जमीनी हकीकत: सरकारी खाने में ही खोट

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जमीनी हकीकत: सरकारी खाने में ही खोटगाँव कनेक्शन ने पुलिस-पीएसी, अस्पताल और स्कूलों में पड़ताल की तो सामने आया कि यहां के खाने की गुणवत्ता सामान्य भोजन से काफी नीचे है।

बीएसएफ के एक जवान ने अपने वीडियो में खुराक को लेकर सवाल खड़े किए। वीडियो वायरल होते ही बीएसएफ के डीजी ने सभी आरोपों काे नकार दिया लेकिन ये पहला मामला नहीं है। सुरक्षाबलों व पुलिस-पीएसी समेत कई दूसरी सरकारी संस्थाओं द्वारा परोसे जाने वाले खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे हैं। गाँव कनेक्शन ने इस बारे में पुलिस-पीएसी, अस्पताल और स्कूलों में पड़ताल की तो सामने आया कि यहां के खाने की गुणवत्ता सामान्य भोजन से काफी नीचे हैं।

पुलिस व पीएसी के जवानों को न चाय मिलती है, न दूध

अश्वनी कुमार निगम

लखनऊ। आम लोगों की जानमाल की रक्षा के लिए मुस्तैद रहने वाले पुलिस और पीएसी के जवानों को खाना भी भगवान भरोसे ही दिया जाता है। सबसे पहले बात उत्तर प्रदेश पुलिस की प्रोविंसियल आर्म्ड कांस्टेबलरी यानि पीएसी की।

लखनऊ के कुड़ियाघाट स्थित पीएसी के कैँप के एक जवान ने बताया, “सुबह आठ बजे हमें खाना मिलता है जिसमें चावल, दाल, रोटी और सब्जी मिलती है उसके बाद शाम पांच बजे हमें रोटी, दाल और सब्जी दी जाती है। जवानों को न तो सुबह की चाय दी जाती और न ही कभी दूध।”

जवानों को महीने में सिर्फ तीन दिन स्पेशल खाना दिया जाता है लेकिन स्पेशल खाने के नाम पर पूड़ी और सब्जियां और बहुत हुआ तो कभी खीर। टेंट से बनाए गए बैरकों में रहने वाले इन जवानों का खाना भी खुले में बनता है।

पुलिस लाइन में खाने में होता है भेदभाव

उत्तर प्रदेश पुलिस जो इंसपेक्टर, सब इंस्पेक्टर और कांस्टेबल जिला पुलिस बल में होते हैं उनके खाने का इंतजाम पुलिस लाइन रहता है। यहां पर इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर का खाना जहां पुलिस क्लब में बनता है वहीं कांस्टेबल का बैरक में। बैरक में खाने की व्यवस्था भगवान भरोसे रहती है।

लखनऊ पुलिस लाइन में तैनात एक जवान ने बताया, “क्लब में जहां खाने की गुणवत्ता बहुत अधिक होती है वहीं बैरक में भगवान भरोसे लेकिन अधिकारियों डर के आगे हम अपना मुंह नहीं खोलते। ऐसे में कुछ पुलिस के जवान मेस का खाना न खाकर बाहर का खाना भी खाते हैं।”

हालांकि उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजीपी जावीद अहमद ने मेस की व्यवस्था और इसकी गुणवत्ता को सुधारने के लिए लगातार निर्देश दिए हैं।

सरकारी स्कूलों में बच्चों की खुराक से खिलवाड़

मीनल टिंगल

लखनऊ। परिषदीय व सहायता प्राप्त स्कूलों में सरकार द्वारा दोपहर का भोजन (एमडीएम) की गुणवत्ता हमेशा सवालों के घेरे में रही है। आए दिन खराब मिड-डे मील बांटने के मामले सामने आते रहते हैं।

उन्नाव के नवाबगंज ब्लॉक के एक प्राथमिक विद्यालय के प्रधान शिक्षक बताते हैं, “न तो प्रधान के यहां से कच्चा सामान अच्छा आता और न ही कन्वर्जन कॉस्ट इतनी दी जाती है कि बच्चों को अच्छा खाना खिलाया जा सके। रसोइयों को भी गुणवत्ता की ट्रेनिंग नहीं दी गई है, ऐसे में अच्छे भोजन की उम्मीद करना कैसे संभव है। कोशिश रहती है जितना अच्छा हो सके भोजन दिया जाए।”

