जल्लीकट्टू पर एक सप्ताह तक फैसला नहीं सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट, केन्द्र का माना आग्रह 

Sanjay SrivastavaSanjay Srivastava   20 Jan 2017 12:44 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
जल्लीकट्टू पर एक सप्ताह तक फैसला नहीं सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट, केन्द्र का माना आग्रह सुप्रीम कोर्ट ने माना केन्द्र का आग्रह।

नई दिल्ली (भाषा)। उच्चतम न्यायालय ने जल्लीकट्टू के मुद्दे पर एक सप्ताह तक फैसला नहीं सुनाने का केंद्र का आग्रह आज मान लिया। केंद्र ने न्यायालय को बताया कि मुद्दे के समाधान को लेकर वह तमिलनाडु के साथ बातचीत कर रहा है।

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ को बताया कि जल्लीकट्टू से तमिलनाडु के लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं और केंद्र तथा राज्य सरकार इस मुद्दे का समाधान निकालने की कोशिश कर रहे हैं।

रोहतगी ने पीठ से कहा, ‘‘केंद्र और राज्य समाधान निकालने के लिए बातचीत कर रहे हैं और हमारा अनुरोध है कि न्यायालय कम से कम एक सप्ताह तक इस पर अपना फैसला ना सुनाए।''उनके इस आग्रह पर पीठ ने कहा ‘‘ठीक है।''

उच्चतम न्यायालय ने कल कहा था कि सांडों को काबू में करने के खेल के प्रदर्शनकारी समर्थकों के संरक्षण का मुद्दा मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष उठाया जा सकता है। खेल को इजाजत देने संबंधी केंद्र की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल सात दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके अगले दिन, केंद्र ने अधिसूचना जारी कर तमिलनाडु में जल्लीकट्टू पर पाबंदी हटा ली थी हालांकि इसके बावजूद कुछ पाबंदियां कायम रखी गई थीं। इसे एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया, पेटा, बंगलुरु के एक गैर सरकारी संगठन समेत अन्य ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी।

उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 21 जनवरी को अपने 2014 के उस फैसले पर पुनर्विचार से इनकार कर दिया था जिसमें जल्लीकट्टू आयोजनों समेत देशभर में बैलगाड़ियों की दौड़ में सांडों के इस्तेमाल प्रतिबंध लगाया गया था।

न्यायालय ने केंद्र की आठ जनवरी की अधिसूचना पर भी रोक लगा दी और केंद्र से जल्लीकट्टू जैसे आयोजनों में सांडों के इस्तेमाल की इजाजत देने वाली उसकी अधिसूचना पर सवाल पूछा और कहा कि पशुओं के इस्तेमाल के उसके 2014 के फैसले को ‘‘निष्प्रभावी'' नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने वर्ष 2014 के अपने फैसले में कहा था कि तमिलनाडु, महाराष्ट्र या देशभर में कहीं भी होने वाले जल्लीकट्टू आयोजन या बैलगाड़ी दौड़ में सांडों का इस्तेमाल प्रस्तुति देने वाले पशु के तौर पर नहीं किया जा सकता।

इसके साथ ही न्यायालय ने देशभर में उनके इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी थी। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु रेग्युलेशन ऑफ जल्लीकट्टू एक्ट, 2009 को संविधान के अनुच्छेद 254 (1) का उल्लंघन बताते हुए संवैधानिक तौर पर अमान्य करार दिया था।

       

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.