रीयल एस्टेट में मंदी, खरीदारों के अच्छे दिन

Rishi MishraRishi Mishra   12 Jan 2017 10:26 PM GMT

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रीयल एस्टेट में मंदी, खरीदारों के अच्छे दिनफ्लैट और जमीन की कीमत में करीब 25 फीसदी की गिरावट आई है।

लखनऊ। नोटबंदी के बाद रीयल एस्टेट बाजार में मंदी से खरीदने वालों के लिए सबसे अच्छा वक्त आ गया है। खासतौर पर जो लोग अधिकृत संस्थाओं से फ्लैट या जमीन खरीदने के इच्छुक हैं, उनको अब कम दामों पर संपत्ति मिल रही है। फ्लैट और जमीन की कीमत में करीब 25 फीसदी की गिरावट आ गई है। किसानों की जमीन औने-पौने में खरीद कर बेचने वाली दुकानें बंद हो चुकी हैं।

हरदोई निवासी प्रापर्टी (संपत्ति) कारोबारी मनीष सिंह बताते हैं, “हमारे यहां रीसेल (प्रापर्टी को दोबारा बेचना) के दाम सबसे अधिक गिरे हैं। ब्लैक और व्हाइट का खेल अब बंद हो गया है। बाजार में जब 1000 और 500 रुपये के रूप में कैश था, तब जितना डीएम सर्किल रेट होता था, उतना रुपये तो बेचने वाला नंबर वन में लेता था मगर बाकी उसका असली फायदा नंबर दो में होता था। नंबर दो वाले रुपये का जिक्र ही रजिस्ट्री में नहीं होता था। ऐसे में उसका कोई टैक्स भी नहीं देना पड़ता था।”

उन्होंने बताया कि ऐसे में संपत्ति अपने कागजी दाम के मुकाबले दोगुनी तक महंगी होती थी। मगर अब बाजार में नंबर दो में देने के लिए कैश है ही नहीं। इसलिए जरूरतमंद लोग सामान्य सर्किल रेट पर ही संपत्ति बेच रहे हैं। इससे कम से कम 25 फीसदी का फायदा खरीदने वाले को हो रहा है।

रीयल एस्टेट में असंगठित क्षेत्र कालेधन से भरा हुआ है। 60 फीसदी तक का कारोबार कालेधन से किया जा रहा है। लखनऊ सहित उत्तर प्रदेश में दो तरह का रीयल इस्टेट बाजार चल रहा है। इसमें एक ओर तो लगभग दो दर्जन निजी कंपनियां हैं जबकि सरकारी स्तर पर एलडीए, लीडा और आवास विकास परिषद आवासीय क्षेत्र में काम कर रहे हैं। हालांकि सैकड़ों की संख्या में कंपनियां अवैध धंधे चला रही हैं।

रीयल एस्टेट सेक्टर में काम कर रही ये कंपनियां खेतों में प्लाटिंग करती हैं। अवैध अपार्टमेंट का निर्माण करती हैं जिनमें सारे कायदे ताक पर होते हैं। सर्किल रेट पर धंधा कागज पर होता है जबकि कालाधन नकद में लिया जाता है। आमतौर से 50 से 60 फीसदी का धंधा कालेधन का होता है। रीयल इस्टेट बाजार में एक तीसरा तरीका प्रापर्टी डीलर के जरिये अपना व्यक्तिगत माल बेचने का भी है। इसमें भी अच्छा खासा काला धन जुड़ा होता है।

एलडीए की जनसंपर्क अधिकारी भावना सिंह बताती हैं, “प्राधिकरण की ओर से समय-समय पर निर्देश दिए जाते हैं कि अवैध निर्माण और प्लाटिंग में लोग निवेश न करें मगर लोग नहीं मानते हैं। सस्ते के लालच में और कालाधन खपाने वहां जाते हैं। इस वजह से इस सेक्टर में निवेशकों का करीब 1000 करोड़ रुपये का नुकसान केवल लखनऊ में हो रहा है।”

बड़ी कंपनियों के भी हुए दाम कम, मगर असर भी हुआ कम

प्रदेश में काम कर रही बड़ीं कंपनियां अंसल हाउसिंग, एपीआई अंसल, ओमैक्स, एटूजेड, ईमाआर एमजीएफ, एल्डिको इन कंपनियों का अधिकांश यूनिट्स बैंक लोन पर ही आधारित है। जो कि इलेक्ट्रानिक माध्यम से खरीदे बेचे जाते हैं। इस वजह से इनके धंधे पर फिलहाल 10 से 20 फीसदी का कुछ असर जरूर पड़ा है मगर भविष्य में ये असर और भी कम होगा। रीयल इस्टेट विशेषज्ञ अंकित गर्ग बताते हैं कि संगठित क्षेत्र को बस तात्कालिक नुकसान हो रहा है। उनके पास में फिलहाल कुछ समय तक ग्राहकों का टोटा हो सकता है। मगर संगठित क्षेत्र में धंधा चौपट नहीं हो सकता है। दरअसल उनके पास में 90 फीसदी ग्राहक लोन वाले हैं। इसके अलावा ब्लैक मनी का जुड़ाव भी यहां बहुत कम है। मगर जो असंठित क्षेत्र है, उसमें सबसे अधिक दिक्कतें होंगी।

खेतों के कॉलोनी बनने पर लगी रोक

धारा 143 के नाम पर खेतों को पिछले करीब 15 साल कॉलोनी बना रहे थे। जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की धारा 143 के जरिये राजधानी के खेतों को कॉलोनियों में तब्दील कर दिया गया था। लैंडयूज बदल कर जिस तरह के खेल खेलने का आरोप राबर्ट वाडरा के लिए हरियाणा में लगा कुछ ऐसा ही यहां भी जम कर हुआ है। अकेले राजधानी में 400 हाउसिंग सोसाइटी का निर्माण खेती की भूमि पर किया गया है। सभी राजमार्गों पर नजर घुमाई जाए तो इसी तरह की गड़बड नजर आती है। खेती की जमीन का भू उपयोग बदलने का खेल तहसील स्तर पर किया जाता है। जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की धारा 143 के जरिये भूमि के टुकड़े को नियमों को अपने हिसाब से तोड़मरोड़ कर प्लाटिंग की गई है। लखनऊ विकास प्राधिकरण कर्मचारी संघ के अध्यक्ष शिवप्रताप सिंह बताते हैं कि अफसरों और अभियंताओं ने मिल कर ये खेल खेले हैं। एलडीए की वेबसाइट पर ऐसे करीब 400 अवैध सोसाइटी की सूची दर्ज है, ये सोसाइटी इसी तरीके से विकसित की गई हैं। कानपुर रोड, सीतापुर रोड, रायबरेली, सुल्तानपुर रोड पर इस तरह की प्लाटिंग के अनेक नजारे हैं। जिनमें न केवल भूमाफिया बल्कि सफेदपोश नेताओं का रुपया लगा है। हजारों एकड़ खेतिहर भूमि इस वजह से प्लाटिंग में बदल चुकी है। मगर अब ऐसा नहीं किया जा रहा है। बख्शी का तालाब के मख्दूमपुर गांव में प्रधान देवेश यादव बताते हैं कि अब किसान जमीन नहीं बेचेगा। दरअसल नोटबंदी के बाद उसका जो फायदा कैश लेकर हो रहा था, वह अब उसको कोई नहीं दे पा रहा है। ऐसे में किसान आजाद हो चुका है। खेती की भूमि का इस्तेमाल अब वह खेती के लिए ही कर रहा है।

  

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