रृंखला है जो एक शहर तक सीमित नहीं बल्कि 100 किलोमीटर के दायरे में पानी की ढाल पर बने कस्बों में फैली है। यानी जब एक तालाब में पानी भर जाएं तो पानी अगले तालाबों को भरे और इलाके के सारे तालाब भरने के बाद ही बारिश का बचा हुआ पानी किसी नदी में गिरे।

9वीं से 14वीं शताब्दी के बीच बुंदेलखंड के चंदेल कालीन तालाबों की डिजाइन और इंजीनियरिंग का ज़िक्र करते हुए आईआईटी के अध्येता रहे एवं वरिष्ठ अभियांत्रिकी विशेषज्ञ केके जैन ने कहा कि इस इलाके में एक भी प्राकृतिक झील नहीं है। चंदेलों ने 1,300 साल पहले बड़े-बड़े तालाब बनवाए और उन्हें आपस में खूबसूरत अंडरग्राउंड वाटर चैनल के जरिए जोड़ा गया था। उस बेहद कम आबादी वाले जमाने में वे यह काम सिर्फ पीने के पानी के इंतजाम के लिए नहीं किया गया था। वे तो अपने शहरों को 48 डिग्री तापमान से बचाने के भी पुख्ता इंतजाम किया करते थे।

चंदेलकालीन तालाबों में सबसे प्रमुख है मदन सागर तालाब

मउरानीपुर से 50 किलोमीटर पूर्व में आल्हा-उदल के शहर महोबा में आज भी चंदेल कालीन विशाल तालाब दिख जाते हैं। इनमें सबसे प्रमुख मदन सागर तालाब चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा है।

चंदेल राजा कीरतवर्मन ने कीरतसागर तालाब बनवाया था तबकि मदनवर्मन ने मदनसागर तालाब, राजा रहिल देव वर्मन ने रहिलसागर तालाब बनवाया और दक्षराज ने इसे विस्तार दिया। इसी श्रृंखला में किराडीसागर तालाब भी शामिल है। इन तालाबों में कल्याण सागर, विनय सागर और सलारपुर तालाब शामिल हैं। यह चंदेलों के जल विज्ञान के उत्कृष्ठ उदाहरण हैं।

लेकिन अब बरसात का पानी पहाड़ों से गिरते हुए तालाब में नहीं आता। बीच में घनी बस्तियां और सड़कें हैं, साथ ही पहाड़ों का पानी बह जाने के लिए नए रास्ते बन गए हैं। अंग्रेजों के समय में भी इस क्षेत्र में नहरें निकालीं गई थीं जो आगे जाकर छोटे-छोटे 1,000 तालाबों को पानी देती थीं लेकिन इस ब्रिटिश स्थापत्य की निशानी इन नहरों की स्थिति काफी खराब है।

गंगा से जुड़ा एक भी हिमनद खत्म हुआ तो गंगा नहीं बचेगी

आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर विनोद तारे ने कहा कि ताल, तलैया और तालाब का जल उपलब्धता में महत्वपूर्ण स्थान है। आज हम गंगा के संरक्षण की बात कह रहे हैं। गंगा का मतलब केवल गोमुख से निकलने वाली जलधारा नहीं है। इससे जुड़े सारे हिमनद, सारी नदियां, भूजल और अन्य जलस्रोत गंगा का निर्माण करते हैं। इसमें से एक भी खत्म हुई तो गंगा नहीं बचेगी। इसलिए अगर हमें गंगा को बचाना है तो ताल, तलैया, तालाबों को बचाना होगा।

उत्तर प्रदेश के 8,75,345 जल स्रोतों मे से 1,12,043 पर अवैध अतिक्रमण

बांदा के आरटीआई कार्यकर्ता आशीष सागर ने सूचना के अधिकार के तहत उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग से तालाबों के पूरे आंकड़े हासिल किए। इनसे पता चलता है कि नवंबर 2013 की खतौनी के मुताबिक, प्रदेश में 8,75,345 तालाब, झील, जलाशय और कुएं हैं। इनमें से 1,12,043 जल स्रोतों पर अवैध अतिक्रमण है। राजस्व विभाग का कहना है कि 2012-13 के दौरान 65,536 अवैध कब्जों को हटाया गया।

 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.