कोरोनाकाल में सात फेरे: कम खर्च में शादी का अवसर या आपदा को निमंत्रण ?

कोविड-19 के दौरान शादी समारोह में मिली अनुमति के बाद जहाँ एक तरफ बिना बैंड बाजा के कम खर्चे में शादियां संपन्न हो रही हैं वहीं दूसरी तरफ इन शादियों के अब दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

Neetu SinghNeetu Singh   25 Jun 2020 1:30 PM GMT

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कोरोनाकाल में सात फेरे: कम खर्च में शादी का अवसर या आपदा को निमंत्रण ?

कोरोना पीड़ित मरीजों की बढ़ती संख्या के बीच भारत में जिंदगी की गाड़ियां दौड़ने लगी हैं। बाजार खुल गए हैं,सोशल डिस्टेसिंग में शादियां भी होने लगी हैं ... लेकिन क्या देश कोरोना के साथ जीना सीख गया है?

देश में शादी बाारात जैसे समारोहों के लिए शर्तों के साथ छूट मिली है। तामझाम के साथ रंगीन शादियों वाले देश में शादियां सादी हो रही हैं, न बैंड बाजा होता है न ज्यादा बाराती। सरकार ने अधिकतम बारातियों की संख्या भी तय कर दी है। कम खर्चे में शादियों की सराहना हो रही है लेकिन इसी बीच कई केस ऐसे हैं जिन्होंने शादी जैसे समारोहों पर सवाल खड़े किए हैं। क्योंकि नियमों के अनुसार अधिकतम 20 से 50 लोग ही शादी में होने चाहिए लेकिन हकीकत में ऐसा हो नहीं रहा है और सोशल डिस्टेसिंग समेत कोविड की गाइडलाइंस का ध्यान नहीं रखा जा रहा।

बिहार और यूपी की दो शादियां इन दिनों सुर्खियों में हैं। इन दोनों शादियों में आये कई लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो गये हैं।


बिहार की राजधानी पटना के पालीगंज क्षेत्र के डीहपाली गाँव में 15 जून को हुई शादी के दो दिन बाद दूल्हे की मौत हो गयी। इस बारात में शामिल 125 लोगों का सैंपल लिया गया जिसमें 22 लोगों की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आयी। वहीं यूपी के अमेठी जिले के कमरौली गाँव से 19 जून को बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ के लिए बारात निकली थी, बारात पहुंचने से पहले ही दूल्हा और उसके पिता की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आयी तो पुलिस ने रास्ते से ही पिता-पुत्र को अस्पताल पहुंचाया।

ये पिता पुत्र 15 जून को दिल्ली से लौटे थे तब इनका कोविड-19 का टेस्ट हुआ था जिसकी रिपोर्ट 19 जून को मिली जिस दिन लड़का बारात लेकर निकला था। जब डॉक्टर की टीम इन्हें घर लेने पहुंची तो पता चला कि ये तो बारात लेकर निकल चुके हैं। पुलिस प्रशासन की मदद से आधे रास्ते से पिता-पुत्र को पकड़कर अस्पताल पहुंचाया गया।

डीहपाली गाँव में दूल्हे की मौत कैसे हुई इस पर अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है दूल्हे की मौत कोरोना के कारण हुई है।

कोरोनाकाल की ये दो शादियाँ कोविड-19 के दौरान हो रही शादी की भयावता बताने के लिए काफी हैं। कुछ लोग इस समय हो रही शादियों को अवसर के रूप में देख रहे हैं तो कुछ इसे नुकसान बता रहे हैं। देश में कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए 22 मार्च से 31 मई 2020 तक लॉकडाउन लगा दिया गया। यह शादियों का समय था। कुछ शर्तों के साथ लॉकडाउन हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई। सरकार की गाइडलाइंस में शादियों को लेकर भी कुछ शर्तें रखी गईं।

"लॉकडाउन में हमने ये पहली शादी अटेंड की थी। शादी में लगभग 250 लोग आये थे। कोई सोशल डिस्टेंसिंग नहीं, गिने चुने लोग ही मास्क लगाये थे। डर तो बहुत लग रहा था पर क्या करें खाना खाकर वापस आ गये," उत्तर प्रदेश, इटावा जिले के आरटीआई चौराहे के पास 24 जून को हुई शादी में शामिल रोहित सिंह (26 वर्ष) कहते हैं।

कोविड-19 के दौरान शादी समारोह में मिली अनुमति के बाद जहाँ एक तरफ बिना बैंड बाजा के कम खर्चे में शादियां संपन्न हो रही हैं तो वहीं दूसरी तरफ इन शादियों में बरती जा रही लापरवाही के कारण इसके दुष्परिणाम भी सामने आ रहे हैं।

सरकार की तरफ से जारी गाइडलाइंस के अनुसार शादी में केवल 20-50 लोगों के शामिल होने की अनुमति है, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। कई जगह नियमों को ताक में रखकर शादियाँ हो रही हैं। जून के बाद अक्टूबर तक शादी का कोई मुहूर्त नहीं है। शादियों को लेकर इसलिए भी जल्दबाजी की जा रही है।

