खुल्ले की समस्या ने छात्रों को शहर की पढ़ाई छोड़ गाँव लौटने पर किया मज़बूर

Neeraj TiwariNeeraj Tiwari   14 Nov 2016 4:53 PM GMT

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खुल्ले की समस्या ने छात्रों को शहर की पढ़ाई छोड़ गाँव लौटने पर किया मज़बूरशिक्षण व्यवस्था पर भी पड़ा है गंभीर असर।

लखनऊ। नोट बंदी के फैसले के बाद से देश में लोगों की मिलीजुली प्रतिक्रिया मिल रही है। कोई केंद्र सरकार के 500 और 1000 के नोट को बंद करने का फैसला सही कह रहा है तो कोई इस निर्णय की चर्चा शुरू होते ही उबल पड़ रहा है। हालांकि, इस बीच शहर में पढ़ाई कर रहे छात्र घर लौटने को मजबूर हैं।

फुटकर न होने से स्कूल जाने में हो रही दिक्कत

इस बीच ज्यादातर दिक्कत उन लोगों को हो रही है, जिन्हें खुल्ले देकर बस से सफर करना पड़ता है। सभी अपने-अपने तर्क के साथ हैं। इस संबंध में सफीपुर कस्बे में रहने वाले छात्र संदीप सिंह उन्नाव के डीएसएन कॉलेज में पढ़ते हैं। कॉलेज आने के लिए उन्हें हर रोज 50 रुपए खर्च करने होते हैं। संदीप का कहना है, “500 और 1000 की नोट बंद होने के बाद फुटकर पैसों की समस्या आ गयी है। बैंक में अभी लंबी लाइन लग रही है। घरों में फुटकर रुपए बचे नहीं हैं। कॉलेज जाने में दिक्कत हो रही है। नए 2000 के नोट के फुटकर कोई दे नहीं रहा है।” वे आगे कहते हैं, “बस वाले फुटकर पैसे देने पर ही बैठा रहे हैं।”

इस बारे में पूछने पर फैजाबाद की एक छात्रा नेहा (22 वर्ष) ने कहा, “मैं शहर के राजकीय स्कूल में पढ़ रही हूं। रुपया खत्म् होने के बाद मजबूरन घर वापस लौटना पड़ा। रुपया निकलवाने के लिए तीन दिन से बैंक का चक्कर लगा रही हूं। और भी कई छात्र-छात्राएं हैं जो शहर में रहते हैं मगर पढ़ाई छोड़कर कुछ दिनों से घर पर बैठे हैं।”

स्कूल की फीस जमा करने के लिए कर रहे करेंसी का इंतजार

वहीं, कन्नौज जिला मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर स्थित गांव बांगर निवासी 16 वर्षीय संध्या देवी कहती हैं, “मैं छह किमी दूर तिर्वा के दीनानाथ जनता बाल विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में कक्षा 12 में पढ़ती हूं। महीने में 300 रुपए फ़ीस जमा करनी पड़ती है। 500 का नोट बंद हो जाने से फ़ीस नहीं जमा हो पा रही है क्योंकि नए नोट अभी मिल नहीं पा रहे हैं।” वहीं, कन्नौज से 16 किमी दूर तिर्वा कस्बे की 16 वर्षीय स्टूडेंट मानसी बताती हैं, “मैं आरएस पब्लिक इंटर कॉलेज में इंटर की छात्रा हूं। बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुटी हूं। कई पुस्तकें खरीदनी हैं मगर भीड़ की वजह से बैंक में 500 रुपए के नोट नहीं बदल पाये हैं। किताब न खरीद पाने के चलते काफी दिक्कत हो रही है।” वहीं, जिला मुख्यालय से करीब दो किमी दूर बसे गांव बहादुरपुर निवासी अरविन्द पाल का कहना है, “उनके परिवार के चार बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं। करीब सात हजार रुपए फ़ीस जमा करनी है। स्कूल में कहा गया है कि मंगलवार के बाद 500 के पुराने नोट नहीं लिए जाएंगे। कुछ समझ नहीं आ रहा।” हालांकि, लोगों ने इस बात को भी स्वीकार किया है कि केंद्र सरकार की ओर से 500 और 1000 रुपए की नोट की वैधता 24 नवंबर कर देने से काफी मदद मिल सकेगी।

स्मार्टकार्ड बना सभी का सहारा

यूं तो करेंसी के विमुद्रीकरण के बाद से लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। फिर भी इस वक्त उन छात्र-छात्राओं को राहत मिली है, जिन्होंने पहले ही स्मार्टकार्ड बनवा लिया था। ई-वॉयलेट के लेनदेन का फायदा शहर से लेकर गाँव तक के लोगों को रोडवेज में सफर करने के लिए उठा रहे हैं। ऐसे में स्मार्टकार्ड बनवाने वालों की संख्या भी बढ़ सकती है, क्योंकि बीते कुछ दिनों में लोगों ने इसके लाभ को अच्छी तरह से समझ लिया है।

दोनों पैरों से लाचार भिखारी ने विमुद्रीकरण के फैसले को सराहा

इस बीच बाराबंकी जनपद में रहने वाले दोनों पैरों से अपंग एक फकीर ने कहा, “हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले के साथ हैं।” 65 साल के इस बुजुर्ग फकीर कालू ने कहा, “500 और 1000 रुपए की नोट बंद करने से सिर्फ उनब लोगों को ही नुकसान हुआ है जो लोग कालाधन बैंक में न रखकर घरों और बोरों में भरकर रखते थे।”

  

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