प्रधानमंत्री डिग्री विवाद मामला: हाई कोर्ट ने सीआईसी के आदेश को बताया मनमाना व असंगत

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प्रधानमंत्री डिग्री विवाद मामला: हाई कोर्ट ने सीआईसी के आदेश को बताया मनमाना व असंगतआरटीआई आवेदक नीरज कुमार को नोटिस देकर जवाब मांगा

नई दिल्ली (भाषा)। प्रधानमंत्री डिग्री विवाद पर सोमवार को नया फैसला आया। दिल्ली विश्वविद्यालय को 1978 में बीए के स्टूडेंट्स का रिकॉर्ड दिखाने वाले केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के निर्देश पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी। उसी साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। साथ ही सीआईसी के आदेश को मनमानी और असंगत भी बताया।

न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने दिल्ली विश्वविद्यालय को राहत प्रदान की और आरटीआई आवेदक नीरज कुमार को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा। विश्वविद्यालय ने सीआईसी के पिछले साल 21 दिसंबर के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी और राहत की मांग की थी।

अदालत इस मामले में अब 27 अप्रैल को सुनवाई करेगा। नीरज कुमार को इस याचिका पर उस समय तक अपना जवाब दाखिल करना है। विश्वविद्यालय ने यह दावा करते हुए याचिका दायर की है कि सीआईसी का आदेश मनमानापूर्ण है और कानून के तहत असंगत है क्योंकि जिस सूचना का खुलासा करने की मांग की गई है वह तीसरे पक्ष की सूचना है।

अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता और केंद्र सरकार के स्थायी वकील अरुण भारद्वाज ने अदालत में कहा कि सीआईसी के आदेश के याचिकाकर्ता और देश के सभी विश्वविद्यालयों पर दूरगामी प्रतिकूल नतीजे होंगे जो कानूनी विश्वास के तहत करोड़ों लोगों की डिग्रियां संभाल कर रखते हैं। विश्वविद्यालय ने कहा कि उसके पास कानूनी विश्वास के तहत उपलब्ध सूचना का खुलासा करने का सीआईसी द्वारा उसे निर्देश देना पूर्णत: गैर कानूनी है, खासकर तब जब ऐसे खुलासे से जनहित की कोई दरकार नहीं है।

सीआईसी ने आरटीआई अधिकारी की दलील खारिज की थी

सीआईसी ने विश्वविद्यालय को परीक्षा परिणाम दिखाने का आदेश दिया था। उसने विश्वविद्यालय के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी की यह दलील खारिज कर दी थी कि यह तीसरे पक्ष की सूचना है। सीआईसी ने कहा था कि केंद्रीय जन सूचना अधिकारी की दलील में न तो दम है और न ही कानूनी वैधता। उसने विश्वविद्यालय को उस प्रासंगिक रजिस्ट्रर को दिखाने में सहयोग का निर्देश दिया था जिनमें 1978 में बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम शामिल है। उसने विश्वविद्यालय को रजिस्ट्रर में दर्ज विद्यार्थियों के क्रमांक, उनके नाम, उनके पिता के नाम, प्राप्तांक आदि मुफ्त उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया था। सीआईसी ने कहा था कि ऐसी पहचान संबंधी सूचना से निजता के उल्लंघन के खिलाफ आरटीआई अधिकारी ने कोई सबूत नहीं दिया था।

      

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