बुंदेलखंड: खेत की मिट्टी बेचने को मजबूर किसान

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बुंदेलखंड: खेत की मिट्टी बेचने को मजबूर किसानgaon connection

मड़ावरा (ललितपुर)। ''का बतायें भईया ई साल पानी गिरा नाई, खेत खाली डरे ऐसे में घर चलावे कैसे, कछु तो करे, सो गुम्मा पारके काम चलाएं रहे हैं।" ये कहना है ललितपुर जिला मुख्यालय से दक्षिण-पूर्व दिशा में लगभग 70 किमी दूर स्थित ग्राम रनगाँव निवासी जयसिंह लोधी का। 

पैतीस वर्षीय किसान जयसिंह एक सीमान्त किसान है जिनके पास महज 1.5 एकड़ जमीन है। इस साल बारिश कम होने के चलते उनके खेत समेत कई किसानों के खेत खाली पड़े है, गाँव में रोजगार के साधन न के बराबर होने के चलते उन्होंने अपने परिवार के गुजारे के लिये बंजर हो चले अपने खेत से मिट्टी उठाकर ईंट बनाने का काम शुरू कर दिया है। जयसिंह आगे बताते हैं, ''साहूकारों से कुछ पैसा लेकर ईंट बनाने का काम शुरू किया है और सब कुछ ठीक-ठाक रहा है। छोटे स्तर पर ईंट बनाने और बेचने के लिए जिला पंचायत की तरफ से 150 रुपए की रसीद कटवाई थी। एक बार की खेप तैयार कर उसे बेचने पर 20 से 25 हजार रुपये बच जाते हैं।" जयसिंह के इस काम में उनकी पत्नी और बच्चे भी हाथ बंटाते हैं जो सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक ईंट बनाने का काम करते हैं। उनके साथ वहीं काम कर रहे देशराज (25 वर्ष) बताते हैं, ''गाँव में कोई काम न मिलने के कारण मेरे भाई का परिवार मजदूरी के लिए दिल्ली चला गया। ईंट पथाई का काम कुछ दिनों में खत्म हो जाएगा तो मैं भी मजदूरी के  लिए बाहर चला जाऊंगा।"

बताते चलें कि सूखे के चलते बुन्देलखण्ड में इस बार स्थिति काफी विकट होने वाली है, ज्यादातर खेत खाली पड़े हैं और कुछ में फसल बोई भी गयी तो उनमें पैदावार की उम्मीद भी काफी कम है, ऐसे में सालभर अपने परिवार के भरण-पोषण के  लिये स्थानीय किसान रोजगार के अन्य विकल्प तलाशते नजर आ रहे हैं। रनगाँव के ही निवासी रमेशचन्द्र कुशवाहा (30 वर्ष) एक पढ़े-लिखे नौजवान है उनके परविार में पांच भाईयों समेत कुल 27 सदस्यों का परिवार है। परिवार के पास खेती के लिए सिर्फ पांच एकड़ जमीन है जिसमें से पानी के अभाव में तीन एकड़ जमीन खाली पड़ी है। इतने बड़े परिवार का गुजारा करने के लिये उनके पास मजदूरी के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता। ऐसे में रमेश बताते हैं, ''शासन द्वारा स्वरोजगार प्रारम्भ करने के लिये कोई मदद प्राप्त नहीं हो रही और कुछ योजनायें है भी तो उनका लाभ लेने के लिये सरकारी दफतरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं।" 

उन्होंने आगे बताया, ''गाँव में ईंट-भट्टे का काम ग्रामीणों को संजीवनी बन सकता है और मेरा परिवार भी ईंट-गुम्मे बनाने के काम करने के बारे में सोच रहा है। सरकार द्वारा अगर किसी योजना के तहत अनुदान पर कम ब्याज दर एवं आसान किश्तों में कोई सहायता मिले तो यह काम बड़े पैमाने पर भी किया जा सकता है, जिससे गाँव के कई और लोगों को मजदूरी भी मिल सकेगी।" 

जिले में सरकारी मशीनरी को हरकत में आने की जरूरत

इस बारे में मड़ावरा में तैनात सहायक विकास अधिकारी (आईएसबी) महेन्द्रपाल सिंह बताते हैं, ''अम्बेडकर विशेष स्वरोजगार योजना के तहत खुद को रोजगार प्रारम्भ करने में सरकार ग्रामीणों की मदद कर रही है। इस योजना के तहत बैंक से 55000 रुपए तथा उनके विभाग से सामान्य व पिछड़ा वर्ग को 7500 रुपए और एससी/एसटी वर्ग के लिये एक लाख रुपये तक का अनुदान दिया जाता है। बहरहाल सूखे की स्थिति में किसान काफी सहमा हुआ है, साहूकारों ने कर्ज देने से अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं, खेती से गुजारा होना सम्भव नहीं लग रहा। ऐसे हालात में सरकारी मशीनरी को हरकत में आने की जरूरत है और बुन्देलखण्ड में बार-बार पडऩे वाले सूखे में भी गुजर-बसर के लिये रोजगार के पर्याप्त और स्थायी इन्तेजाम की जरूरत है।"

रिपोर्टिंग - इमरान खान

 

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