भारत की 1.3 अरब जनता ‘मंगलयान’ को अपने हाथ में लेने के लिए कर रही संघर्ष    

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   13 Nov 2016 12:27 PM GMT

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भारत की 1.3 अरब जनता ‘मंगलयान’ को अपने हाथ में लेने के लिए कर रही संघर्ष    रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का 2000 रुपए का नया नोट।

नई दिल्ली (भाषा)। छिपे हुए काले धन को निकालने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सर्जिकल स्ट्राइक का ‘मंगलयान' की प्रसिद्धि से खास जुड़ाव है। उनकी सरकार ने नए नोट पर इस मशहूर उपग्रह की तस्वीर उकेर कर वाकई हर व्यक्ति के हाथ में मंगलयान देने का फैसला किया है।

अर्थव्यवस्था को एक नई ऊंचाई मिलने की उम्मीद

जिस तरह मंगल ग्रह पर भेजे गए भारत के पहले अभियान ने भारतीयों के दिलों को राष्ट्रवादी गौरव से प्रफुल्लित कर दिया था, उसी तरह से बड़ी कीमत वाले नोटों को चलन से बाहर करने पर आम लोगों में यह उम्मीद पैदा हो गई है कि अब अर्थव्यवस्था को एक नई ऊंचाई तक ले जाया जा सकता है।

मोदी इसरो के बड़े प्रशंसक

वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है कि अंतरिक्षप्रेमी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नोट पर छापने के लिए कई उपलब्ध विकल्पों में से मंगलयान का विकल्प चुना। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि मोदी इसरो के बड़े प्रशंसक हैं।

मंगलयान वाकई ‘मेक इन इंडिया' की भावना का प्रतिनिधित्व करता है, हालांकि किसी मुद्रा नोट पर छापा गया पहला भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट' था। ‘आर्यभट्ट' भारत का पहला उपग्रह है, जिसे वर्ष 1975 में प्रक्षेपित किया गया था। इसे दो रुपए के नोट पर छापा गया था।

आज भारत के ऐतिहासिक मंगल अभियान से जुड़े मंगलयान को अपने जीवनकाल में ही 2000 रुपए के नोट पर जगह मिल गई है, किसी को भी इस बात में कोई संदेह नहीं है कि यह हाल के समय में भारत की सबसे बड़ी प्रौद्योगिक सफलताओं में से एक है, अभियान लगातार सक्रिय है और प्रक्षेपण के तीन साल बाद भी धरती पर जानकारी भेज रहा है।

वर्ष 2014 में 24 सितंबर की ऐतिहासिक सुबह मंगलयान मंगल की कक्षा में दाखिल हो गया था। उस ऐतिहासिक क्षण में मोदी वैज्ञानिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए खुद इसरो के नियंत्रण कक्ष में मौजूद थे। उन्होंने बेहद उत्साहित होते हुए यह भी कहा था कि 450 करोड़ रुपए की लागत वाले इस अंतरिक्ष यान पर हॉलीवुड ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘ग्रेविटी' से भी कम खर्च आया है।

दो हजार रुपए के नोट पर छपी जिस तस्वीर को इसरो ‘मार्स ऑर्बिटर मिशन' कहता है, उसके लिए सरकार ने नोट पर ‘मंगलयान' लिखा है। अंतरिक्षयान को यह नाम दिए जाने के पीछे की कहानी कुछ इस प्रकार है। भारत द्वारा मंगल की ओर कदम बढ़ाए जाने की पहली आधिकारिक घोषणा वर्ष 2012 में की गई थी। इसकी घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लालकिले की प्राचीर से हिंदी में दिए अपने भाषण में की थी। इसे नाम देते हुए उन्होंने कहा था, ‘‘मंगलयान विज्ञान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक बड़ा कदम होगा।''

दिलचस्प बात यह है कि सरकार ने उनके भाषण का जो आधिकारिक अंग्रेजी अनुवाद जारी किया था, उसमें ‘मंगलयान' शब्द का जिक्र कहीं नहीं था। इसरो लगातार यह कहता रहा है कि अंतरिक्षयान को ‘मंगलयान' का नाम कभी नहीं दिया गया लेकिन जिस किसी ने भी वह भाषण सुना था या उस समय के भाषण को सुनना चाहता है, वह यूट्यूब पर जाकर इसे सुन सकता है और इसकी पुष्टि कर सकता है।

आधुनिक विज्ञान का लाभ आम आदमी तक पहुंचाने के काम में प्रधानमंत्री मोदी के गहरे जुड़ाव के बारे में जानने वाले लोगों को मंगलयान की कलात्मक तस्वीर को नोट पर छापे जाने के उनके फैसले ने हैरान नहीं किया होगा। वित्त मंत्रालय के सचिव शक्तिकांत ने कहा कि सुरक्षित मुद्रा नोट डिजाइन करना एक कला है, उन्हें नया मुद्रा नोट बनाने में तीन-चार माह लगे और आज सिर्फ दो-तीन विशेषज्ञों के पास ही अनिवार्य विशेषज्ञता है।

दो हजार रुपए के नए नोट में चिप नहीं

नोट आने के शुरुआती घंटों में इसरो से जुड़ी एक नई अफवाह चल रही थी। इसमें कहा जा रहा था कि दो हजार रुपए के नए नोट में सरकार ने एक ‘‘नैनो जीपीएस चिप लगाया है ताकि नोटों का पता लगाया जा सके'' और भारत की क्षेत्रीय उपग्रह दिशासूचक प्रणाली नाविक इसमें मदद करेगी।

इसरो के अध्यक्ष किरण कुमार ने तत्काल ही इस अफवाह को खारिज करते हुए कहा कि ‘‘यह किसी की कल्पना पर आधारित मनगढंत कहानी है।''

इसके बाद सरकार ने भी यह पुष्टि की कि नोट में कोई चिप नहीं लगा। आज धरती से लगभग 22.5 करोड़ किलोमीटर की दूरी पर सक्रिय मंगलयान भी यह सोचकर मुस्कुरा रहा होगा कि 1.3 अरब लोग मंगलयान को अपने हाथ में लेने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

इससे मोदी के भाषण में कही गई उस बात की भी याद आ सकती है, जिसमें उन्होंने ‘‘शून्य के विचार को अपनाने'' के लिए कहा था। 500 और 1000 के पुराने नोटों को चलन से बाहर कर दिए जाने पर कालाबाजारी के जरिए अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे लोगों के साथ कुछ ऐसी ही (शून्यता से भरी) स्थिति हो सकती है।

पल्लव बाग्ला, जाने-माने विज्ञान लेखक




         

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