जापानी बुखार से 10 हजार मासूमों की मौत, लेकिन नेताओं के लिए ये मुद्दा नहीं
Ashwani Nigam 3 March 2017 5:36 PM GMT

गोरखपुर/ लखनऊ। पूर्वांचल की 49 विधानसभा सीटों पर शनिवार को वोट डाले जाएंगे। लेकिन इसी क्षेत्र में पिछले 38 साल से जापानी इंसेफेलाइटिस नामक बीमारी से लगभग 10 हजार मासूम बच्चों की मौत हुई हैं वहीं इस मरीज के चपेट में आने के बाद जो बच्चे बच गए हैं वह शारीरिक, मानसिक रूप से दिव्यांग हो चुके हैं। लेकिन इसके बाद भी चुनाव की इस बेला में राजनीतिक पार्टियों के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है। इंसेफेलाइटिस नामक बीमारी से अपने 9 साल के बच्चे को खाने वाली गोरखपुर जिले की सरया गांव की रीना देवी ने बताया '' पिछले साल मेरे बेटे केा हल्का बुखार आया, मेडिकल कालेज में भर्ती कराया तो पता चला जापानी बुखार है। लेकिन बच्चे को बचाया नहीं जा सका। मैं चाहती हूं कि सरकार ऐसी व्यवस्था करे के कि दोबारा फिर किसी केा गोद सूनी न हो। '' ऐसा कहना सिर्फ इनका नहीं है बल्कि इनके जैसी हजारों ऐसी माताएं हैं जिन्होंन इस बीमारी से अपने बच्चे को खोया है।
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यह हाल तब है जब पूर्वांचल के सभी जिलों के साथ ही बिहार और नेपाल का भी बड़ा हिस्सा भी जापानी इंसेफेलाइटिस नामक बीमारी के कहर से यहां के हर साल यहां के सैकड़ों बच्चे मर रहे हैं। इस बीमारी से यहां के बच्चों का उपचार करने के लिए गोरखपुर स्थित बाबा राघवदास मेडिकल कालेज में 100 बेड का अलग से इंसेफेलाइटिस वार्ड बनाया गया है। आंकडों के अनुसार 1978 से लेकर अबतक यहां पर 39100 इंसेफेलाइटिस के मरीज भर्ती हुए ओर इसमें से 9286 बच्चों की मौत हो गई। इस बारे में यहां इंसेफेलाइटिस वार्ड के प्रभारी और असिस्टेंट हेड आफ डिपार्टमेंट डा़ काफिल खान ने बताया '' जापानी इंसेफेलाइटिस एक तरह से यहां पर महामारी का रूप ले चुका। हर साल सैकड़ों बच्चों की जान यह ले रहा है लेकिन इसके लिए जो काम होना चाहिए वह नहीं हो रहा है। ''
उन्होंने बताया कि दूषित पानी और मच्छर के काटने से फैलने वाली यह बीमारी 1978 में कई देशों में दस्तक दी थी लेकिन अधिकतर देशों ने टीकाकरण और दूसरे प्रयासों से इस बीमार पर काबू पा लिया। लेकिन पूर्वांचल में यह घटने की बजाय हर साल बढ़ रही है। इंसेफेलाइटिस वार्ड में हर महीने भर्ती होने वाले मरीजों का आंकड़ा देते हुए उन्होंने बताया कि अगस्त से लेकर अक्टूबर तक इस बीमारी का प्रकोप तेजी से बढ़ता है़ आम दिनों में रोजाना एक से लेकर दो केस आते हैं वहीं अगस्त आते ही यह आंकड़ा सैकड़ों गुना बढ़ जाता है। पिछले साल अगस्त में यहां पर 418 बच्चे भर्ती हुए जिसमें से 115 बच्चों की मौत हो गई जबकि दिसंबर में 134 बच्चे भर्ती हुए ओर इसमें से 46 की मौत हो गई।
इंसेफेलाइटिस बीमारी को लेकर पूर्वांचल में राजनीति भी खूब हुई यहां पर होनी वाली बच्चों की मौत सुर्खियां भी बनी। गोरखपुर के बीजेपी सांसद योगी आदित्यनाथ से लेकर यहां के स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने समय-समय पर इसको लेकर आवाज उठाई लेकिन नतीजा वहीं ढाक के तीन पात रहा। केन्द्र में बीजेपी की सरकार बनने पर योगी आदित्यनाथ भी इस बीमारी की रोकथाम के लिए कुछ नहीं कर पाए वहीं सपा सरकार में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। स्थिति यह है कि यहां पर एक ही बेड पर जहां तीन-तीन इंसेफेलाइटिस से पीड़ित बच्चों को रखना पड़ता है वहीं यहां पर काम कर रहे नर्स और कर्मचारियों को सयम से वेतन तक नहीं मिलता।
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