उत्तर प्रदेश: कोरोना की तीसरी लहर से लड़ाई की तैयारियों के बीच जिला अस्पताल के लिए संघर्ष करता एक जिला

कालीन नगरी के नाम से प्रसिद्ध जिला भदोही एक जिला अस्पताल के लिए तरस रहा है। जिला बने 27 साल हो गये। जिला अस्पताल के लिए आया पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। अब जिले की जनता अस्पताल के लिए आंदोलन कर रही है।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   8 Jun 2021 2:15 PM GMT

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protest for district hospital bhadohi, bhadohi district hospitalभदोही जिला अस्पताल की मांग अब तेजी हो रही है।

एक तरफ पूरी दुनिया कोरोना से जंग लड़ रही है। भारत में कोरोना से लाखों लोगों की मौत हो चुकी है। इस बार संक्रमण से ग्रामीण भारत भी नहीं बच पाया। लोग जहां तीसरी लहर को लेकर चिंतित हैं तो वहीं उत्तर प्रदेश के जिला भदोही के लोग जिला अस्पताल के लिए सोशल मीडिया पर लड़ाई लड़ रहे हैं।

राजधानी लखनऊ से मात्र 250 किमी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी का हिस्सा रहा भदोही 30 जून 1994 को उत्तर प्रदेश का 65वां जिला बना। सरकारों ने भदोही का नाम भी बदला। नाम कभी संत रविदास नगर हुआ तो कभी भदोही, लेकिन 27 साल बाद भी जिला अस्पताल नहीं बन पाया।

भदोही को कालीन नगरी के नाम से भी जाना जाता है। हाथों से बनने वाला कालीन देश में सबसे ज्यादा भदोही में ही बनता है। भारत से सालाना लगभग 12,000 करोड़ रुपए का हस्तनिर्मित कालीन निर्यात होता है। इसमें लगभग 10 हजार करोड़ रुपए का कालीन भदोही का होता है।

क्षेत्रफल के हिसाब से भदोही वैसे तो उत्तर प्रदेश का सबसे छोटा जिला है, लेकिन जिले का प्रदेश की जीडीपी में सालाना योगदान लगभग 3,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का है जो कि कई दूसरे बड़े जिलों की तुलना में काफी अधिक है।

वर्ष 2011 में हुई जनगणना के अनुसार भदोही की आबादी 15 लाख से ज्यादा है। यहां से वाराणसी की दूरी लगभग 40 और प्रयागराज की दूरी लगभग 80 किलोमीटर है। मंडल मिर्जापुर लगभग 15 किमी दूर है।

ऐसा नहीं है कि जिले में जिला अस्पताल बनाने की कवायद नहीं हुई। अस्पताल बनना शुरू हुआ। आधा काम भी हुआ, फिर निर्मण रुक क्यों गया ? मामले को क्रमवार समझते हैं।

अस्पताल के पैसों का बंदरबाट

11 जनवरी 2008 को ज्ञानपुर ब्लॉक के सरपतहा में 100 बेडों का अत्याआधुनिक अस्पताल बनाने की रूपरेखा बनती है। 27 मार्च 2008 को उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड को अस्पताल बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। प्रदेश में बसपा की सरकार थी। तत्कालीन बसपा मंत्री रंगनाथ मिश्रा ने इसी वर्ष जिला अस्पताल की नींव रखी। इसके लिए 14 करोड़ रुपए का बजट पास हुआ।

चार साल बाद वर्ष 2012 निर्माणाधीन अस्पताल की सुध ली गई। कार्यदायी संस्था से देरी का कारण पूछा गया। तत्कालीन जिलाधिकारी अमृत त्रिपाठी ने जांच के लिए दो सदस्यों की टीम गठित की। रिपोर्ट में पाया गया कुल बजट का लगभग 90 फीसदी पैसा खर्च कर दिया गया जबकि निर्माण 45 से 50 फीसदी तक ही हुआ। वर्ष 2012 में बाकी के पैसे भी कार्यदायी संस्था को दे दिये गये, लेकिन काम फिर भी नहीं हुआ। 14 की जगह 18 करोड़ रुपए खर्च हो गये। जिला अस्पताल नहीं बन पाया।


