सरकार ने किया पलटवार, शिवपाल सहित पांच मंत्री बर्खास्त

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सरकार ने किया पलटवार, शिवपाल सहित पांच मंत्री बर्खास्तमुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपनाए बगावती सुर। 

लखनऊ (भाषा/आईएएनएस)। उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) में चल रहे सियासी घमासान के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने रविवार को अपने चाचा व वरिष्ठ मंत्री शिवपाल यादव को सरकार से बाहर कर दिया। अखिलेश ने चार अन्य मंत्रियों नारद राय, ओम प्रकाश, शादाब फातिमा, गायत्री प्रसाद प्रजापति को भी मंत्रिमंडल से हटा दिया है। इन सभी को शिवपाल यादव का करीबी माना जाता है, जो सपा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं।

ऐसे समय पर उठाया क़दम

इस ताजा घटनाक्रम को सपा के दो धड़ों में जारी टकराव को समाप्त करने के प्रयासों के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। अखिलेश ने रविवार को ही पार्टी के विधायकों की बैठक अपने आधिकारिक आवास पर बुलाई थी। सूत्रों के अनुसार, इसमें शिवपाल व उनके समर्थक विधायकों को नहीं बुलाया गया है। मुख्यमंत्री ने शिवपाल और अपने बीच जारी जंग को नया रूप देते हुए यह कदम ऐसे वक्त उठाया है जब सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव सोमवार को सपा विधायकों, मंत्रियों और विधान परिषद सदस्यों के साथ महत्वपूर्ण बैठक करने जा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक अखिलेश ने बैठक में कहा कि कुछ बाहरी लोग उनके तथा उनके पिता सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के बीच दूरियां बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

बार-बार उठा ज्वार-भाटा

सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री ने सपा के राज्यसभा सदस्य अमर सिंह का नाम लेते हुए कहा कि जो भी मंत्री या नेता उनका साथ दे रहे हैं, उन्हें बर्खास्त कर दिया जाएगा। पिछले करीब एक महीने के दौरान अखिलेश और शिवपाल के बीच जंग रह-रहकर तेज होती रही है। इस दौरान पार्टी नेतृत्व के स्तर पर ऐसे कई फैसले लिये गये जो अखिलेश को अखरे। इनमें अखिलेश के करीबी चार विधानपरिषद सदस्यों तथा कई अन्य युवा नेताओं की बर्खास्तगी, भ्रष्टाचार के आरोप में बर्खास्त किये गये मंत्री गायत्री प्रजापति की सपा मुखिया के हस्तक्षेप के बाद मंत्रिमण्डल में वापसी और विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का चुनाव विधायक दल द्वारा किये जाने का मुलायम का बयान शामिल हैं।

शनिवार को निपटे थे उदयवीर

ताजा मामले में सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव को चिट्ठी लिखकर पार्टी प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले विधानपरिषद सदस्य उदयवीर सिंह को शनिवार को सपा से निकाल दिया गया था। सिंह को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का करीबी माना जाता है। उदयवीर सिंह ने अपने निष्कासन के बारे में कहा था, "नेताजी (मुलायम) पार्टी के संरक्षक है। मुझे पूरा भरोसा है कि वह सबके साथ न्याय करेंगे, मुख्यमंत्री (अखिलेश यादव) के साथ भी न्याय करेंगे। अफसोस इस बात का है कि नेताजी को मंचों से गाली देेने वाले लोग इस वक्त पार्टी में मौजूद हैं और पत्र लिखने वाले शुभचिंतकों को पार्टी से निकाला जा रहा है। नेताजी जब भी कभी गम्भीरता से विचार करेंगे तो जरुर सोचेंगे।"

