छह दशक से प्रतिबंधित थी दाल, अब उसे ही सरकार देगी बढ़ावा

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छह दशक से प्रतिबंधित थी दाल, अब उसे ही सरकार देगी बढ़ावागाँव कनेक्शन

नई दिल्ली। जिस खिसारी दाल को करीब छह दशक पहले ज़हरीले रासायनिक तत्व की मात्रा अधिक होने के चलते प्रतिबंधित कर दिया गया था, केन्द्र सरकार अब उसकी तीन नई किस्मों की खेती को बढ़ावा देने जा रही है।

कम उत्पादन और दालों के बढ़ते भाव से किरकिरी झेल रही केंद्र सरकार ने सूखे से लड़ने में सक्षम खिसारी दाल को बढ़ावा देने का फैसला किया है। देश में खिसारी दाल का उत्पादन 1961 से रोका गया था। इसमें ओडीएपी नामक ज़हरीले रासायनिक तत्व की मात्रा अधिक पाई जाती है। इस ज़हर से इंसान के शरीर का निचला हिस्सा लकवा का शिकार हो जाता है। डॉक्टरी भाषा में इस न्यूरो डिस्ऑर्डर को न्यूरोलाथिरिस्म कहते हैं।

दालों की तीन नई किस्मों, रतन, प्रतीक और महाटिआरा को लेकर दावा किया जा रहा है कि इनमें ज़हरीला तत्व कम मात्रा में है। इन किस्मों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने कृषि विवि के साथ मिलकर विकसित किया है। इन्हें भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा भी पास कर दिया गया है। 

दालों की जांच रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए आईसीएमआर की महानिदेशक सौम्या स्वामीनाथन को 'गाँव कनेक्शन' ने ई-मेल व फोन से कई बार संपर्क करने के बाद भी जवाब नहीं मिला। संस्थान के पब्लिक एण्ड इंफॉर्मेशन प्रभाग के अध्यक्ष डॉ. विजय कुमार श्रीवास्तव ने कहा, ''हम जांच की रिपोर्ट केवल खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रबंधन विभाग (एफएसएसएआई) के साथ ही साझा कर सकते हैं।"                        

सरकार और आईसीएमआर के इस फैसले की आलोचना देश के वरिष्ठ वैज्ञानिक भी दबे शब्दों में कर रहे हैं। ''दालों का उत्पादन बढ़ाना है तो अन्य 110 दिन तक तैयार होने वाली किस्में भी विकसित की हैं साथी वैज्ञानिकों ने। खिसारी को लाने में सरकार की क्या मंशा है नहीं पता, और आईसीएमआर ने भी किस आधार पर पास कर दिया? घबराहट में है।" आईसीएआर में दालों के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा।

देश में खाने की सामग्री की नियामक संस्था भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने सरकार से अनुमति मांगी है कि वो खिसारी की तीन नई प्रजातियों को जारी करने के बारे में आम जनता, एनजीओ और स्वास्थ्य के क्षेत्र के लोगों से विमर्श कर सके।

''देश में अकाल पड़ गया होता तो चलो कुछ भी कदम उठाओ, स्थिति अभी इतनी बुरी नहीं। दालों की बहुत सी किस्में हैं जिनको बढ़ावा दिया नहीं जा रहा, कमी नई किस्मों की नहीं, पॉलिसी की है। दरअसल सरकार इस कदम से अपनी नाकामियों को छुपाना चाहती है।" देश के विख्यात खाद्य नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा कहते हैं।

इससे पहले केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा, ''इन तीनों किस्मों को देश के उन हिस्सों के किसानों के लिए जारी किया गया है जहां पहले से खिसारी की खेती होती रही है। आईसीएआर कोशिश कर रहा है कि पारम्परिक खिसारी दाल के बीजों को इन नई किस्मों से बदल सके।" खिसारी दालें कठोर प्रवृत्ति की होने के कारण कम नमी वाले स्थानों पर असानी से पैदा हो जाती हैं जिससे लागत काफी कम हो जाती है।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार खिसारी या घास दाल रबी फसलों का अहम हिस्सा है। प्रतिबंधित होने के बावजूद इसकी खेती मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल में लगभग पांच लाख हेक्टेयर में हो रही है। वर्ष 1980 तक देश के लगभग 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इस दाल की खेती होती थी। 

खिसारी पर से प्रतिबंध हटाकर इसकी खेती को प्रोत्साहित करने के पीछे सरकार अपना मंशा देश में उत्पादन और खपत के अंतर को कम करना बता रही है। भारत में दाल की सालाना खपत दो करोड़ टन है जबकि सालाना उत्पादन 1.7 से 1.8 करोड़ टन, इस लगभग 10 प्रतिशत की कमी को भारत इंपोर्ट के माध्यम से पूरा करता है। सरकार का मानना है कि खिसारी दाल की 600 से 700 किग्रा प्रति हेक्टेयर की उत्पादकता से इस अंतर को खुद के उत्पादन से पूरा करने में देश को सहयोग मिलेगा। अब वर्तमान फसल सत्र 2015-16 में भी दलहन का उत्पादन 80 लाख टन के काफी कम होने के कृषि मंत्रालय के अनुमान के चलते केंद्र सरकार जनवरी 2016 में अब तक दो बार में लगभग 20,000 टन उड़द और अरहर आयात के टेंडर एमएमटीसी के ज़रिए जारी करवा चुकी है।

 

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