डॉक्टरों की मनमानी से मरीज़ परेशान

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डॉक्टरों की मनमानी से मरीज़ परेशानgaoconnection

कन्नौज। अरबों की लागत से बना मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सपनों का प्रोजेक्ट राजकीय मेडिकल कालेज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। करोड़ों रुपये के उपकरण हैं हर महीने लाखों रुपये डॉक्टरों, फार्मासिस्ट और स्टाफ नर्सों समेत अन्य कर्मियों को वेतन भी दिया जाता है। दवाओं, बिजली और अन्य मदों में भी खूब खर्च होता है। इसके बाद भी मरीजों के लिए यह सफेद हाथी ही साबित हो रहा है।

मेडिकल कालेज से मरीजों के रेफर होने का सिलसिला थम नहीं रहा है। मरीज अगर रेफर नहीं होते हैं तो इलाज के अभाव में वह खुद ही छुट्टी करा लेते हैं। कोई भी जिम्मेदार, जनप्रतिनिधि या अधिकारी इसकी सुधि लेने वाला नहीं है। हालत बद से बदतर होती चली जा रही है। सहियापुर गाँव के अनोखेलाल का कहना है, “इतनी महंगी बनी बिल्डिंग बेमतलब है।इसे क्या देखा जाएगा जब इलाज ही नहीं मिलता।” किसान सिपाहीलाल का कहना है, “किसानों की जमीनें भी चली गई पर मरीजों को कोई खास लाभ नहीं मिला। उनको तो इलाज के लिए कानपुर या राजधानी ही जाना पड़ता है।” दूसरी ओर कई डाक्टरों के ड्यूटी से नदारद रहने और समय से न आने की बात तो किसी से छिपी ही नहीं है। 

केस नंबर एक

तहसील तिर्वा से 22 किमी. दूर बसे गाँव नादेमऊ निवासी राजकुमार की बाइक कहीं जाते हुए फिसल गई। इससे उनका पैर टूट गया। किसी तरह से परिजनों और आसपास के लोगों ने उनको राजकीय मेडिकल कालेज भेजा। इमरजेंसी वार्ड में डाक्टरों ने देखने के बाद राजकुमार के पैर का एक्स-रे कराया। इसके बाद इलाज देने के बजाय कानपुर ले जाने की सलाह दे दी। घायल के साथ आया श्याम सिंह परेशान हो गया। उसने एक दिवसीय दौरे पर आए प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं शिक्षा डॉ. अनूप चंद्र पांडेय की मौजूदगी में मौखिक शिकायत की। यह देखकर जहमत से बचने के लिए एक मेडिकल कालेज कर्मी ने श्याम सिंह का हाथ पकड़ा और इलाज की बात कहते हुए आगे ले चलने लगा। डीएम अनुज कुमार झा ने देखा तो उसे बुलाया। बात सुनी और भर्ती कराने के निर्देश दिए। इसके बाद राजकुमार को भर्ती किया गया। 

केस नंबर दो

तहसील छिबरामऊ क्षेत्र के रामखेड़ा निवासी 15 वर्षीय किशोर पेट दर्द से परेशान हुआ। परिजनों ने उसे तिर्वा के राजकीय मेडिकल कालेज के एक वार्ड में भर्ती कराया। अगले दिन परिजनों ने उसे डिस्चार्ज कराया और लेकर दूसरे निजी अस्पताल के लिए चल दिए। प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं शिक्षा डॉ. अनूप चंद्र पांडेय जब निरीक्षण करते हुए उधर से गुजरे तो वहां मौजूद पत्रकारों ने किशोर के  परिजनों से पूछा, बच्चा परेशान दिख रहा है कहां जा रहे हो। पूछने के बाद जो जवाब मिला उसे मेडिकल कालेज की हकीकत से पर्दा उठ गया। परिजनों ने बताया कि यहां देखने वाला कोई नहीं है। वार्ड में डाक्टर उनके बच्चे को देखने नहीं आया। दर्द में राहत नहीं मिली, इसकी वजह से मरीज को निजी अस्पताल लिए जा रहे हैं। मामला प्रमुख सचिव को रोककर बताया गया। पोल खुलने के डर से महानिदेशक चिकित्सा एवं शिक्षा डॉ. वीएन त्रिपाठी ने प्रमुख सचिव से कह दिया कि मरीज को घर लिए जा रहे हैं। उन्होंने यह मुनासिब नहीं समझा कि पता करें कि संबंधित वार्ड में किस डाॅक्टर की ड्यूटी थी और क्यों नहीं मरीज को देखा। 

बाहर की लिखी जाती हैं दवाइयां

मेडिकल कालेज में तैनात अधिकतर डॉक्टर बाहर की दवाइयां लिखते हैं। कुछ ऐसे भी डॉक्टर हैं तो इस तरह की दवाइयां लिखते हैं जो उनसे संबंधित मेडिकल स्टोर पर ही मिलें। यह दवाइयां इतनी महंगी होती हैं कि मरीज इलाज कराने के दौरान एक नए दर्द से कराह उठता है। ऐसा नहीं है कि यह किसी तो पता नहीं हैं। किसी डॉक्टर पर असरदार नेता का हाथ है तो किसी के सिर पर चिकित्सा एवं शिक्षा विभाग से जुड़े अधिकारी का।

जब डीएम का चढ़ा पारा

अव्यवस्थाओं के मिलने और मरीजों के दर्द की आंखों देखी होने के बाद डीएम अनुज कुमार झा ने प्रभारी प्राचार्य डॉ. डीएस मारतोलिया और सीएमएस डॉ. दिलीप सिंह से गहरी नाराजगी जताई। कहा कि अगर शासन से जांच हुई और जवाब मांगा गया तो जवाब देते नहीं बनेगा। उन्होंने सुधार लाने की बात कही। 

 

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