एकल तस्करी विरोधी कानून भारतीय संदर्भ में मुमकिन नहीं: कार्यकर्ता
गाँव कनेक्शन 9 Oct 2016 11:16 AM GMT
नई दिल्ली (भाषा)। मानव तस्करी विधेयक के प्रारुप को जब इस साल शुरु में जारी किया गया था तब भले ही इसे ‘समग्र' कानून बताया गया हो लेकिन इस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों का कहना है कि भारतीय संदर्भ में इस अपराध के लिए एक एकल कानून संभव नहीं है। कैबिनेट को भेजने से पहले प्रारुप विधेयक को अंतिम रुप दिया जा रहा है।
सरकार प्रस्तावित विधेयक पर गैरसरकारी संगठनों से चर्चा कर रही है। इस विधेयक का मकसद मानव तस्करी के विभिन्न पहलुओं का समाधान करना है। तत्कालीन महिला एवं बाल विकास सचिव वी सोमसुदंरन ने 30 मई को प्रारुप विधेयक को जारी करते हुए कहा था, ‘‘तस्करी तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है और अब वक्त आ गया है कि किसी समग्र कानून के माध्यक से इससे निपटा जाए।'' बहरहाल, मानव तस्करी को नियंत्रण करने के लिए प्रस्तावित कानून ‘एकल समग्र' कानून नहीं है जैसा पहले इसे करार दिया गया था।
कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह किशोर न्याय अधिनियम, बाल श्रम अधिनियम, बंधुआ मजदूरी उन्मूलन अधिनियम, बाल विवाह निषेध अधिनियम, आईटी अधिनियम और मानव अंगों प्रतिरोपण अधिनियम सहित कम से कम 12 अन्य कानूनों के साथ लागू होगा। कार्यकर्ताओं ने कहा कि दरअसल बाद के प्रारुपों में ऐसा समग्र कानून बनाने के त्रुटिपूर्ण रुख में सुधार किया गया है, जो अपनी सीमा में विभिन्न तरह की तस्करी से निपटता है।
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