बुंदेलखंड में इस वर्ष हुए 200 बाल विवाह

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बुंदेलखंड में इस वर्ष हुए 200 बाल विवाहगाँव कनेक्शन

महरौनी, ललितपुर। एक तरफा दहेज प्रथा, बाल विवाह जैसी कुप्रथाओ को समाप्त करने के लिए कठोर कानून बने है वहीं दूसरी ओर सरकार जनजागरूकता अभियान संचालित कर रही है। इन सब के बाबजूद ना तो दहेज प्रथा समाप्त हो सकी, ना ही बाल विवाह जैसी कुप्रथा। 

जिले में एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा किये गये सर्वे में यह तथ्य उजागर हुए है कि बुन्देलखण्ड के सबसे पिछड़े कहे जाने वाले ललितपुर जिले में अशिक्षा, रूढ़ीवादी सोच व जागरूकता के अभाव मे आज भी ग्रामीण अंचलो में बाल विवाह जैसी कुरीति विद्यमान है। 

बुन्देलखण्ड डेवलपमेन्ट फाउन्डेशन के सचिव सुधीर कुमार त्रिपाठी (40 वर्ष) बताते है, "इस वर्ष 40 गाँवों में बाल विवाह मुद्दो पर सर्वे कराया। सर्वे में 197 बालविवाह की पुष्टि हुयी, जिसमें 105 किशोरियां विदा हुईं, जबकि 92 किशोरियां बहू बनकर गाँवों में आईं।" वो आगे बताते है, "कानूनन विवाह कि उम्र भले ही किशोरियों की 18 व पुरुषों की 21 वर्ष हो, किन्तु ललितपुर जनपद में ग्रामीण अंचलो में 14 से 18 वर्ष के बीच किशोरियों की एवं 16 से 21 वर्ष के बीच किशोरों कि शादी कर दी जाती है। 

यूनीसेफ  की 2009 की रिर्पोट के अनुसार, 20 से 24 वर्ष आयु वर्ग की 47 प्रतिशत भारत की महिलाएं कानूनी रूप से ब्याही गई, जिसमें 56 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्र से थी। यूनीसेफ  के अनुसार, दुनिया में बाल विवाह सबसे अधिक 40 प्रतिशत भारत में होते हैं। बच्चों के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना-2005 के अनुसार, भारत के महिला एवं बाल विकाश विभाग द्वारा बाल विवाह को पूर्ण रूप से समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

ललितपुर जिले के पूर्व दिशा में 40 किमी दूर महरौनी ब्लॉक में 20 गाँवों मे कार्य कर रही मनीषा राठौर (23 वर्ष) बताती हैं, "बाल विवाह के कारणों पर ग्रामीण अभिभावकों के अलग-अलग मत है। अधिकांश अभिभावकों का कहना है कि सयानी लड़की का विवाह करने मे काफी परेशानी होती है, अधिक दहेज देना पड़ता है अगर लड़की लिख-पढ़ गयी है तो उसके अनरूप लड़का ढूंढने में काफी परेशानी होती है, वैसे भी लड़की परायी धन है, इसलिए जल्दी से जल्दी हाथ पीले कर देे उतना ही अच्छा है।"

मुख्यालय से 55 किमी दूर मडावरा ब्लॉक कि सविता अहिरवार (24वर्ष) बताती है, "कम उम्र में विवाह अनेको विषंगतियो के साथ -साथ किशोरियों को आजीवन स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है। कम उम्र में गर्भधारण कर कुपोषित एवं एनमिक बच्चों को जन्म दे रही हैं।

यूनीसेफ की 2007 की रिपोर्ट के अनुसार

पिछले 20 वर्षों मे देश में विवाह की औसत उम्र धीरे-धीरे बढ़ रही है, लेकिन बाल विवाह कि कुप्रथा अब भी बड़े पैमाने पर प्रचलित है। रिर्पोट के मुताबिक भारत में औसतन 46 फीसदी महिलाओं का विवाह 18 वर्ष होने से पहले कर दिया जाता है, जब कि ग्रामीण इलाको में यह औसत 55 फीसदी है।

वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक

देश में कुल मिलाकर विवाह योग्य कानूनी उम्र से कम से एक करोड़ 18 लाख (59 लाख लड़कियां और 69 लड़के) लोग विवाहित है। इसमें से 18 वर्ष से कम उम्र की एक लाख 30 हजार लड़कियां विधवा हो चुकी हैं और 24 हजार लड़कियां तलाकशुदा या पतियोंद्वारा छोड़ी गई हैं। वहीं 21 वर्ष से कम उम्र के 90 हजार लड़के विधुर हो चुके है, जिनमें 75 हजार तलाकशुदा है। वर्ष 2001 कि जनगणना के मुताबिक राजस्थान देश के उन सभी राज्यों में सर्वोपरि है, जिसमें बालविवाह की कुप्रथा सदियों से चली आ रही है। इसके बाद मघ्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, उड़ीसा, गोवा, हिमाचल प्रदेश और केरल आते हैं।

रिपोर्टर - अरविन्द्र सिंह परमार

 

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