एमडीएम सप्लाई करने वाली संस्थाएं अक्सर मनमानी करती हैं। अक्सर खाना सप्लाई नहीं करतीं। खाने की गुणवत्ता इतनी ज्यादा खराब होती है कि बच्चे खाना खाने से कतराते हैं। ऐसा हाल केवल एक संस्था का नहीं बल्कि लगभग सभी संस्थाओं का है। जब शिकायत करो तो कहते हैं कि डायवर्जन कास्ट पूरी नहीं पड़ती है।
महेन्द्र नाथ राय, प्रदेशीय मंत्री, माध्यमिक शिक्षक संघ

मुजफ्फरनगर के एक बेसिक स्कूल की प्रिंसिपल बताती हैं, “हमारी कोशिशों के बावजूद इंतजाम बहुत कम कन्वर्जन कास्ट न के बराबर है। ऐसे बच्चों के फल, दूध, दलिया और तहरी की गुणवत्ता बनाए रखना संभव नहीं है। मानकों के अनुरूप भोजन न होने के बावजूद बच्चों को कुछ तो देना ही पड़ता है।” इस बारे में सहायक निदेशक (मंडलीय) बेसिक महेन्द्र सिंह राणा का कहना है कि “नियम के अनुसार एमडीएम का खाना शिक्षकों द्वारा जांचा परखा जाना है।

यदि ऐसा हो तो ऐसी घटनाओं में कुछ कमी जरूर आयेगी। उन्होंने कहा कि जो शिक्षक इस नियम का पालन नहीं कर रहे उनकी शिकायत की जानी चाहिये। उन्होंने कहा कि हम लोगों की ओर से एमडीएम सप्लाई कर रही संस्थाओं के साथ गांवों के स्कूलों में एमडीएम बनाने वाले रसोईयों को भी हर बार यह कहा है कि खाने की गुणवत्ता और सफाई का खास खयाल रखा जाये।”

‘अस्पतालाें का खाना खाने के लायक नहीं’

दरख्शां कदीर सिद्दीकी

लखनऊ। सरकारी अस्पतालों मरीज को खाना तो मिलता है लेकिन इसी गुणवत्ता इतनी खराब होती है कि मरीज भी इसे खाने में कतराते हैं। क्वीन मेरी अस्पताल में भर्ती लाइबा के पति मो. नूर ने बताया, “अस्पताल में जो खाना मिलता है वह इन्सानों के खाने लायक नहीं है। दूध एक दिन छोड़ कर मिलता है।”

राज्य सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा सरकारी अस्पतालों में भर्ती मरीजों के बेहतर इलाज के साथ मुफ्त नाश्ता व भोजन की भी व्यवस्था की जाती है। इसके लिए सरकार ने प्रति मरीज 100 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से निर्धारित कर रखे हैं। अभी हाल ही में यह राशि बढ़ाकर सौ से डेढ़ सौ रुपए कर दी गयी है। बलरामपुर अस्पताल में हड्डी वार्ड में भर्ती कमला देवी का कहना है, “खाना अच्छा नहीं आता, पानी जैसी दाल आती है और सब्जी में भी कोई स्वाद नही होता जिस वजह से हम अपने खाने का इंतजाम खुद ही कर लेते हैं।”

जननी सुरक्षा योजना के तहत सारे महिला अस्पतालों में प्रसूताओं को आहार के लिए 100 रुपये रोज के हिसाब से मिलते हैं। इसमें सुबह नाश्ता-दूध, दोपहर के खाने में एक कटोरी दाल, चावल, चार रोटी, सूखी सब्जी और दही शामिल है।

दिन में एक फल भी दिया जाना चाहिए, जबकि रात को खाने में चार रोटी और सब्जी दी जानी चाहिए।

नियमों के अनुसार सरकारी अस्पतालों के जनरल वार्ड में मरीजों को कम से कम एक दिन में 1225 कैलोरी मिलनी चाहिये। इसमें से 20 ग्राम आटे की चार रोटी, 60 ग्राम चावल, 44 ग्राम दाल, 150 ग्राम सब्ज़ी होनी चाहिये। दाल खाने से 350 कैलोरी और सब्ज़ी से 50 कैलोरी प्राप्त होती है।

इसके अलावा अस्पताल में दूध, मक्खन, ब्रेड, बिस्किट और फल आदि ङी मरीजों को देने का प्रावधान होता है। लेकिन सरकारी अस्पतालों में खाने ने नाम पर सिर्फ पानी जैसी दाल मरीजों को दी जा रही है। परिवार कल्याण और मातृ एवं शिशु मंत्री रविदास मेहरोत्रा का कहना है, “मरीजों के खाने के साथ किसी भी तरह की कोई लापरवाही या कमी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अब तक जो प्रतिदिन मरीजों के ऊपर सौ रूपयें था उसको बढ़ाकर अब 150 रूपयें कर दिया गया है।“

      

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