दाल की बढ़ती कीमतों ने अरहर की तरफ बढ़ाया किसानों का रुझान

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प्रतापगढ़। अरहर देश की प्रमुख दलहनी फसलों में आती है, पिछले कुछ साल में नीलगाय के नुकसान की वजह से कई किसानों ने इसकी खेती कम कर दी थी। लेकिन दाल की बढ़ती कीमतों ने किसानों का रुझान अरहर की तरफ बढ़ा दिया है।

प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 21 किमी दूर दक्षिण दिशा में शिवगढ़ ब्लॉक के भिखनापुर गाँव के किसान विजय सिंह (58 वर्ष) पांच बीघा खेत में अरहर की खेती करते हैं, इस बार भी खेती की तैयारी कर रहे हैं। विजय सिंह बताते हैं, “नीलगाय की वजह से अरहर की खेती कम कर दी थी, लेकिन इस बार बाड़ लगा कर अरहर बोने जा रहा हूं। अरहर दाल बहुत महंगी रही है, कुछ नहीं होगा तो घर के प्रयोग में आ जाएगी।”

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. पुरुषोत्तम अरहर की फसल के बारे में बताते हैं, “जिस तरह से दलहन की कीमत बढ़ रही है, किसानों को दलहन की खेती करनी चाहिए। अगर किसान के पास कम भूमि है, तो खेत की मेड़ पर भी अरहर लगा सकता है।

वो आगे बताते हैं, “अरहर की अल्पकालीन और दीर्घ कालीन कई प्रजातियां हैं, जिन्हें किसान बो सकते हैं। ये समय अरहर की बुवाई के लिए उपयुक्त समय है। असिंचित क्षेत्रों के लिए अरहर सही होती है, बुंदेलखंड के लिए भी अरहर की फसल सही होती है। इसमें सिंचाई की भी जरूरत नहीं होती है।”

अरहर की खेती के लिए अच्छी उर्वरायुक्त दोमट मिट्टी होनी चाहिए, जिसमें जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। अरहर की खेती के लिए दो प्रकार की उन्नतशील प्रजातियां उगाई जाती है, पहली अगेती किस्में होती हैं, जिसमें उन्नत प्रजातियां हैं, यूपीपीएस-120, पूसा-992, मानक, एएल-201 और आईसीपीएल-87 अरहर की अगेती किस्में हैं। दूसरी पछेती या देर से पकने वाली किस्में हैं, जिनमें मालवीय अरहर-13, नरेन्द्र अरहर-एक, पूसा-9, अमर और आईपीए-203 किस्में हैं।

खेत की तैयारी: खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए, उसके बाद दो तीन जुताई कल्टीवेटर से करना चाहिए। इसके बाद आखिरी जुताई के बाद 200-300 कुंतल गोबर की खाद मिलाकर पाटा लगाना अति आवश्यक होता हैI

बीजशोधन : अरहर में बुवाई से पहले बीज को दो ग्राम थीरम या एक ग्राम कार्बेन्डाजीम से एक किलो ग्राम बीज को शोधित कर लेना चाहिए। इसके बाद बुवाई से पहले राईजोबियम कल्चर के एक पैकेट को 10 किलो बीज को शोधित करके बुवाई कर देनी चाहिए, जिस खेत में पहली बार अरहर की बुवाई की जा रही हो वहां पर कल्चर का प्रयोग बहुत आवश्यक है।

अरहर की फसल में सिंचाई :

अरहर की अगेती खेती करने पर अक्टूबर के महीने में पछेती खेती करने पर दिसम्बर व जनवरी के महीने में आवश्यकता अनुसार जरूरत पड़ने पर सिंचाई करना चाहिएI

अरहर की फसल को रोग से बचाव:

इसमें मुख्य तरह से उकठा रोग लगता है, इस रोग के उपचार के लिए बीज को तीन ग्राम थीरम और एक ग्राम कार्बेन्डाजीम एक किलोग्राम बीज को बुवाई से पहले शोधित करके बुवाई करनी चाहिए, इससे उकठा औऱ बंजा रोग से छुटकारा मिल सकता हैI

अरहर की फसल को कीट से सुरक्षा

अरहर में मुख्यता फली वेधक, पत्ती लपेटक और अरहर की फली मक्खी, इस फसल को प्रभावित करती है, इसके उपचार के लिए मोनोक्रोटोफास 36 प्रतिशत 1000 लीटर पानी में घोल ले, इस घोल को एक हेक्टेयर में छिड़काव करें, तो इस रोग से छुटकारा मिल सकता है।

उपज प्रति हेक्टर 

अरहर की जल्दी पकने वाली प्रजातियों की उपज 18 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर ले सकते हैं, इसी तरीके से जो देर से पकने वाली प्रजातियां है, उस फसल से 25 से 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर सकते हैं। 

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