सुनामी की चेतावनी जारी करने में अग्रणी है भारत

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सुनामी की चेतावनी जारी करने में अग्रणी है भारतसुनामी

पल्लव बाग्ला

नई दिल्ली (भाषा)। करीब एक दशक पहले ‘सुनामी' शब्द हर घर में समझा जाने लगा था क्योंकि उस समय भूकंप के कारण समुद्र में उठी उंची उंची तूफानी लहरों की चपेट में आकर दक्षिणी भारत में महज कुछ मिनटों के भीतर 10,000 लोगों की मौत हो गई थी और 26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में उठी इस सुनामी में कुल 2,30,000 लोगों की मौत हो गई थी।

बारह साल पहले उस दुर्भाग्यपूर्ण रविवार से पहले तक अधिकतर भारतीयों को यह तक नहीं पता था कि सुनामी शब्द की शुरुआत किस अक्षर से होती है। भारत की उस पीढ़ी की स्मृति में सुनामी शब्द का नामोनिशान तक नहीं था लेकिन उसके बाद से सभी यह समझ चुके हैं कि सुनामी धरती पर सबसे ज्यादा तबाही लाने में सक्षम प्राकृतिक ताकतों में से एक है।

लेकिन इससे सीख लेते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में भारत ने सबसे पहले अपने हैदराबाद स्थित अत्याधुनिक केंद्र के जरिए दिन रात सुनामी की अग्रिम चेतावनी देने का काम शुरु किया जो अभी भी जारी है। हालांकि परेशानी तब आती है जब मछुआरे कभी कभार गहरे समुद्र में लगे सेंसरों के इलेक्ट्रॉनिक हिस्से और सौर पैनलों के साथ छेड़छाड़ कर देते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि भारतीय चेतावनी प्रणाली ने इस एक दशक में कभी भी ‘गलत चेतावनी' जारी नहीं की है जबकि इससे कहीं पुराना और प्रतिष्ठित प्रशांत सुनामी चेतावनी केंद्र नियमित तौर पर जो चेतावनी जारी करता है वह कभी-कभी सच साबित नहीं होती, ऐसे में प्रणाली की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाते हैं।

आपदा जोखिम में कमी पर संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय (UNAISDR) का आकलन बताता है कि ‘‘सुनामी की घटनाएं कम होती हैं लेकिन यह जानलेवा होती है। बीते 100 साल में सुनामी की 58 घटनाओं में 2,60,000 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यानी हर आपदा में औसतन 4,600 लोगों की मौत हुई है। यह आकंड़ा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा है।'' भारत सरकार की अध्यक्षता में पहला विश्व सुनामी जागरुकता दिवस पांच नवंबर 2016 को मनाया जाएगा। इस मौके पर UNAISDR के साथ मिलकर नई दिल्ली आपदा जोखिम में कमी पर एशिया के मंत्री स्तरीय सम्मेलन का आयोजन करेगी।

UNAISDR के मुताबिक पांच नवंबर 1854 को उच्च तीव्रता के भूकंप के बाद जापान में एक ग्रामीण ने सुनामी की अग्रिम चेतावनी जारी की थी। सुनामी की अग्रिम चेतावनी का यह पहला दस्तावेज है। सुनामी सागरों में उसी गति से चलती है जिस गति से एक विमान उड़ता है और ये लहरें शांत पड़ने से पहले धरती का कई बार चक्कर लगा सकती हैं। दिलचस्प बात यह है कि गहरे पानी में चलने वाले जहाज उनके नीचे से गुजरने वाली सुनामी का अहसास भले नहीं कर पाएं लेकिन जैसे ही सुनामी की लहरें जमीन की ओर बढ़ती हैं, उनकी उर्जा केंद्रित हो जाती है और इससे 20 से 30 मीटर उंची लहरें उठती हैं जो कई किलोमीटर तक उंची जा सकती हैं। भारत की 7,500 किमी लंबी तटरेखा पर सुनामी का खतरा आमतौर पर मंडराता रहता है।

वर्ष 2004 में आई सुनामी के बाद भारत ने इसकी अग्रिम चेतावनी प्रणाली को स्थापित करने का फैसला लिया था। इसे सक्रिय रुप से काम करने में तीन साल का वक्त लगा। इसकी निर्माण लागत दो करोड डॉलर आई। इसमें लगभग दर्जनभर लोग काम करते हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि समय रहते सुनामी की चेतावनी जारी की जा सके।

प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह के मुताबिक भारतीय सुनामी अग्रिम चेतावनी केंद्र (ITEWC) वर्ष 2007 से काम कर रहा है। अब यह हैदराबाद स्थित भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) के जरिए पूरे हिंद महासागर क्षेत्र के लिए सुनामी वॉच प्रोवाइडर (RTWP) के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहा है।

यह केंद्र हिंद महासागर क्षेत्र में आने वाले और सुनामी पैदा कर सकने में सक्षम भूकंपों का 10 मिनट के भीतर पता लगाने में सक्षम है और संबद्ध अधिकारियों को इसकी चेतावनी 20 मिनट में जारी कर देता है। भारतीय प्रणाली दिन रात काम करती है और INCOIS प्रणाली दिन हो या रात कभी भी संदेह दूर करने के लिए तैयार रहती है। हैदराबाद स्थित इस प्रणाली ने कभी भी गलत चेतावनी जारी नहीं की है। यहां के वैज्ञानिक चेतावनी तब तक जारी नहीं करते हैं जब तक कि गहरे महासागर में लगे सेंसर दबाव में वास्तविक परिवर्तन का पता नहीं लगा लेते। भारत समेत हिंद महासागर के अन्य देशों ने सात और आठ सितंबर को हुई सुनामी मॉक ड्रिल में हिस्सा लिया था।

INCOIS के मुताबिक अपनी तरह के ऐसे पहले प्रशिक्षण में तटीय भारत के 33 जिलों के लगभग 350 तटीय गाँवों से 40,000 लोगों को बचाकर सुरक्षित स्थानों पर सफलतापूर्वक पहुंचाया गया। INCOIS के अधिकारियों ने बताया कि भारत के परमाणु उर्जा संस्थानों ने इस मॉक ड्रिल में भाग नहीं लिया जबकि ऐसे कई संस्थान तटीय भारत में स्थित हैं।

याद रहे कि जापान में 2011 में फुकुशिमा में परमाणु उर्जा संयंत्रों में भारी तबाही मची थी तो इसकी वजह यह थी कि भयावह सुनामी से निबटने की उनकी कोई तैयारी नहीं थी। हालांकि बताया जाता है कि भारत के सभी परमाणु उर्जा संयंत्रों में सेंसर लगे हुए हैं जो उच्च तीव्रता का भूकंप आने पर रिएक्टरों को ठप कर देते हैं।

    

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