अपर चिकित्सा अधिकारी, भदोही ने 20 दिसंबर 2012 को ज्ञानपुर कोतवाली में मामला भी दर्ज कराया। वर्ष 2014 में भदोही के तत्कालीन जिलाधिकारी रणवीर प्रसाद ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य परिवार कल्याण, उत्तर प्रदेश अरविंद कुमार को बताया कि भदोही में बन रहे जिला अस्पताल में 833 लाख (8.33 करोड़) रुपए का गबन हुआ और उन्होंने दोषियों (कार्यदायी संस्था) पर एफआईआर दर्ज कराने की मांग की। जनवरी 2014 से निर्माण कार्य बंद है। अस्पताल का अभी भी 50 फीसदी से ज्यादा काम बाकी है।

सरकार ने क्या किया ?

वर्ष 2019 में मामले ने एक बाद तुल पकड़ा। प्रदेश की भाजपा सरकार ने घोटाले की जांच के लिए एसआईटी (Special Investigation Team) गठित की। मामले में कार्यदायी संस्था के तत्कालीन परियोजना प्रबंधक गिरजाशंकर दीक्षित और सप्लायर रामकुमार सिंह, हंसराज सिंह (मौत हो चुकी है), मुंशी सिंह के खिलाफ धारा 406, 409 के तहत मुकदमा दर्ज किया। परियोजना प्रबंधक को जेल भी जाना पड़ा जिन्हें बाद में जमानत मिल गई।

इस घोटाले में एक मामला भदोही के वर्तमान ब्लॉक प्रमुख प्रशांत सिंह उर्फ चिट्टू सिंह पर भी दर्ज है। उन पर आरोप है कि उनकी फर्म एसकेआर ने भी पैसों का हेरफेर किया। इस मामले पर वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "जिस समय (2012 का आखिरी या 2013 के शुरुआत में) यह मामला सामने आया था उस समय यहां ब्लॉक प्रमुखी का चुनाव हो रहा था और मैं प्रत्याशी था। मेरे ऊपर झूठा केस लगाया गया, जबकि जिस कंपनी का मुझे मालिक बताया गया वह कंपनी मेरी है ही नहीं। एफआईआर के बाद कुछ नहीं हुआ।"

वर्ष २०१७ में सौंपी गई विज्ञप्ति से आप गबन के मामले को समझ सकते हैं।

"रामकुमार सिंह, हंसराज सिंह और मुंशी सिंह ये सभी तो मजदूर सप्लायर थे जिन्हें पेटी कॉन्ट्रैक्टर कहा जाता है। प्रदेश में कार्यदायी संस्था थर्ड पार्टी से काम कराती है। ये सभी लोग तो सप्लायर थे। जब परियोजना प्रबंधक गिरजाशंकर दीक्षित को हटाया गया था तब उनकी जगह पर आये परियोजना प्रबंधक वीके श्रीवास्तव ने लिखित में दिया था इस मामले में प्रशांत सिंह की भूमिका नहीं है। मामले की जांच के लिए 14 से ज्यादा अधिकारी भी बदले जा चुके हैं। इस मामले में दो एफआईआर दर्ज हुई, एक जिला पुलिस द्वारा और दूसरा स्वास्थ्य विभाग के लोगों ने करवाया। स्वास्थ विभाग के मुकदमे में आरोपी संस्था है, सप्लायर नहीं।" प्रशांत सिंह आगे कहते हैं।

वर्ष 2019 परियोजना प्रबंधक वीके श्रीवास्तव पर भी उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड की ओर से मुकदमा दर्ज किया गया। आरोप लगा कि भदोही में हुए में किसी कार्य में इन्होंने अनियमितता बरती, हालांकि उन्होंने किस कार्य में लापरवाही बरती, इसकी जानकारी नहीं मिल पाई। भदोही में जिला अस्पतालक निर्माण का काम उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड को ही सौंपा गया था।

अब क्या हो रहा ?

