दादा, पापा, बेटा संग पढ़ने जाते स्कूल

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दादा, पापा, बेटा संग पढ़ने जाते स्कूल

हरियाणा के एक गाँव में चल रही है किसानों की पाठशाला, पहली बार हुआ किसान छात्रों का दीक्षांत समारोह

रिपोर्टर - अमित शुक्ला

गोरगढ़ (हरियाणा)। एक ऐसा गाँव जहां पोते के सामने उसके दादा पाठशाला जाते हैं। बेटे के साथ पापा भी स्कूल के लिए रवाना होते हैं।इस गाँव में किसानों की पाठशाला लगती है। जिसमें पढ़ने वालों की उम्र की कोई सीमा नहीं है।

लखनऊ से करीब 625 किलोमीटर दूर हरियाणा राज्य के करनाल में एक छोटा सा गाँव है। गाँव का नाम है गोरगढ़। इस गाँव में शुक्रवार और शनिवार को तीन-तीन घंटे की पाठशाला लगती है। पाठशाला का नाम है 'फार्मर फार्म स्कूल'। जहां हर उम्र के छात्र दिखते हैं। भइया की उम्र के भी, पापा की उम्र के भी और दादा जी की उम्र के भी छात्र यहां ज्ञान लेने आते हैं।

गोरगढ़ गाँव में ये पाठशाला राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान की ओर से चलाई जा रही है। जहां करीब 20 से 25 किसानों को पशुपालन और खेती-बाड़ी की जानकारी दी जाती है।

स्कूल इंचार्ज डॉक्टर बीएस मीणा बताते हैं, ''गोरगढ़ गाँव में ये स्कूल 30 अगस्त 2014 को शुरू हुआ था जिसका पहला बैच 20 जुलाई 2015 को खत्म हो चुका है। अब दूसरे बैच की पढ़ाई चल रही है।"

डॉ मीणा बताते हैं, ''केंद्र सरकार की योजना है कि इस तरह के स्कूल खोलकर गाँव मे किसानों के बीच जाकर उन्हें पशुपालन और खेतीबाड़ी की जानकारी दी जाए। ताकि खेती में उनका हुनर निखरे और वो ज्यादा पैसा कमा सकें।"

इस स्कूल में किसान छात्रों को पशुओं से जुड़ी बीमारियों, उनके इलाज के बारे में बताया जाता है। साथ ही किसानों को फसलों में लगने वाले कीड़े, बीज लगाने की तकनीक बताने के लिए भी इस पाठशाला में एक्सपर्ट आते हैं।

पाठशाला में पढऩे वाले किसान राम सिंह से बताते हैं, ''यहां किसानों को किताबी ज्ञान से ज्यादा प्रयोग पर जोर दिया जाता है। यानी किसान अपने खेत या फार्म हाउस में लगी फसल की दिक्कत को पहले जानने की कोशिश करते हैं फिर एक्सपर्ट उसका समाधान बताते हैं। कुल मिलाकर 'फार्मर फार्म स्कूल' का मकसद किसानों को वैज्ञानिक तरीके से खेती की जानकारी देना है। जिससे किसान ज्यादा कमा सकें और खेतीबाड़ी में नुकसान की गुंजाइश कम से कम हो।"

राम सिंह स्कूल की तारीफ करते हुए कहते हैं उन्हें इस पाठशाला से खूब फायदा हुआ है।

'फार्मर फार्म स्कूल' में पढऩे वाले 20 छात्रों का बैच निकल चुका है। इन छात्रों के लिए राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान की ओर से बाकायदा दीक्षांत समारोह का आयोजन भी किया गया। एनडीआरआई के निदेशक डॉक्टर एके श्रीवास्तव ने पहले बैच के किसानों को बाकायदा प्रमाणपत्र जारी किए।

डॉक्टर श्रीवास्तव बताते हैं, ''इस स्कूल के जरिए हम चाहते हैं कि ना सिर्फ किसानों को कृषि और पशुपालन से जुड़ी तमाम जानकारियां मिलें बल्कि वैज्ञानिकों और किसानों के बीच सीधा संवाद भी स्थापित हो। वैज्ञानिकों की शोध को 'लैब टू लैंड' तक ले जाया जाए।"

स्कूल की सफलता पर डॉ श्रीवास्तव बताते हैं, ''जल्द ही इसी गाँव में एक और स्कूल खोला जाएगा। बाद में ये स्कूल दूसरी जगहों पर भी खोले जाएंगे।"

स्कूल में दाखिले के लिए सिर्फ दस रुपए का रजिस्ट्रेशन कराना होता है।

 

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