पीने के लिए टॉयलेट वाला पानी, 500 रुपए वाला टिकट 1,200 में, 25 घंटे का सफर 50 घंटे में, श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 80 मजदूर मरे

श्रमिक स्पेशल ट्रेनें अपने निर्धारित समय से बहुत देरी से चल रही हैं। इस भीषण गर्मी में 25 घंटे का सफर 50 घंटे में पूरा हो रहा है। कई ट्रेनें तो अपने गंत्वय स्थान पर 72 घंटे की देरी से पहुंची हैं। शायद इसीलिए भूखे-प्यासे यात्री स्टेशनों पर हंगामा कर रहे हैं, पानी और खाने की चीजें लूट रहे हैं, जान गंवा रहे हैं।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   30 May 2020 6:30 AM GMT

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पीने के लिए टॉयलेट वाला पानी, 500 रुपए वाला टिकट 1,200 में, 25 घंटे का सफर 50 घंटे में, श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में 80 मजदूर मरेट्रेनों की लेटलतिफी से यात्री परेशान हो रहे हैं। (फाइल फाटो)

लॉकडाउन में अपने घरों से दूर दूसरे प्रदेशों में फंसे मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए शुरू की गई श्रमिक स्पेशन ट्रेनें इन्हीं मजदूरों के लिए जानलेवा साबित हो रही हैं। आरपीएफ (रेलवे सुरक्षा बल) के हवाले से एक रिपोर्ट के अनुसार नौ मई से 27 मई के बीच श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में लगभग 80 मजदूरों की मौत हो चुकी है। इस बीच रेलवे ने 3,840 ट्रेनों से 52 लाख से ज्यादा लोगों को उनके राज्यों तक पहुंचाया।

ट्रेनें अपने निर्धारित समय से बहुत देरी से चल रही हैं। इस भीषण गर्मी में 25 घंटे का सफर 50 घंटे में पूरा हो रहा है। कई ट्रेनें तो अपने गंत्वय स्थान पर 72 घंटे की देरी से पहुंची हैं। शायद इसीलिए भूखे-प्यासे यात्री स्टेशनों पर हंगामा कर रहे हैं, पानी और खाने की चीजें लूट रहे हैं, जान गंवा रहे हैं।

"हमसे 695 रुपए वाले टिकट का 1,200 रुपए लिया गया, फिर भी हम रातभर भूखे प्यासे रहे। रात में जब कहीं पानी नहीं मिला तो लैटरिन वाला पिये हम लोग। बाहर जो नल लगा हुआ है उसमें पानी आ ही नहीं रहा है।" आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम से श्रमिक स्पेशल ट्रेन से बिहार से मुजफ्फरपुर पहुंचे दर्शन कुमार कहते हैं।

शनिवार 23 मई को आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम से बिहार के मुजफ्फरपुर जा रही श्रमिक स्पेशल ट्रेन सुबह 10 के आसपास बजे जैसे ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन पहुंची वहां के प्लेटफॉर्म नंबर एक पर पानी के लिए भगदड़ मच गई। ट्रेनों से उतरकर स्टेशन पर रखे पानी के बॉटल को यात्री लेकर भागने लगे। सोशल मीडिया पर यह वीडियो वायरल हो गया।

बिहार के लखीसराय के दर्शन कुमार भी इसी ट्रेन में बैठे थे। जब ट्रेन पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेलवे स्टेशन के आउटर पर रुकी थी तब उन्होंने वहां मौजूद एक आदमी से ट्वीट करवाया और अपनी परेशानी बताई। उस ट्वीट पर उनका नंबर भी था। गांव कनेक्शन ने इसी नंबर पर उनसे बात की और जाना कि आखिर स्टेशन पर पानी की लूट क्यों हुई।

दर्शन कुमार और उनके साथ के लोगों ने यह वीडियो ट्रेन में सफर के दौरान बनाया था

दर्शन कुमार गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "हम लोग 21 तारीख को रात 10 बजे विशाखापत्तनम से निकले थे। मेरे साथ कुल 22 लोग हैं। हम वहां एक साथ एक कंपनी में मजदूरी का काम करते थे। 695 रुपए वाले टिकट के हमशे 1,200 रुपए लिये गये। हमने वहां टिकट वाले आदमी को कुल 26,400 रुपए दिये।"

"हम वहां दो महीने से परेशान थे। हमें लगा कि ज्यादा पैसा इसलिए लिया जा रहा कि हो सकता है कि ट्रेन में खाने-पीने को भी मिलेगा। हमने अपने साथ कुछ खाना और पानी ले लिया था, लेकिन वक कब तक चलता। गेट के पास लगे नल में पानी नहीं आया तो हमने लैटरिन में आने वाला पानी पिया।" दर्शन आगे कहते हैं।


