आने वाले समय में दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन के न सिर्फ घातक परिणाम सामने आएंगे, बल्कि जल्द ही लोगों की मौत का सबब बनता नजर आएगा। साल दर साल मौसम के बदल रहे अंदाज के बीच जलवायु परिवर्तन दुनियाभर के लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरने वाला है। जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे बदलावों ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
…नहीं तो परिणाम घातक होंगे
हाल में हमने नई दिल्ली में जलवायु परिवर्तन का एक छोटा सा प्रभाव देखा, जब पूरी राजधानी वायु प्रदूषण के पूरी तरह चपेट में रही। इससे पहले भी दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहे मौसम में बदलावों से निपटने के लिए कई देश एक मंच पर आकर खड़े हुए, मगर जल्द ही जलवायु परिवर्तन पर निपटने के इंतजाम नहीं हुए तो परिणाम घातक होंगे। ऐसे में जरूरी है कि जानें कि यह जलवायु परिवर्तन है क्या और कैसे आम लोगों को प्रभावित कर सकता है?
आखिर क्या है जलवायु परिवर्तन?
दुनियाभर के देशों की जलवायु का जो औसत तापमान होता है, वे अब धीरे-धीरे बदल रहा है। यानि मौसम में बदलाव सामने आ रहे हैं। ठंड का मौसम अगर छोटा होता जा रहा है तो गर्मी का मौसम उतना ही अधिक लंबा होता जा रहा है। इतना ही बारिश में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है। वास्तव में यही जलवायु परिवर्तन है और पूरी दुनिया में देखने को मिल रहा है। बीते कुछ सालों से जलवायु परिवर्तन में भारी बदलाव सामने देखने को मिल रहे हैं। कई वैज्ञानिक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण मान रहे हैं। वहीं जलवायु परिवर्तन के कारण ठंड और गर्मी के मौसम में लोगों की मौतों की संख्या में इजाफा हुआ है।
बीमारियों में बढ़ोत्तरी, फसलों पर खासा असर
हाल में ब्रिटेन की साइंस पत्रिका लैंसेट ने जलवायु परिवर्तन पर अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की। जलवायु परिवर्तन की इस रिपोर्ट को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), विश्व बैंक और कई विश्वविद्यालयों ने मिलकर तैयार किया। इस रिपोर्ट में सामने आया है कि साल 2000 के बाद जलवायु परिवर्तन का लोगों के स्वास्थ्य पर खासा बुरा असर पड़ता सामने आया है। न सिर्फ बीमारियों में बढ़ोत्तरी हुई है, बल्कि फसलों पर भी इसका खासा असर देखने को मिला है। रिपोर्ट के जरिए यह अनुमान लगाया गया है कि साल 2030 से लेकर 2050 के दौरान जलवायु परिवर्तन से लोगों की मौत का आंकड़ा हर वर्ष 2.5 लाख और बढ़ जाएगा।
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सबसे ज्यादा असर कुपोषण पर
आज जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर कुपोषण को देखने को मिल रहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीका और एशिया के तकरीबन 30 देशों में कुपोषण के मामले तेजी से बढ़े हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो पाएंगे कि साल 1990 में कुपोषण से जुड़े मामलों की संख्या 39.8 प्रतिशत रही तो यह आंकड़ा 2016 42 प्रतिशत को पार कर गया। अगर इस 2017 में ही आई स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रीशन इन द वर्ल्ड की रिपोर्ट पर गौर करें तो 2015 में जहां कुपोषण से जुड़े मामलों की संख्या करीब 78 करोड़ थी, यह संख्या 2016 में बढ़कर करीब 81 करोड़ तक पहुंच गई। लैंसेट की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वर्ष 2000 के बाद से कृषि मजदूरों की उत्पादकता में पांच प्रतिशत से ज्यादा कमी आई है। दूसरी ओर आलम यह है कि बढ़ रहे तापमान और कम-ज्यादा बारिश की वजह से अनाज का उत्पादन घट रहा है। ऐसी स्थिति में कुपोषण का दायरा बढ़ रहा है और हर वर्ष सिर्फ कुपोषण से 31 लाख मौत हो रही है। रिपोर्ट में चौंकाने वाला आंकड़ा यह है कि बच्चों की कुल मौतों में से 45 फीसदी मौतों में वजह कुपोषण है।
