तस्लीमा नसरीन ने कहा, ममता मेरे मामले में वाम मोर्चा सरकार से अधिक ‘कठोर’, वह ‘वोटबैंक की राजनीति की शिकार’  

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   22 Jan 2017 6:10 PM GMT

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तस्लीमा नसरीन ने कहा, ममता मेरे मामले में वाम मोर्चा सरकार से अधिक ‘कठोर’, वह ‘वोटबैंक की राजनीति की शिकार’  निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन।

कोलकाता (भाषा)। निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन का कहना है कि वर्ष 2011 में ममता बनर्जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल में अपनी वापसी के लिए स्थिति सुधरने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें लगता है कि तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो इस मामले में वाम मोर्चा की सरकार से ज्यादा ‘कठोर' हैं।

तस्लीमा ने फोन पर नई दिल्ली में अपने अज्ञातवास से बताया ‘‘मुझे उम्मीद थी कि ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद पश्चिम बंगाल की स्थिति सुधरेगी। लेकिन मैं गलत थी। मुझे वह इससे पहले की वाम मोर्चा सरकार से कहीं ज्यादा कठोर लगीं।'' लेखिका ने कहा कि वह ‘वोटबैंक की राजनीति की शिकार' हैं और राजनीतिज्ञ चाहे किसी भी दल के हों, उनके बारे में सबका यही नजरिया है।

अगर मेरी बात हो तो सभी राजनीतिज्ञों का नजरिया समान ही है, मेरे विचार से, इसका कारण उनकी यह सोच है कि यदि वह मुस्लिम कट्टरपंथियों को संतुष्ट कर सकते हैं, तो उन्हें ज्यादा मत मिलेंगे। मेरा मानना है कि मैं वोटबैंक की राजनीति की शिकार हूं। इससे यह भी पता चलता है कि लोकतंत्र कितना कमजोर है और राजनीतिज्ञ एक लेखक को प्रतिबंधित करके वोट जुटाते हैं।
तस्लीमा नसरीन निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका

तस्लीमा ने कहा कि पश्चिम बंगाल में यही हो रहा है, उन्होंने कहा कि राज्य में उनकी वापसी के बारे में राज्य सरकार का विरोध एक ‘खतरनाक विरोध' है। तस्लीमा ने कहा, ‘‘हालांकि मैं वहां नहीं रह रही हूं लेकिन फिर भी ममता बनर्जी ने मेरी किताब ‘निर्वासन' को छपने की अनुमति नहीं दी। इसके अलावा मुस्लिम कट्टपंथियों के विरोध के बाद उन्होंने मेरी स्क्रिप्ट पर आधारित एक टीवी सीरियल को भी प्रसारित होने से रोक दिया। उन्होंने मुझे राज्य में घुसने की अनुमति भी नहीं दी...यह एक ‘खतरनाक विरोध' है।

उल्लेखनीय है कि मुस्लिम कट्टपंथियों की ओर से जान से मारने की धमकियां मिलने के बाद वर्ष 1994 से बांग्लोदशी लेखिका निर्वासित जीवन व्यतीत कर रही है।

यूरोप में रहने के बाद, तस्लीमा ने वर्ष 2004 में भारत में शरण ली और कोलकाता में रहीं। लेकिन साल 2007 में उनके लेखन को लेकर मुसलमानों के हिंसक प्रदर्शन के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल से निकाल दिया गया। फिर कुछ दिन तक वह नई दिल्ली में अज्ञात स्थान पर रहने के बाद वह स्वीडन चली गईं। बाद में वह भारत लौट आयीं और इस समय नई दिल्ली में रह रही हैं।

ममता को एक चिट्ठी लिखी पर जवाब नहीं आया

उनसे पूछा गया कि क्या वह ममता बनर्जी से संपर्क कर, कोलकाता लौटने में उनकी मदद मांगेंगी। इस पर तस्लीमा ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री को एक चिट्ठी लिखी है, लेकिन अभी तक इसका जवाब नहीं मिला है।

उन्होंने बताया, ‘‘मैंने ममता बनर्जी को लिखा है लेकिन अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, मैंने एक लोकप्रिय बांग्ला दैनिक में एक आलेख लिखा था और उम्मीद थी कि वह इसका संज्ञान लेंगी और मेरी मदद करेंगी हालांकि यह ममता पर बहुत ही सकारात्मक आलेख था, लेकिन कुछ भी नहीं बदला।''

      

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