झारखंड के रांची जिले के सिल्ली ब्लॉक के बाहमनी गाँव में नौ मई को शादी होकर आयी सुष्मिता (19 वर्ष) के पिता नहीं हैं। इनकी माँ मेहनत मजदूरी करके बच्चों का भरण-पोषण करती हैं। लॉकडाउन के समय जैसे ही सुस्मिता के लिए रिश्ता आया इनकी माँ मना नहीं कर पायीं।


सुष्मिता बताती हैं, "मेरी पूरी शादी 15,000-20,000 रुपए में हो गयी। शादी में कुछ दहेज नहीं देना पड़ा। कार्ड भी नहीं छपे, टेंट भी नहीं लगा, खाना-खर्चा भी पूरा बच गया। यहाँ से बाइक से 08-10 लोग गये थे। हमारे घरवालों को किसी से पैसे उधार नहीं लेने पड़े। कम खर्च में बड़े आराम से हमारी शादी हो गयी।"

वहीं छत्तीसगढ़ के कांकेर जिला के पलेवा गाँव की रहने वाली कमलेश्वर सिन्हा (38 वर्ष) ये बताते हुए खुश थीं, "हमारी ननद की शादी 25 जून को है। हम लोग बहुत खुश हैं कि कम खर्चे में शादी हो रही है और कोई ये कहने वाला भी नहीं कि इनके पास पैसे नहीं है इसलिए खर्चा नहीं कर रहे।"

सुष्मिता और कमलेश्वर जैसे कई परिवारों के लिए इस समय कम खर्चे में हुई शादी किसी अवसर से कम साबित नहीं हो रही है।

अपनी बहन की 13 जून को शादी सम्पन्न करा चुके मधुकर वर्मा (26 वर्ष) बताते हैं, "इस समय बहन की शादी करने से पूरे दो लाख रुपए की बचत हो गयी। बारात में 50-55 लोग आये थे। उनके खाने के अलावा कोई ताम-झाम नहीं करना पड़ा। कम लोग आये तो घर से ही शादी हो गयी गेस्ट हाउस नहीं बुक करना पड़ा। लॉकडाउन में ही 29 मई को शादी फिक्स हुई और 13 जून को हो गयी। कम खर्च होगा इसलिए इतने कम समय में ये शादी बिना कर्जा लिए हो गयी।" मधुकर यूपी के इटावा जिले के जसवंतनगर ब्लॉक के बिचपुरी खेड़ा गाँव के रहने वाले हैं।

बहन की शादी में हुई इस बचत को बिहार के पूर्णिया जिले के जिलाधिकारी राहुल कुमार एक अवसर के रूप में देखते हैं। राहुल कुमार बताते हैं, "जब हम दहेज की बात करते हैं तो इसमें महंगी शादियां होना भी एक वजह है लेकिन इस समय मजबूरी में ही सही पर महंगी शादियां नहीं हो रही हैं। देश में अभी कोरोना की जो स्थिति है इसको देखकर लग रहा है ये अभी लम्बा चलेगा। अगर ऐसे में 50 लोगों के बीच ही कम पैसों में शादियां होती रहीं तो धीरे-धीरे ये ट्रेंड सेट हो जाएगा जिससे लड़की पक्ष को काफी राहत मिलेगी।"

क्या शादी के लिए जिला प्रसाशन से कोई अनुमति लेनी पड़ती है, इस पर राहुल ने कहा, "लॉकडाउन के समय एसडीएम से अनुमति लेकर 50 लोगों के बीच शादियाँ होती थीं। अभी भी वही चल रहा है। एसडीएम द्वारा सम्बन्धित थाने में एक कॉपी भेज दी जाती है। शादियां इस दौरान पहले से तो काफी कम हुई हैं पर जो भी हुई हैं उनमें खर्चा न के बराबर हुआ है। ऐसी शादियों को सराहा जाए जिससे ये शादियाँ प्रचलन में आ सकें।"

विवेकानंद ग्रामोद्योग महाविद्यालय दिबियापुर में समाजशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ आलोक यादव बताते हैं, "जो वर्ग शादी में खर्च कर सकता था उसके लिए तो इस समय बचत है पर अभी की शादियां न होने से एक बड़ा वर्ग बेरोजगार हुआ है। शादी लोकतंत्र में विकेन्द्रीकरण का सबसे बड़ा केंद्र होती है, इससे हर व्यक्ति को लाभ होता है। शादी में काम करने वाले हर व्यक्ति को कुछ न कुछ जरूर मिलता है। जो बैंड बजाते हैं, ढोल बजाते हैं या और भी लोग जिनमें इसके अलावा दूसरी कोई स्किल नहीं है तो वो कैसे रहेंगे?"

"ये बदलाव अच्छी बात है पर एकदम से हुआ है जिसके लिए इससे जुड़े लोग तैयार ही नहीं थे। उनके लिए यह मुश्किल समय है। इस समय मेरी जानकारी में जितनी भी शादियां हुई हैं सभी संपंन्न परिवारों ने ही की हैं, गरीब लोग अभी शादी से बच रहे हैं। अगर किसी ने 10 लाख रुपए में बैंड का कारोबार किया उसके लिए उबरना मुश्किल है," आलोक यादव कहते हैं।

    

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