जलवायु परिवर्तन से कैसी-कैसी घेरेंगी बीमारियां
मलेरिया
जलवायु परिवर्तन से तापमान बढ़ने पर दुनियाभर में मच्छरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। ऐसे में मच्छरों से फैलने वाले मलेरिया और डेंगू जैसे रोग का खतरा बढ़ रहा है। इतना ही नहीं, मौसम के बदलाव होने पर यानि बारिश होने के पर मच्छरों में प्रजनन में बढ़ोत्तरी होती है। ऐसे में मच्छरों से जनित होने वाली बीमारियां बड़ी संख्या में लोगों का काल बन सकती है। रिपोर्ट पर गौर करें तो हैरान करने वाले आंकड़े सामने आते हैं, हालिया समय में करीब 3.2 अरब लोग, यानि लगभग दुनिया की आधी आबादी मलेरिया के खतरे का शिकार है, दूसरी ओर की तस्वीर यह है कि सिर्फ वर्ष 2015 में 21.4 करोड़ मलेरिया के नए मामले दुनियाभर में सामने आए हैं। वहीं, जलवायु परिवर्तन की वजह से दुनिया भर में हर वर्ष डेंगू से 10 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं।
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सांस की बीमारियां
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि तापमान के बढ़ने पर न सिर्फ गर्म हवाएं बढ़ने से लोगों को सांस की बीमारियां दे रही हैं, बल्कि हवा में प्रदूषण के तत्वों का स्तर बढ़ जाने पर लोगों को अस्थमा जैसी सांस की गंभीर बीमारियों के बढ़ने का खतरा बढ़ जाएगा। रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में लगभग 30 करोड़ लोग सांस की बीमारियों से ग्रसित हैं और प्रदूषण स्तर बढ़ने पर करीब 80 लाख लोगों की मौत हो जाती है।
दिल की बीमारियां
उच्च तापमान और प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर दुनियाभर के लोगों में दिल की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। हवा में मौजूद प्रदूषण तत्व इंसान की जिंदगी पर खासा प्रभाव डाल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें दिल की बीमारियों से होती हैं और जलवायु परिवर्तन से ज्यादा सर्दी और अधिक गर्मी पड़ने पर इसका सीधा असर इंसान के दिल पर पड़ेगा। आंकड़ों पर गौर करें तो स्ट्रोक, दिल, कैंसर और सांस की बीमारियों से दुनियाभर में होने वाली कुल मौतों की हिस्सेदारी दो तिहाई है।
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डायरिया
लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, तापमान में बढ़ोतरी होने और बारिश में कमी होने से डायरिया और ज्यादा फैलेगा। ऐसी स्थिति में दुनियाभर में डायरिया से होने वाली मौत के आंकड़ों में करीब 48 हजार की बढ़ोत्तरी जलवायु परिवर्तन की वजह से देखने को मिलेगी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 5 साल से कम उम्र के बच्चों में इसका सबसे ज्यादा प्रभाव देखने को मिलेगा।
मानसिक बीमारियां
दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन का असर लोगों में मानसिक बीमारियां बढ़ा सकता है। उच्च तापमान और बदलते मौसम की वजह से लोगों में चिंता, अवसाद, तनाव समेत मादक पदार्थों का सेवन बढ़ने पर मानसिक बीमारी का शिकार हो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया में अवसाद की बीमारी से ग्रसित लोगों में इस बीमारी का चौथा स्थान है, जो 2020 तक दूसरे स्थान पर होने की संभावना है।
क्रॉनिक किडनी बीमारी
अधिक गर्मी के बढ़ने से बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ता है और लोग डिहाईड्रेशन का शिकार हो रहे हैं। अगर सिर्फ भारत की बात करें तो महाराष्ट्र, गोवा, तमिलनाडु, ओडिशा और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य के लोग इस बीमारी का खासा शिकार हैं, क्योंकि इन राज्यों में उच्च तापमान रहता है। आंकड़ों की बात करें तो हर साल सिर्फ भारत में ही 2.2 से 2.75 लाख मरीजों को गुर्दा रिप्लेसमेंट की जरुरत पड़ती है।