बढ़ते प्रदूषण की चुनौती कठिन होती जा रही जा रही है। सीसा (लेड) पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारणों में से एक है। लेड के रीसाइकिल यानी पुनर्चक्रण की जो प्रक्रिया अपनाई जाती है, वह भी सुरक्षित नहीं है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास और आईआईटी कानपुर ने लेड-जनित प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में एक बड़ी पहल की है।
शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन किया है, जिसमें ऐसे उपयुक्त नीतिगत उपाय सुझाए गए हैं, जो देश में लेड प्रदूषण को कम करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। अध्ययन में भारत में लेड रीसाइक्लिंग की चुनौती का गहन विश्लेषण किया गया है, क्योंकि लेड से होने वाले विभिन्न प्रकार के प्रदूषण लोगों की शारीरिक एवं मानसिक सेहत पर आघात कर रहे हैं।
#IITKanpur and @iitmadras‘s researchers are conducting a study to find out the appropriate policy instruments that can help India to reduce lead pollution.
Let us look at some of the findings in the following images.#leadpollution #research #policymaking #taxpolicies #itsiitk pic.twitter.com/uZJas0ugmn
— IIT Kanpur (@IITKanpur) September 8, 2021
वर्तमान में लेड के पुनर्चक्रण की प्रक्रिया कई तरह के खतरों और चुनौतियों से भरी है। असंगठित क्षेत्र में लेड-एसिड बैटरियों का पुनर्चक्रण करने वाले कामगार यह काम कुछ इस प्रकार अंजाम देते हैं, जिसमें बैटरी से निकलने वाला तेजाब और लेड के कण मृदा और आसपास के परिवेश में घुल जाते हैं। इतना ही नहीं लेड को खुली भट्टी में गलाया जाता है, जिसके कारण विषाक्त तत्व हवा के माध्यम से वायुमंडल में पहुंच जाते हैं। इस प्रकार लेड के पुनर्चक्रण की यह प्रविधि न केवल पर्यावरण, अपितु इसमें सक्रिय कामगारों के स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत हानिकारक है। दरअसल यह प्रक्रिया बहुत सस्ती होने के कारण व्यापक स्तर पर प्रचलित है और इस काम से जुड़े लोगों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनी हुई है। साथ ही यह विकासशील देशों में बहुत सामान्य रूप से संचालित होती है, क्योंकि यह असंगठित क्षेत्र के लिए बहुत किफायती पड़ती है।
@iitmadras & @IITKanpur researchers study policy tools to reduce lead pollution in India from lead-acid battery recycling, using a system dynamics model. The study suggested guidelines like reducing tax & providing subsidies to regulated recycling sector.https://t.co/ceeTJe5htJ pic.twitter.com/YUZtLdebNL
— IIT Madras (@iitmadras) September 6, 2021
आईआईटी मद्रास में प्रबंधन शिक्षा विभाग के प्रोफेसर आरके अमित ने कहा, “क्योंकि लेड के लिए उपलब्ध प्राथमिक स्रोत मांग की पूर्ति के लिए अपर्याप्त हैं, ऐसे में इस्तेमाल की हुई बैटरियों पर निर्भरता आवश्यक हो जाती है। हालांकि उनकी रीसाइक्लिंग के लिए अपनाए जाने वाले अवैज्ञानिक तौर-तरीकों के कारण यह प्रक्रिया स्वास्थ्य के लिए तमाम खतरों का कारण भी बन गई है। ऐसे में हमने इस उपक्रम को असंगठित से संगठित बनाने की दिशा में बढ़ने संबंधी विभिन्न पहलुओं का बहुत व्यापक अध्ययन किया है।”
इस अध्ययन में कई उल्लेखनीय पहलू सामने आए हैं, जिसके आधार पर शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि नियमन के दायरे में आने वाले पुनर्चक्रण क्षेत्र के लिए करों में कुछ कटौती की जाए और लेड-एसिड बैटरी पुनर्चक्रण के कारण होने वाले प्रदूषण को घटाने के लिए संगठित पुनर्चक्रण एवं विनिर्माण क्षेत्रों को कुछ सब्सिडी दी जाए। शोध का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी है कि संगठित पुनर्विनिर्माण (रीमैन्यूफैक्चरिंग) क्षेत्र के लिए पर्याप्त सब्सिडी की व्यवस्था से संगठित एवं असंगठित पुनर्चक्रण क्षेत्रों की गतिविधियां सीमित होंगी, जिससे लेड प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी।
उल्लेखनीय है कि लेड का प्रयोग पेंट, सौंदर्य-प्रसाधन, ज्वेलरी, बालों के लिए रंग और गोला बारूद जैसे अन्य उद्योगों में भी बड़े पैमाने पर होता है। फिर भी कुल उत्पादित लेड का लगभग 85 प्रतिशत उपभोग अकेला बैटरी उद्योग करता है।