वे आगे कहते हैं, "तीन दिन के सफर में किसी स्टेशन पर एक पैकेट पारले बिस्कुट मिला था। कल (22 मई शुक्रवार ) रात ग्यारह बजे गाड़ी खड़ी हो गई। हमें लगा कि कुछ देर बाद चलेगी, लेकिल ट्रेन सुबह तक नहीं चली। सुबह जब हमने पता किया तो पता चला कि गाड़ी दीनदयाल रेलवे स्टेशन (मुगलसराय) के आउटर पर खड़ी है। आठ-नौ बजे के बजे के बाद हम लोगों ने ट्रेन से बाहर निकलकर हंगामा कर दिया। सब भूखे प्यासे थे। स्टेशन पर गाड़ी जैसे ही रुकी, जिसको जो दिखा सबने लूट लिया।"

गुरुवार 21 मई को विशाखापत्तनम से चली ट्रेन शनिवार रात आठ बजे बिहार के मुजफ्फरपुर पहुंची। इंडियन रेलवे के अनुसार विशाखापत्तनम से मुजफ्फरपुर की दूरी लगभग 1585 किलोमीटर है जो जिसकी यात्रा लगभग 28 घंटे में पूरी की जा सकती है, लेकिन यह श्रमिक स्पेशल ट्रेन मुजफ्फरपुर पहुंची लगभग 46 घंटे में, यानी कि लगभग 18 की देरी से।


यही देरी यात्रियों को लिए मुसीबत बन रहा है। बिहार के जिला शेखपुरा के सुधीर दास भी इसी ट्रेन में थे, बताते हैं, "विशाखापत्तनम में दो महीने से बेरोजगार बैठा था। खाने तक के पैसे नहीं थे। पहले लगा कि फ्री में घर चले जाएंगे लेकिन फिर पता चला कि 1,200 रुपए लेंगेगे। घर फोन करके पैसे मंगवाया। हम लोग पहले की ही तरह अपने खाने-पीने का सामान लेकर चले थे, लेकिन हमें क्या पता था कि गाड़ी इतनी देर होगी। हम लोग पानी के लिए तरस गये। टॉयलेट में पानी नहीं आ रहा होता तो हम तो मर ही जाते।"

कई मीडिया रिपोर्टस के अनुसान लॉकडाउन में फंसे यात्रियों को उनके घर पहुंचाने के लिए शुरू की गई श्रमिक स्पेशल ट्रेनें लेट तो हो ही रही हैं, अपना रास्ता भी भटक जा रही हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 23 मई तक 40 श्रमिक ट्रेनें रास्ता भटक चुकी हैं। केंद्रीय रेलवे मंत्री पीयूष गोयल एक ट्वीट करके बताया कि हर एक ट्रेन अपने गंतव्य तक पहुंची है। कई जगह परेशानी होने के कारण ट्रेनों के रूट डायरर्वट किये गये।

पीआईबी फैक्ट पे रेलवे मंत्री के इसी ट्वीट पर रिप्लाई किया और बताया कि 80 फीसदी श्रमिक ट्रेनें या तो यूपी या बिहार जा रही हैं, इसकी वजह से कंजेशन है। इन ट्रेनों के रूट में बदलाव करना पड़ा है न कि ये अपना रास्ता भटकी हैं।

एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन बेंगलुरु से लगभग 1450 लोगों को लेकर यूपी के बस्ती जा रही थी। जब ट्रेन रुकी तो लोगों को लगा वह अपने घर पहुंचा गए, लेकिन ट्रेन तो गाजियाबाद में खड़ी थी। पता चला कि ट्रेन को रूट व्यस्त होने की वजह से डायवर्ट किया गया है। इसी तरह महाराष्ट्र के लोकमान्य टर्मिनल से 21 मई की रात एक ट्रेन पटना के लिए चली, लेकिन वह पहुंच गई पश्चिम बंगाल के पुरुलिया स्टेशन। दरभंगा से चली एक ट्रेन का रूट भी बदलकर राउरकेला की ओर कर दिया गया।

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हालाँकि इस पूरे मामले में रेलवे ने अपनी सफाई देते हुए बयान जारी किया। पश्चिमी रेलवे के मुख्य पीआरओ रविन्द्र भास्कर ने कहा, "अधिक ट्रेनें चलायी जाने की वजह से इन मार्गों पर अधिक भीड़ होती है। ऐसे में हमने ट्रेन को डायवर्ट कर दूसरे रूट से ले जाने का फैसला किया था।"

