गाँवों में पैसों की जगह दे रहे अनाज, रिचार्ज के बदले दे रहे सब्जी

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गाँवों में पैसों की जगह दे रहे अनाज, रिचार्ज के बदले दे रहे सब्जीफोटो: गाँव कनेक्शन।

रिपोर्ट: सुधा पाल

लखनऊ। गांवों मे पहले रुपये का चलन बहुत कम था। तब यहां अनाज के बदले जरूरत के सामान परचून और अन्य दुकानों से मिला करते थे। अभी भी पुराने कपड़ों के बदले बर्तन दिये जाते रहे हैं। मगर केन्द्र सरकार के नोटबंदी के फैसले से गरीब और परम्परागत खेती करने वाले किसानों के पास कई तरह की मुश्किलें आने के बाद ग्रामीणों ने फिर से इसका समाधान निकाला है। ऐसे में अब किसान अनाज देकर राशन बदल रहे हैं। इसके साथ ही अन्य वस्तुओं की भी अदला-बदली करके ये किसान अपनी घरेलू ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं। यहां खेतों में मजदूरों को बाद में फसल का हिस्सा देने और मोबाइल रिचार्ज के बदले सब्जी दी जा रही है।

गाँव में पहले भी ऐसा होता था

धान की कटाई हो चुकी है और गेहूं की बुवाई की तैयारियां भी ज़ोरों पर हैं। ज़ाहिर सी बात है कि किसान के खर्च भी इस दौरान बढ़ रहे हैं। पुराने नोटों के बंद होने का असर इन गांवों में आसानी से देखने को मिल रहा है। गांव के किसान पर्याप्त पैसा न होने पर अपनी खेती की ज़रूरतों को भी पूरा नहीं कर पा रहे हैं। किसान महिलाएं भी अपना गृहस्थ जीवन सुचारू रूप से नहीं चला पा रही हैं। इन हालातों में ये किसान पुराने ज़माने का तरीका अपना रहे हैं, जहां सामान के बदले सामान दिया और लिया जाता था। पैसा तो अब आया है, पहले तो फ़सल की अदला-बदली से ही गांव के लोग अपना गुज़ारा किया करते थे। छुट्टे पैसों की किल्लत से किसान पैसों के बदले अनाज दे रहे हें और अपनी ज़रूरतों को पूरा कर रहे हैं।

ट्रैक्टर की जुताई, खाद-बीज और लगभग सभी दुकानदारों को हम किसानों पर भरोसा होता है। हमको तो यहीं इसी गांव में मरना है। इसलिए बड़े कामों के लिए उधार ले रखा है और छोटे खर्चों के लिए सामान के बदले दूसरा सामान देकर दिन बिता रहे हैं।
बड़ेलाल, सरुआ

दूध के बदले देते हैं अनाज

प्रतापगढ़ के राजू बताते हैं कि उनके पास कोई पशु नहीं है। ऐसे में दूध खरीदना पड़ता है। गांव में और भी ऐसे कई लोग हैं, जो दूध खरीदते हैं। राजू का कहना है कि 1000 तो क्या 500 रुपए का नोट भी कोई लेने को तैयार नहीं है। बड़ी ज़रूरतों के लिए 100 रुपए का नोट ही हर जगह निकालना पड़ता है। इसलिए वे दूध के पैसे नहीं देते हैं, बल्कि पैसों की जगह वे गेहूं, सरसो, चना और अन्य सामान जो भी अनके पास उपलब्ध हो, उस समय देते हैं।

फसल में से देंगे खेतों की सिंचाई की लागत

केशवरायपुरवा के किसान भगवानदीन ने इसी साल पानी की अच्छी व्यवस्था के लिए सबमर्सिबल लगवाया है। गांव के बाकी किसान जिन्हें सिंचाई की समस्या है, वे भगवानदीन से ही सिंचाई करवा रहे हैं। एक घण्टे की सिंचाई का लगभग 200 रुपए लिए जाते हैं। किसान इनके पास आकर अपने खेतों की सिंचाई करवाते हैं। वहीं सिंचाई करवाने वाले किसान कह रहे हैं कि इनके पास इस समय या तो 500 के नोट हैं या देने के लिए पर्याप्त छुट्टे पैसे नहीं हैं। इसलिए ऐसे किसानों का कहना है कि फसल तैयार होने के बाद सिंचाई की कीमत चुका दी जाऐगी। जितने की सिंचाई होगी, उतनी कीमत की फसल किसान देंगे। किसानों का मानना है कि पैसा आज भी गाँव में फसल के बाद ही आता है। इसलिए खेती पहले आती है।

मोबाइल रिचार्ज करवाने के बदले दे रहे सब्ज़ियां

घर में ही परचून की दुकान चलाने वाली प्रीति मोबाइल रिचार्ज भी करती हैं। गांव के लगभग हर घर में मोबाइल फोन है। प्रीती बताती हैं कि गांव वाले अपना मोबाइल रिचार्ज करवाने अक्सर आते हैं और 15, 30, 50 और 100 रुपए तक रिचार्ज ज़्यादातर करवाते हैं। 15 से 50 तक के रिचार्ज के लिए तो लोग पैसे की जगह अपने खेतों में उगाईं सब्ज़ियां ले कर आते हैं। जितने का रिचार्ज, उतनी ही कीमत की सब्ज़ी दे देते हैं। इसके साथ ही 100 रुपए के रिचार्ज पर या तो उधार करते हैं या फिर अनाज और तेल, दलहन दे देते हैं।

पैसे का क्या है, वो तो आता-जाता रहेगा, लेकिन बुवाई का सीजन चला गया तो फिर अगले साल का इंतज़ार करना पड़ेगा। खेती तो करनी है फिर चाहे पैसा हो या ना हो। कुछ डालेंगे खेतों में, तभी तो पैसे आएंगे। सिंचाई के पैसे नहीं थे, इसलिए मजदूरी करके चुकाऊंगा।
ताराचंद, रीठी

   

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