देश में सबसे ज़्यादा बिस्कुट खाने के शौकीन हैं महाराष्ट्र के लोग, एक साल में खा जाते हैं एक लाख नब्बे टन बिस्कुट

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देश में सबसे ज़्यादा बिस्कुट खाने के शौकीन हैं महाराष्ट्र के लोग, एक साल में खा जाते हैं एक लाख नब्बे टन बिस्कुटमहाराष्ट्रवासी एक साल में एक लाख नब्बे टन बिस्कुट खाते हैं जबकि सबसे कम बिस्कुट खाने वालों में पंजाब और हरियाणा के लोग हैं।

जयपुर (भाषा)। देशभर में लोग प्रत्येक वर्ष 36 लाख टन बिस्कुट खाते हैं। इनमे सबसे अधिक बिस्कुट के शौकीन लोग महाराष्ट्र में है। महाराष्ट्रवासी एक साल में एक लाख नब्बे टन बिस्कुट खाते हैं जबकि सबसे कम बिस्कुट खाने वालों में पंजाब और हरियाणा के लोग हैं।

बिस्कुट मैन्यूफैक्चरर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अनुसार देश में गत वर्ष 36 लाख टन बिस्कुट की खपत हुई, इसमें हर साल आठ से दस प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। एक अनुमान के अनुसार देश में बिस्कुट की बिक्री 37,500 करोड़ रुपये की बिक्री सालाना हो रही है। एसोसिएशन के अध्यक्ष हरेश दोषी ने कहा कि लोग अब केवल स्वाद के लिए नहीं बल्कि नाश्ते, स्वास्थ्य कारणों और दाल रोटी के स्थान पर भी बिस्कुट खा रहे हैं जिससे इनकी मांग लगातार बढ रही है। उन्होंने कहा कि आजादी के पहले केवल ग्लूकोज बिस्कुट थे लेकिन अब बाजार में कई किस्म के बिस्कुट उपलब्ध हैं।

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उनका कहना है सरकार ने यदि 100 रुपये की कीमत वाले बिस्कुट को जीएसटी के दायरे में शामिल किया तो सरकार को मिलने वाले कर राजस्व में बढोतरी नहीं होगी, लेकिन यह निम्न वर्ग की पहुंच से दूर हो जाएगा।

बिस्कुट खाने में दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड हैं जहां सालाना करीबन एक लाख 85 हजार टन बिस्कुट की खपत है। तमिलनाडु एक लाख ग्यारह हजार, पश्चिम बंगाल एक लाख दो हजार, कर्नाटक 93 हजार, मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ अस्सी हजार, बिहार और झारखंड में बासठ हजार पांच सौ, राजस्थान बासठ हजार पांच सौ, गुजरात 72 हजार आंध्र प्रदेश के लोग बावन हजार पांच सौ टन बिस्कुट खाते हैं।

एसोसिएशन अध्यक्ष के अनुसार दक्षिणी राज्यों में सौ रुपये तक की कीमत के बिस्कुट जिनमें सामान्यत ग्लूकोज बिस्कुट आते है सबसे अधिक खपत है। इसका मुख्य कारण वहां के लोग बिस्कुट को खाने के रुप में भी सेवन करते है। कई लोग तो दिनभर काम के दौरान बिस्कुट के सहारे ही अपना पेट भर लेते है।

उन्होंने कहा कि बिस्कुट की मांग बढ़ने का दूसरा कारण लोगों की पसंद में बदलाव है। जो पहले केवल ग्लुकोज बिस्कुट लेते थे वे अब क्रीम वाले बिस्कुट खाने लगे है। गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाला वर्ग उपरी श्रेणी में आ रहा है। कमाबेश यह स्थिति हर श्रेणी की है। बाजार में बिस्कुटों की कई किस्म मौजूद होने के कारण मांग लगातार बढ़ रही है, आगे भी यहीं स्थिति रहेगी।

एसोसिएशन के अनुसार देश में खपत होने वाले 36 लाख टन बिस्कुट में से 25 लाख 50 हजार टन बिस्कुट संगठित क्षेत्र में और बाकी 10 लाख 50 हजार टन असंगठित क्षेत्र में आता है।

एसोसिएशन के महामंत्री राजेश जैन ने एक 100 रुपये कीमत तक के बिस्कुट को जीएसटी से बाहर रखने की मांग करते हुए कहा कि देश में 715 बिस्कुट उत्पादक इकाइयां है। इनमें से 240 इकाइयां केवल 100 रपये की कीमत तक के बिस्कुट बनाती हैं। ये इकाइयां मात्र तीन से चार प्रतिशत के मुनाफे पर काम कर रही हैं। इन्हें जीएसटी के दायरे में रखने से इन इकाइयों का उत्पादन प्रभावित होगा।

एसोसिएशन के मनोज शारदा के अनुसार सरकार को बिस्कुट की बिक्री से केंद्र एवं राज्य सरकार को सालाना 3,400 करोड़ रुपये का राजस्व मिलता है। बिस्कुट के कर ढांचे में बदलाव किया गया तो भी सरकार को मिलने वाले राजस्व में कोई अंतर नहीं आयेगा। लेकिन 100 रुपये तक कीमत बिस्कुट को जीएसटी दायरे में लाया गया तो महंगा होने की वजह से यह गरीब लोगों की पहुंच से बिस्कुट दूर हो जायेगा।

      

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