ठंड में हर रोज़ खुले में सोते हैं 50 हजार लोग

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ठंड में हर रोज़ खुले में सोते हैं 50 हजार लोगलखनऊ में नगर निगम प्रशासन की ओर से उपलब्ध कराए गए 1,150 लोगों को ही बसेरा दे सकते हैं नगर निगम के रैनबसेरे।

सुधा पाल

लखनऊ। ठंड में बिना किसी ठौर ठिकाने के सड़क किनारे और फुटपाथ पर रात गुजारने वाले गरीबों को ये तक नहीं पता है कि रैनबसेरा है क्या? यही वजह है कि वे हर दिन अपनी जान जोखिम में डाल कर कहीं भी सोने को मजबूर हैं। नगर निगम प्रशासन ने भी शहर के इन लगभग 50 हजार बेसहारा लोगों के लिए सिर्फ 23 पक्के रैनबसेरे ही उपलब्ध कराए हैं। ऐसे में प्रशासन के लिए यह बड़ा सवाल उठता है कि बाकी बड़ी संख्या में बचे हुए लोगों के सोने के लिए क्या व्यवस्था कराई गई है।

शनिवार देर रात पूर्व विधायक अशोक रावत के बेटे और उसके कुछ साथियों ने तेज रफ्तार कार को डालीबाग के रैन बसेरे में सोते लोगों पर चढ़ा दिया था। इस दुघर्टना में पांच गरीबों की मौत हो गई। जिसके बाद में निगाह अब नगर निगम के स्थाई रैन बसेरों की ओर गई है। शहर में नगर निगम प्रशासन की ओर से उपलब्ध कराए गए कुल रैनबसेरे केवल 1150 जरूरतमंदों को ही सहारा दे सकते हैं। इस तरह से इस बात का अंदाजा साफ लगाया जा सकता है कि इन जरूरतमंदों की संख्या को देखते हुए इनके लिए बनाए गए इन बसेरों की क्षमता बहुत कम है। इन रैनबसेरों में आने वाले लोग ज्यादातर मजदूर या धरना देने वाले होते हैं।

नगर निगम प्रशासन द्वारा बनाए गए इन रैनबसेरों में सुविधाएं तो हैं, लेकिन इन सुविधाओं के साथ कर्मचारियों और जोनल अधिकारियों की लापरवाही भी शामिल है। जहां एक ओर प्रशासन द्वारा लोगों की सुविधाओं के लिए बढ़ती ठंड के लिए अलाव का इंतजाम किया गया है, वहीं रैनबसेरे की साफ सफाई के लिए कोई सफाई कर्मचारी नहीं रखा गया है।

राजधानी में हमारे 23 रैनबसेरा संचालित हैं। जहां बेसहारा लोगों के लिए सभी इंतजाम मौजूद हैं। अधिक रैनबसेरे बनाने के लिए हमारे पास संसाधनों की कमी है।
उदयराज सिंह, नगर आयुक्त, लखनऊ

नगर निगम की ओर से बनवाए गए सभी रैनबसेरों में मौसम के अनुसार गद्दे और ओढ़ने के लिए कंबल की व्यवस्था कराई गई है। लेकिन कहीं कहीं प्रशासन की लापरवाही भी झलकती है। लक्ष्मण मेला मैदान स्थित रैनबसेरे के कर्मचारी अजय कुमार कनौजिया ने बताया, ‘रोज केवल 10 से 15 लोग ही आते हैं, जिनमें रिक्शेवाले और मजदूर होते हैं। यहां लगभग 50 गद्दे और कंबल हैंलेकिन शौचालय नहीं है। यहां एक ही शौचालय है, लेकिन नगर निगम का नहीं है और इस क्षेत्र में कोई भी शौचालय नहीं है। इसलिए स्थानीय निवासी भी इसका उपयोग करते हैं। इसके इस्तेमाल के लिए हर महीने 50 रुपए देने पड़ते हैं। रैनबसेरों में रहने के लिए इन जरूरतमंदों से इनका पहचान पत्र मांगा जाता है।

जरूरतमंदों को नहीं पता, क्या है रैनबसेरा?

हजरतगंज के बहुखंडी विधायक निवास के सामने बनाए गए रैनबसेरे में हुए हादसे के दौरान एक मृत मजदूर के साथी सत्तू बताते हैं, ‘हमें कभी पता भी नहीं था कि ऐसी कोई हम जैसों के लिए जगह भी होती है, वरना हम क्यों डर-डर के रोज सड़क पर सोएं। 10 साल से लखनऊ में काम कर रहा हूं। जिसकी मौत हो गई, वह हमारा ही साथी था, हमारे गाँव का। जब वह घटना हुई थी, तब भी उसके बाद हम उसी जगह सोए थे। सत्तू ने बताया कि उनके जैसे बहुत से मजदूर हैं, जिन्हें रैनबसेरे के बारे में कुछ नहीं पता।

रैनबसेरा संचालक उम्मीद संस्था पर मुकदमा

नगर निगम के रैनबसेरे कम हैं और एनजीओ और कॉरपोरेट हाउस के सभी रैन बसेरे सड़क से उखाड़ दिये गये हैं। डालीबाग के जिस रैन बसेरे में ओवर स्पीड से शनिवार को हादसा हुआ था, उसको संचालित करने वाली एनजीओ उम्मीद के संचालक के खिलाफ हजरतगंज थाने में पुलिस की ओर से मुकदमा दर्ज करवा दिया गया है। अब ऐसे में सवाल ये है कि कौन सी संस्था गरीबों के लिए राजधानी में रैनबसेरे का इंतजाम करेगी। इतनी बड़ी संख्या में गरीब कहां जाएंगे।

    

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