तब बढ़ गई थी पार्टी में रार

मालूम हो कि प्रदेश के ‘समाजवादी परिवार' में रार बढ़ने के बीच पार्टी के विधान परिषद सदस्य उदयवीर सिंह ने गत 19 अक्तूबर को सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को पत्र लिखकर सनसनी फैला दी थी। उन्होंने पत्र में पार्टी के प्रान्तीय अध्यक्ष शिवपाल यादव के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए आरोप लगाया था कि वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से ईर्ष्या करते हैं। अपने चार पन्ने के पत्र में उन्होंने किसी का नाम लिये बगैर यहां तक कह दिया था कि अखिलेश के खिलाफ साजिश में मुलायम की पत्नी, बेटा और बहू भी शामिल हैं और शिवपाल सपा मुखिया की पत्नी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का चेहरा हैं। सिंह ने पत्र में आरोप लगाया था कि अखिलेश के खिलाफ षड्यंत्र वर्ष 2012 में उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के फैसले के बाद से ही शुरु हो गया था। उस वक्त शिवपाल ने इस निर्णय को रकवाने की भरसक कोशिश की थी। उसके बाद से ही शिवपाल की निजी महत्वाकांक्षा अखिलेश के पीछे पड़ी है। उन्होंने सपा मुखिया पर एकतरफा बातें सुनकर कार्रवाई करने का आरोप लगाते हुए अनुरोध किया था कि वह सपा के संरक्षक बन जाएं और अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दें।

जून माह से बढ़ने लगी थी दूरी

शिवपाल और अखिलेश के बीच तल्खी का दौर गत जून में तब शुरू हुआ था जब माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी की अगुवाई वाले कौमी एकता दल (कौएद) का शिवपाल की पहल पर सपा में विलय किया गया था और इस पर अखिलेश नाराज थे। कुछ दिन बाद इस विलय के रद्द होने से यह कड़वाहट और बढ़ गयी। शिवपाल ने कुछ दिन बाद प्रदेश में जमीनों पर अवैध कब्जों को लेकर इस्तीफे की पेशकश की थी। गत 15 अगस्त को सपा मुखिया ने मैदान में उतरते हुए शिवपाल की हिमायत की थी और कहा था कि अगर शिवपाल पार्टी से चले गये तो सपा टूट जाएगी।

अफसरों के तबादले से हुई थी शुरुआत

अखिलेश ने गत 12 सितम्बर को भ्रष्टाचार के आरोप में तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति तथा एक अन्य मंत्री राजकिशोर सिंह को बर्खास्त कर दिया था। ये दोनों ही सपा मुखिया के करीबी माने जाते हैं। मुलायम के कहने पर बाद में प्रजापति की मंत्रिमण्डल में वापसी हो गयी थी। इसे मुख्यमंत्री अखिलेश के लिये करारा झटका माना गया था। मुख्यमंत्री ने 13 सितम्बर को शिवपाल के करीबी माने जाने वाले मुख्य सचिव दीपक सिंघल को पद से हटाकर अपने पसंदीदा अधिकारी राहुल भटनागर को यह पद दे दिया था। उसके फौरन बाद मुलायम ने अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर वरिष्ठ काबीना मंत्री शिवपाल को यह जिम्मेदारी दे दी थी। इससे नाराज मुख्यमंत्री ने शिवपाल से उनके महत्वपूर्ण विभाग छीन लिये थे। अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष पद पर वापस लेने से सपा मुखिया के इनकार से पार्टी के युवा नेताओं में नाराजगी की लहर दौड गयी और वे पार्टी के प्रदेश मुख्यालय के सामने सडक पर उतर आये, जिसके बाद तीन विधान परिषद सदस्यों समेत कई युवा नेताओं को अनुशासनहीनता के आरोप में पार्टी से निकाल दिया गया।

कौएद का विलय माना गया सीएम की हार

हाल में मुलायम द्वारा कौएद के सपा में विलय को बहाल किये जाने सम्बन्धी शिवपाल की घोषणा को अखिलेश की एक और पराजय के तौर पर देखा गया। पार्टी में अखिलेश के हिमायती गुट का आरोप है कि यह सब मुख्यमंत्री की छवि को धूमिल करने और सपा में उनकी स्थिति कमर करने के लिये किया जा रहा है। मुख्यमंत्री के पैरोकार समझे जाने वाले पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव ने पिछले दिनों सपा मुखिया को लिखे पत्र में कहा था कि वह शिवपाल को निष्कासित युवा नेताओं को पार्टी में वापस लेने को कहें और विधानसभा चुनाव के टिकटों के बंटवारे में मुख्यमंत्री को भी अधिकार दें।

   

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