आम बजट 2017 में राशन की दुकानों से मिलने वाली चीनी से खत्म हो सकती है सब्सिडी 

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   26 Jan 2017 4:57 PM GMT

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आम बजट 2017 में राशन की दुकानों से मिलने वाली चीनी से खत्म हो सकती है सब्सिडी बोरी से चीनी निकालता दुकानदार।

नई दिल्ली (भाषा)। वित्त मंत्री अरुण जेटली आगामी बजट 2017 में राशन की दुकानों से सस्ती चीनी बेचने के लिए राज्यों को दी जाने वाली 18.50 रुपए प्रति किलो की सब्सिडी समाप्त कर सकते हैं। इससे करीब 4,500 करोड़ रुपए की सब्सिडी बचेगी। जेटली आम बजट एक फरवरी 2017 को पेश करेंगे।

सूत्रों ने इस सोच के पीछे की वजह बताते हुये कहा कि केंद्र का कहना है कि नए खाद्य सुरक्षा कानून में गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) परिवारों के लिए किसी तरह की कोई सीमा नहीं रखी गई है ऐसे में आशंका है कि राज्य सरकारें सस्ती चीनी का अन्यत्र भी उपयोग कर सकतीं हैं।

वर्तमान में योजना के तहत 40 करोड़ बीपीएल परिवारों का लक्ष्य रखा गया है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत सालाना 27 लाख टन चीनी की जरुरत होती है।

मौजूदा योजना के मुताबिक राज्य सरकारें राशन की दुकानों से चीनी की सरकार नियंत्रित मूल्य पर आपूर्ति करने के लिए खुले बाजार से थोक भाव पर चीनी खरीदतीं हैं और फिर इसे 13.50 रुपए किलो के सस्ते भाव पर बेचतीं हैं। दूसरी तरफ राज्यों को इसके लिए केंद्र सरकार से 18.50 रुपए प्रति किलो के भाव पर सब्सिडी दी जाती है। सूत्रों के अनुसार वित्त मंत्रालय से ऐसे संकेत हैं कि चीनी की मौजूदा सब्सिडी योजना को अगले वित्त वर्ष से बंद किया जा सकता है।

केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान।

चीनी सब्सिडी योजना को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जाना चाहिए और कम से कम इसे अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) परिवारों के लिये जारी रखा जाना चाहिए। यह योजना सबसे गरीब लोगों के लिए चलाई जाती है।
रामविलास पासवान खाद्य मंत्री (इस विषय पर वित्त मंत्री अरुण जेटली को पत्र लिखा)

खाद्य मंत्रालय ने हालांकि, पहले ही राज्यों को इस बारे में संकेत दे दिए हैं कि केंद्र सरकार अगले वित्त वर्ष से चीनी पर सब्सिडी वापस ले सकती है. राशन दुकानों के जरिए चीनी बेचने की पूरी लागत राज्यों को स्वयं उठानी पड़ सकती है।

लगातार दूसरे साल देश में चीनी का उत्पादन खपत के मुकाबले कम रह सकता है। वर्ष 2016-17 में इसके 2.25 करोड़ टन रहने का अनुमान है। यह उत्पादन चीनी की 2.50 करोड़ टन घरेलू जरुरत से कम होगा। हालांकि इस अंतर को पूरा करने के लिए पिछले साल का बकाया स्टॉक उपलब्ध है।

           

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