अब किसी भी व्यक्ति पर चलाया जा सकता है घरेलू हिंसा कानून के तहत मुकदमा: Supreme Court
गाँव कनेक्शन 9 Oct 2016 1:06 PM GMT

नई दिल्ली (भाषा)। उच्चतम न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में वयस्क पुरुष शब्द को हटाकर घरेलू हिंसा कानून का दायरा भढ़ा दिया है, जिससे किसी महिला के साथ हिंसा या उत्पीड़न के मामले में महिलाओं और गैर वयस्कों पर भी अभियोजन चलाने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।
शीर्ष अदालत ने घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा के कानून 2005 की धारा 2 (क्यू) से दो शब्दों को हटाने का आदेश दिया जो उन प्रतिवादियों से संबंधित है जिन पर ससुराल में किसी महिला को प्रताड़ित करने के लिए अभियोग चलाया जा सकता है। पूर्व के फैसलों का संदर्भ देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘2005 के कानून के उद्देश्य के संबंध में पुरुष और स्त्री, वयस्क और अवयस्क के बीच सूक्ष्म अंतर न तो वास्तविक है और न ही ठोस है, न ही इसका कानून के उद्देश्य से कोई तार्किक संबंध है।'' कानून की धारा 2 (क्यू) कहती है: ‘‘प्रतिवादी'' का मतलब ऐसा कोई भी वयस्क पुरुष है जो पीड़ित व्यक्ति के घरेलू संबंध में रहा है और जिसके खिलाफ पीड़ित व्यक्ति ने घरेलू हिंसा के तहत राहत मांगी है।
न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन ने किसी लिंग या आयु का अंतर किए बिना ‘‘वयस्क पुरुष'' शब्द को हटाने का आदेश दिया और कहा कि यह संविधान के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है। पीठ ने कहा कि ‘‘वयस्क पुरुष व्यक्ति'' शब्द उन महिलाओं को संरक्षण देने के विपरीत है जो ‘‘किसी तरह'' की घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं।
More Stories