वहीं रेलवे बोर्ड के चैयरमेन विनोद कुमार यादव ने कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार की ओर जाने वाली ट्रेनों के मार्ग पर ज्यादा ट्रेनें रहती हैं, इस वजह से हमने ट्रेन को डाइवर्ट किया, यह एक सामान्य प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि ट्रेन सभी मजदूरों को उनके गंतव्य स्थान तक जरूर पहुंचाएगी।

इस बीच ट्रेनों में यात्रियों की मौतें भी हो रही हैं। महाराष्ट्र में मुंबई के लोकमान्य तिलक टर्मिनल से 27 मई को वाराणसी पहुंची 01770 श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन में दो श्रमिकों के शव मिले। पश्चिम चंपारण जिला के चनपटिया थाना के तुलाराम घाट के रहने वाले मोहम्मद पिंटू शनिवार 23 मई को दिल्ली से पटना के लिए चले थे। सोमवार 25 मई की सुबह दानापुर से मुजफ्फरपुर जंक्शन पहुंचे। मुजफ्फरपुर में बेतिया की ट्रेन में चढ़ने के दौरान उनके चार साल के इरशाद की मौत हो गई। पिंटू ने अपने बयान में कहा कि उमस और गर्मी बहुत थी, बेटे के पेट में अन्न का एक दाना नहीं था।

इस बारे में मुजफ्फरपुर के के जिला सूचना जनसंपर्क पदाधिकारी कमल सिंह ने बताया, "सफर में बच्चे की तबियत खराब हो गई थी जिस कारण उसकी मौत हुई।"

महाराष्ट्र के बांद्रा टर्मिनल से 21 मई को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से घर लौट रहे कटिहार के 55 वर्षीय मो अनवर की सोमवार 23 मई की शाम बरौनी जंक्शन पर मौत हो गई। ऐसी और बहुत सी मौतें ट्रेनों में सफर के दौरान लगातार हो रही हैं।

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अरवीना खातून (35) जो कटिहार की रहने वाली थीं। वह अपनी बहन और जीजा के साथ श्रमिक स्पेशल ट्रेन से अहमदाबाद से बिहार आ रही थीं। बीते रविवार 24 मई को उनकी ट्रेन चली थी। सोमवार दोपहर 12 बजे के आसपास उनकी मौत हो गई। मुजफ्फरपुर जंक्शन पर दोपहर तीन बजे जब ट्रेन पहुंची तब रेलवे पुलिस ने शव को उतार कर प्लेटफॉर्म पर रखा। शव के पास खड़ा अरवीना का ढाई साल का बच्चा लगातार चादर खींच रहा था। यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। इसके बाद पटना हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया और बिहार सरकार से जवाब मांगा।

इस मामले पर शुक्रवार 29 मई को भारतीय रेलवे की तरफ रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि इस मामले की जांच चल रही है। विनोद कुमार यादव ने यह भी कहा कि ट्रेन के रास्ता भटकने की खबरें झूठ हैं। कोई भी ट्रेन कभी रास्ता नहीं भटक सकती। उन्होंने ट्रेनें लेट क्यों हो रही हैं, इस पर कहा कि 72 घंटे से ज्यादा सिर्फ चार ट्रेनों ने समय लिया। 3840 ट्रेनें 72 घंटे से कम समय में अपने गंतव्य तक पहुंची हैं। 90 फीसदी ट्रेन समय से पहुंची हैं। यह भी कहा कि कई कारणों की वजह से ट्रेनों के रूट को डायवर्ट करना पड़ा। ट्रेन लेट होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि नौ दिन ट्रेन लेट होने का आरोप झूठा है। ऐसा कुछ भी नहीं है।

इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने लोगों से अपील भी की कि जो लोग गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं, वो ट्रेन यात्रा से बचें। गर्भवती महिलाएं, 10 साल से कम उम्र के बच्चे और 65 से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग भी अगर जरूरी न हो तो यात्रा न करें।

उत्तर प्रदेश के जिला भदोही के असनाव बाजाार के रहने वाले मिथिलेश पांडेय गुजरात के सूरत में रहते थे। वे 23 मई को श्रमिक स्पेशल ट्रेन से पहले वाराणसी फिर वहां से अपने घर भदोही पहुंचे। इस पूरे यात्रा के बारे में वे बताते हैं, "हम लोग बुधवार 20 मई शाम साढ़े सात बजे सूरत से निकले थे। बनारस पहुंचे 23 मई को दोपहर दो बजे। कटनी से जबलपुर ही पहुंचने में एक पूरा दिन लग गया। जबलपुर से छिवुकी आने में पूरा दिन लग गया। वैसे हम लोग 24-25 घंटे में आ जाते थे, लेकिन इस बार हमें 50 घंटे से ज्यादा लग गया।"

   

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