निर्माणाधीन अस्पताल इन 12 वर्षों में खंडहर जैसा हो गया है। जब पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में आई तब भदोही के लोगों को ध्यान आया कि हमारे जिले के सरकारी अस्पतालों में तो मुश्किल से 20-25 वेंटिलेटर ही हैं। ज्यादा वेंटिलेटर होगा कैसे, यहां का जिला अस्पताल तो बन ही नहीं पाया। भदोही की मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ लक्ष्मी सिंह ने हमें कोरोना की पहली लहर (2020) के दौरान बताया था कि भदोही में बस दो वेंटिलेटर थे, हालांकि दूसरी लहर में इसकी संख्या बढ़ाई गई लेकिन वह भी अपर्याप्त है। मतलब 15 लाख से ज्यादा की आबादी पर मात्र 20-25 वेंटिलेटर? यहां से मरीजों को मिर्जापुर भेजा जाता रहा है।

भदोही में कोरोना मरीजों को मिर्जापुर भेजा जा रहा है, ये तस्वीर कोरोना के समय की, जून 2020 की है।

भदोही के लोग अब जिला अस्पताल को लेकर मुहिम चला रहे हैं। निर्माणाधीन अस्पताल के बाहर सत्याग्रह आंदोलन चल रहा है तो सोशल मीडिया पर #भदोही_मांगे_जिला_अस्पताल को ट्रेंड कराया जा रहा है। इस मुहिम की खास बात यह भी है कि भदोही के वे लोग जो जिले से बाहर दूसरे प्रदेशों में नौकरी करने गये हैं, वे लोग भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं। बड़ी संख्या में युवा और समाजसेवी भी सोशल मीडिया पर भदोही अस्पताल की मांग को लेकर लगातार लिख रहे हैं।

इस पूरे मामले पर भदोही के सामाजिक कार्यकर्ता, वरिष्ठ पत्रकार और मौन सत्याग्रह आंदोलन के सहभागी हरीश सिंह कहते हैं, "भदोही की जनता ने अब मन बना लिया है कि जिले में जिला अस्पताल होना ही चाहिए। इसके लिए सभी लोग अपने स्तर से लड़ाई लड़ रहे हैं। हमने भी सांकेतिक आंदोलन की शुरुआत की है। जब तक अस्पताल बन नहीं जाता, हमारी लड़ाई जारी रहेगी।"

"हमारी तो यही मांग है कि जल्द से जल्द अस्पताल का निर्माण हो ताकि जिले के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकें। यह जिले का दुर्भाग्य है कि इतने वर्षों बाद भी यहां जिला अस्पताल नहीं है।" हरीश सिंह आगे कहते हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता और हमार भदोही (एनजीओ या संस्था नहीं) के संयोजक संजय श्रीवास्तव कहते हैं, "हमारे यहां कोई भी बड़ी दुर्घटना होती है तो पीड़ित को रेफर कर दिया जाता है। भदोही के सरकारी अस्पतालों में बस यही होता है। चार से ज्यादा टांका लगाने की नौबत आते ही मरीज को रेफर कर दिया जाता है। बनारस जाते-जाते गंभीर रूप से घायल व्यक्ति की मौत रास्ते में ही हो जाती है। ऐसे में अब जरूरी है कि जिला अस्पताल का काम शुरू कराया जाये। भदोही के लोगों के लिए यह बहुत जरूरी है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि महानगरों में रह रहे भदोही के युवा भी भदोही जिला अस्पताल की मांग को लेकर मुहिम में हिस्सा ले रहे हैं।"

तस्वीर जून 2020 की है। तब भदोही जिला अस्पताल की मांग को लेकर सांकेतिक मौन सत्याग्रह आंदोलन किया गया था।

संजय कहते हैं कि भदोही के लोग उत्तर प्रदेश सरकार को पत्र भी लिख रहे हैं जिसमें उनकी मांग यही हैं भदोही में जल्द से जल्द जिला अस्पताल शुरू किया जाये।

