डेंगू के टीके लाने में भारत में चल रहा संघर्ष

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डेंगू के टीके लाने में भारत में चल रहा संघर्षडेंगू के टीके लाने में भारत में चल रहा संघर्ष

लेखक- पल्लव बाग्ला

नई दिल्ली (भाषा)। मरीज को तोड़कर रख देने वाला डेंगू एक ऐसा रोग है जो अपनी चपेट में आने वाले लोगों की जान भी ले लेता है और इसका कोई भी इलाज नहीं है।

इस भयावह बीमारी के खिलाफ दो टीके- एक विदेशी और एक भारतीय-नियामक मंजूरियों का इंतजार कर रहे हैं। वहीं एक बड़ी दवा कंपनी बड़े स्तर के चिकित्सीय परीक्षण की मांग कर रही है ताकि आपात स्थिति को देखते हुए इस बीमारी के टीके को जल्द से जल्द लेकर आया जा सके।

लाखों लोगों के पीड़ित होने के बावजूद भारत में खोजा गया डेंगू का संभावित टीका दिल्ली की प्रयोगशाला की अलमारियों में धूल फांक रहा है। तो क्या ऐसे में भारत को सख्त रुख अख्तियार नहीं कर लेना चाहिए? डेंगू की समस्या की व्यापकता को लेकर अक्सर अधिकारी शुतुरमुर्ग सरीखा बर्ताव करते हैं। वर्ष 2014 में सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान द्वारा कराए गए एक महत्वपूर्ण अध्ययन में पाया गया कि भारत में वर्ष 2006-12 के बीच वार्षिक तौर पर डेंगू के औसतन 57,78,406 मामले रहे होंगे जो प्रति वर्ष दर्ज होने वाले मामलों से 282 गुना है।''

अध्ययन में कहा गया कि भारत में वार्षिक तौर पर चिकित्सीय आधार पर सामने आने वाले डेंगू के मामलों का महज 0.35 प्रतिशत हिस्सा ही राष्ट्रीय मच्छर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम के तहत आता है। वर्ष 2013 में, सात देशों के 18 शोधकर्ताओं के एक दल द्वारा किया गया एक आकलन ब्रितानी जर्नल ‘नेचर' में छपा था। इसमें कहा गया था कि दुनिया भर में होने वाले डेंगू संक्रमण में 2.2-4.4 करोड़ मामले अकेले भारत के होते हैं। इसका यह अर्थ हुआ कि मंत्रालय का आकलन भी 1000 गुना कम हो सकता है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की महानिदेशक डॉ सौम्या स्वामीनाथन ने कहा, ‘‘सरकारी आंकड़े तो एक अंश मात्र हैं।'' उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति डेंगू के असली बोझ के बारे में नहीं जानता। सच्चाई 282 गुना ज्यादा और 1000 गुना ज्यादा आकलन के बीच में कहीं है। इस वजह से देश को डेंगू के खिलाफ काम करने वाले टीके की भारी जरुरत है।

    

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