भदोही में फिलहाल दो बड़े अस्पताल हैं, एक ज्ञानपुर ब्लॉक में महाराजा चेत सिंह और दूसरा भदोही में महाराजा बलवंत सिंह चिकित्सालय। दोनों अस्पतालों में गंभीर या सड़क हादसों में घायल लोगों का इलाज नहीं हो पाता। ऐसे मरीजों को रेफर कर दिया जाता है।

वर्ष 2020 में जब सोशल मीडिया पर आवाज उठी तब जनप्रतिनिधि भी हरकत में आ गये थे। भदोही के सांसद डॉ रमेंश चंद बिंद और विधायक रविंद्र त्रिपाठी ने इस संदर्भ में जिलाधिकारी से मुलकात की और अस्पताल निर्माण को लेकर अपनी बात रखी थी। वहीं औराई विधानसभा के भाजपा विधायक दीनानाथ भास्कर ने प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह को विज्ञप्ति देकर अस्पताल को जल्द से जल्द बनवाने की मांग की थी, हालांकि इससे हुआ क्या, यह बात जनप्रतिनिधियों ने आज तक नहीं बताई।

यह राजकीय आयुर्वेद चिकित्सालय मोढ़, भदोही की तस्वीर है।

इस मामले में गांव कनेक्शन ने भदोही के सांसद डॉ रमेश चंद बिंद से बात की। वे कहते हैं, "भदोही के जिला अस्पताल को बनवाने की मांग मैं केंद्र सरकार से भी कर चुका हूं। प्रदेश सरकार से भी मैंने बात की है। कोरोना के संकट को देखते हुए मैंने सांसद निधि से 50 लाख रुपए भी दिये हैं जो कि अस्पताल निर्माण में ही खर्च होने हैं। पिछली सरकरों में हुए घोटालों की वजह से जिला अस्पताल का काम नहीं हो पाया। और जिला अस्पताल की मांग बिल्कुल जायज है।"

"भदोही में कालीन का काम होता है। यहां बड़ी संख्या में बाहर के मजदूर भी आते हैं। ऐसे में 100 बेड का अस्पताल होना बहुत जरूरी है। हमें अब इसकी अहमियत पता चल रही है। मैंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि जांच चलती रहे लेकिन अस्पताल को भी शुरू कराया जाये, जिले की जनता के लिए यह बहुत जरूरी है।"

प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं का भी हाल भी जान लीजिए

बात अगर कोरोना की करें तो उत्तर प्रदेश में अब तक कोरोना के कुल 11 हजार से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं जबकि 320 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। उत्तर प्रदेश आबादी के लिहाज से देश का सबसे बड़ा राज्य है, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल ठीक नहीं कहा जा सकता।


प्रदेश में कुल 4635 सरकारी अस्पताल हैं, जिला अस्पताल, प्राथमिक और सामुदायिक स्वाथ्य केंद्रों को मिलाकर। इनमें कुल 76,260 डॉक्टरों की तैनाती है। प्रदेश की 77 फीसदी (15 करोड़ से ज्यादा) आबादी गांवों में रहती है, जिनके लिए 4,442 अस्पताल और कुल 39,104 बेड हैं। एक बेड पर पर लगभग 3,900 मरीज की दावेदारी है। प्रदेश की प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं तो और खराब हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में जरूरत 3,621 डॉक्टरों की है, लेकिन के 1,344 डॉक्टर ही उपलब्ध हैं। वर्ष 2019 लोकसभा में पेश एक रिपोर्ट में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह जानकारी दी थी।

रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश के 942 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में तो बिजली और पानी की भी नियमित सप्लाई नहीं होती। राज्य के 213 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बिजली नहीं है। 270 में बराबर पानी नहीं आता और 459 केंद्र तो ऐसे हैं जहां की सड़कें इतनी खराब है कि वहां ठीक से पहुंचा भी नहीं जा सकता।

नोट- यह खबर पहली बार जून 2020 में पब्लिश हुई थी। बाद में इसे जून 2021 में अपडेट किया गया।

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